scriptऐसे आंगनबाडिय़ों में कैसे नौनिहाल सीखेंगे आखर ज्ञान | Women and Child Development Department Jodhpur | Patrika News

ऐसे आंगनबाडिय़ों में कैसे नौनिहाल सीखेंगे आखर ज्ञान

locationजोधपुरPublished: Aug 01, 2020 06:46:28 pm

Submitted by:

Om Prakash Tailor

कोई केन्द्र मवेशियों के तबले में तो कोई चल रहा दुकान में महज 750 रुपए मिलता है किराया, इतनी राशि में शहर में नहीं मिलता ढग़ का कमरा – कोरोना के चलते इन दिनों केन्द्र बंद है, टीकाकरण के दिन सप्ताह में एक बार खुलते हैं

ऐसे आंगनबाडिय़ों में कैसे नौनिहाल सीखेंगे आखर ज्ञान

ऐसे आंगनबाडिय़ों में कैसे नौनिहाल सीखेंगे आखर ज्ञान

ओम टेलर. जोधपुर
नई शिक्षा नीति के तहत आंगनबाड़ी केन्द्रों के जरिए बच्चों को शिक्षा देने की महत्ती जिम्मेदारी सौंपी गई हैं लेकिन आंगनबाड़ी केन्द्रों के वर्तमान हालत देखकर सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि नई शिक्षा नीति का बोझ उठाने के लिए केन्द्रों को सुदृढ़ करने के लिए अभी बहुत कुछ करना शेष है। जोधपुर जिले में वर्तमान में 2541 केन्द्र संचालित हो रहे है। जहां 37 हजार 614 बच्चे आ रहे है। लेकिन सरकारी भवनों में संचालित केन्द्रों को छोड़कर अधिकतर केन्द्रों की स्थिति ऐसी है कि वहां परिजन अपने बच्चों को भेजना पसंद नहीं करते। पत्रिका टीम ने शनिवार को शहर के कुछ केन्द्रों की स्थिति दिखी तो काफी दयनीय नजर आई। कोई केन्द्र मवेशियों के तबले में स्थित हैं तो कोई दुकान में। हालाकि कोरोना के चलते इन दिनों केन्द्र बंद है।

केस एक – मवेशियों के तबले में केन्द्र
शहर के पाल रोड स्थित राजीव गांधी देव कॉलोनी में एक बाड़े में आंगनबाड़ी केन्द्र संचालित होता है। कोरोना के चलते केन्द्र बंद मिला। बाड़े में एक तरफ भैंसे बंधी है तो दूसरी तरफ बने कमरे में आंगनबाड़ी केन्द्र संचालित होता है। यहां न तो लेटबॉथ की व्यवस्था हैं न शुद्ध पेयजल की।

केस दो – दुकान में चल रहा केन्द्र
शहर के पाल रोड स्थित राजीव गांधी देव कॉलोनी में एक दुकान में आंगनबाड़ी केन्द्र संचालित होता है। जो कोरोना के चलते बंद था। दुकान के बाहर केन्द्र संख्या लिखी हुई हैं तब जाकर पता चलता है कि इस दुकान में केन्द्र भी संचालित होता है।

केस तीन – घर में संचालित हो रहा केन्द्र
मंडोर क्षेत्र के गऊघाटी में घर में एक आंगनबाड़ी केन्द्र घर में ही संचालित हो रहा है। कोरोना के चलते इन दिनों केन्द्र बंद है तो वहां रहने वाले ने केन्द्र में ही कूलर व पलंग आराम करने के लिए लगा दिया। पूछा तो कहां कि अभी कौन से बच्चे आ रहे है।

केन्द्र संचालन के लिए किराया महज 750
शहरी क्षेत्र में आंगनबाड़ी केन्द्र संचालित करने के कमरे का किराया महज 750 रुपए दिए जा रहे है। उसमें भी लाइट-पानी, लेट-बॉथ होना चाहिए लेकिन हकीकत यह है कि इतनी कम राशि में शहर में ढंग का कमरा मिलना काफी मुशिकल है। ऐसे में सरकारी भवनों में संचालित हो रहे केन्द्रों को छोड़ दे तो अधिकतर केन्द्रों की स्थिति अच्छी नहीं है।

नए खिलौने कब आएंगे पता नहीं
केन्द्रों पर बच्चों का मन बहलाने के लिए खिलौने होने चाहिए। लेकिन हकीकत यह है कि अधिकतर केन्द्रों पर खिलौनों का अभाव है। जहां है वे भी टूटे हुए। ऐसे में केन्द्र पर आने वाले बच्चों को खेलने के लिए खिलौने नहीं मिलते।

कभी मानदेय बकाया तो कभी पोषाहार की राशि
अधिकतर आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, सहायिका व सहयोगिनी को शिकायत रहती है कि उन्हें समय पर मानदेय नहीं मिलता। वर्तमान में केन्द्रों पर पोषाहार सप्लाई करने वाले समूहों को भी पिछले करीब छह माह से पोषाहार राशि का भुगतान नहीं किया गया है।

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो