एनस्थीसिया के डॉक्टर ही आेटी, आईसीयू के इंचार्ज होते हैं। ओटी की साफ-सफाई व फ्यूमिगेशन इन्हीं के जिम्मे रहता है। किसी रोगी को ओटी में लाया जाता है तो एनस्थेटिक उसका प्री चैक अप करता है। इसमें रोगी की श्वांस की प्रक्रिया भी ध्यान में रखते हैं। इसमें रोगी का ब्लड प्रेशर, पल्स दर और ऑक्सीजन का सेचुरेशन देखा जाता है। जिनका ऑपरेशन होना होता हैं, उन राोगियों को ४ से ६ घण्टे तक भूखा रखा जाता है। आपात ऑपरेशन के समय रोगी के पेट में भोजन है तो ऑपरेशन के दौरान एनस्थीसिया देने पर पेट का सारा भोजन उल्टा बाहर आकर श्वांस नली में चला जाता है। प्री चैक अप के बाद रोगी के हाथ में कैनुला लगाकर ग्लुकोज व कैनुला के जरिए एनस्थीसिया शरीर में दिया जाता है। रोगी के बेहोश होने अथवा उसके किसी अंग के सुन्न करने के बाद सर्जन अपना काम शुरू करता है। जबकि आजकल कंप्यूटर पर समय कैल्कुलेट करके भी एनेस्थीसिया दिया जाता है। जिसकी सुविधा हमारे जोधपुर के अस्पतालों में भी है।
निश्चेतना विभाग के सहआचार्य व एमडीएम अस्पताल के ट्रोमा सेंटर इंचार्ज डॉ. विकास राजपुरोहित ने बताया कि पहला एनीस्थीसिया लोकल एनस्थीसिया कहलाता है। इससे केवल वही हिस्सा सुन्न होता है, शेष शरीर में हलचल रहती है। दूसरा है रीजनल, इसमें आधे शरीर यानी पेट के नीचे वाले हिस्से को सुन्न करते हैं और तीसरा जनरल एनस्थीसिया है। इसमें रोगी को पूरा बेहोश किया जाता है और उसे वेंटिलेटर के जरिए सांस देते हैं। डॉ. राजपुरोहित बताते हैं कि चिकित्सकीय उपचार में हर जगह निश्चेतना चिकित्सक की भागीदारी रहती है। जो इमरजेंसी से शुरू होकर गंभीर रोगियों के इलाज आईसीयू, आईसीयू केयर, ओटी, एमआरआई, सीटी स्कैन, इलेक्ट्रिक कन्वर्जन थैरेपी व पेन मैनेजमेंट सहित कई क्षेत्रों में निश्चेतना चिकित्सकों की भागीदारी रहती हैं।
शुरुआती चरण में एनस्थीसिया में सिर पर डण्डा मारकर बेहोश किया जाता था। शराब व अफीम खिलाकर बेहोश किया जाता था। क्लोरोफार्म सुंघाया जाता था, जिससे लंबे समय तक मरीज बेहोश रहता था। एनस्थीसिया की शुरुआत १६ अक्टूबर १८४६ में हुई। उस समय डॉ. डब्ल्यू टीजी मोर्टन ने ईथर के प्रयोग से बिना दर्द के ऑपरेशन होने का प्रदर्शन किया। इसके बाद क्लोरोफॉर्म व हंसाने वाली गैस नाइट्रस ऑक्साइड का प्रयोग किया जाता था। अब मरीज को ओटी में टाइट्रेशन करके दस मिनट से लेकर कई घंटों तक एनस्थीसिया तैयार कर मरीज को देते हैं। अब तो ऑपरेशन के पांच मिनट बाद ही मरीज चेतन अवस्था में आ जाता है।