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खून से खाली हो रहे ब्लड बैंक, जोधपुर के तीनों बड़े अस्पतालों में मिल रहा है खून के बदले खून

locationजोधपुरPublished: Jun 14, 2018 01:22:08 pm

विश्व रक्तदाता दिवस विशेष

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खून से खाली हो रहे ब्लड बैंक, जोधपुर के तीनों बड़े अस्पतालों में मिल रहा है खून के बदले खून


– जिले के 60 प्रतिशत थैलेसीमिया मरीजों को रोजाना पड़ती है खून की जरूरत
जोधपुर. डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज के अस्पतालों के ब्लड बैंकों की हालत नाजुक है। इनमें एक पखवाड़े से खून की भारी कमी है। पिछले कुछ दिनों में शिविरों का भी आयोजन हुआ है। इसके बाद भी मेडिकल कॉलेज के तीनों बड़े अस्पतालों (मथुरादास माथुर, उम्मेद और महात्मा गांधी) में ब्लड की कमी से जूझ रहे हैं। इनमें उम्मेद अस्पताल को छोड़ दें तो बाकी के दोनों अस्पतालों में ब्लड आउट ऑफ स्टॉक चल रहा है। हालत यह हो गई है कि मरीजों को खून के बदले खून दिया जा रहा है। हैरानी की बात यह है कि जो खून इन ब्लड बैंकों में रिजर्व में है, इसमें से 60 फीसदी तो केवल थैलेसीमिया के मरीजों को ही चढ़ाने के काम आ रहा है। बाकी 20 फीसदी ब्लड इमरजेंसी ऑपरेशन या गर्भवती महिलाओं के लिए रखा हुआ है। अब ब्लड बैंकों को जरूरत है रक्तदान शिविरों की। सबसे ज्यादा खून की खपत गर्मी के मौसम में होती है, इसलिए हर साल मई के आखिरी और जून के शुरुआती दिनों में ब्लड बैंकों को रक्तदाताओं पर निर्भर होना पड़ता है। पिछले दिनों अस्पतालों में बी पॉजिटिव ब्लड ही उपलब्ध नहीं था।

नौ शिविरों में 623 यूनिट मिला खून

अस्पतालों के ब्लड बैंकों में रेयर ब्लड ग्रुप की संख्या बहुत कम है। पिछले कुछ दिनों में इन ग्रुप के खून में पांच गुना गिरावट दर्ज की गई है। गर्मियों में रक्तदान और रक्तदाताओं की कमी के चलते यह स्थिति पैदा हो रही है। ब्लड बैंक के कर्मचारी खुद इस कमी से उबरने के प्रयास कर रहे हैं। मेडिकल कॉलेज के तीनों अस्पतालों (मथुरादास माथुर, उम्मेद और महात्मा गांधी) के ब्लड बैंकों में मिलाकर अब तक नौ रक्तदान शिविर हुए हैं। इनमें 623 यूनिट रक्त प्राप्त हुआ है। महात्मा गांधी अस्पताल में तीन शिविरों में 227, मथुरादास माथुर अस्पताल में तीन शिविरों में 171 और उम्मेद अस्पताल में तीन शिविरों में 225 यूनिट रक्त संग्रहण हुआ है।
चार साल पहले बंद कर दिया बजट
रक्तदाता दिवस पर कार्यक्रम करवाने की जिम्मेदारी भी सामाजिक संस्थाओं या समाजसेवियों ने ले ली है। उनके द्वारा ही रक्तदान शिविर लगवाए जाते हैं। पहले ब्लड बैंक को नार्कों हर साल विश्व रक्तदाता दिवस पर रक्तदाताओं को प्रोत्साहित करने के लिए 25 हजार रुपए का बजट देता था। चार साल से यह योजना भी बंद हो गई। अब जागरूकता रैली निकालने के लिए निर्देश हैं, लेकिन बजट नहीं है।
ज्यादा से ज्यादा करें रक्तदान

गर्मियों में रक्तदान कम होता है। इसलिए मई के अंतिम दिनों या जून के पहले सप्ताह में खून का स्टॉक कम हो जाता है। अभी छुट्टियां चल रही हैं। इसलिए युवाओं में रक्तदान को लेकर रुचि कम है। बिना रक्तदान किए मरीजों को खून नहीं दे सकते। थैलेसीमिया के मरीजों को खून की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। इमरजेंसी मामलों में भी कुछ यूनिट खून स्टॉक में रखना पड़ता है।
डॉ. मंजू बोहरा, विभागाध्यक्ष, ब्लड बैंक

26 साल में 59 बार रक्तदान

1992 में मेरे किसी मिलने वाले को रक्त की आवश्यकता पड़ी थी। तब कोई रक्तदान करने को तैयार नहीं हुआ। उस समय मैंने पहली बार रक्तदान किया। अब तक मैं 59 बार रक्तदान कर चुका हूं। मुझे देखकर मेरे दोनों बच्चे भी रक्तदान कर रहे हैं, जो खुशी की बात है।
गौरीशंकर बोराणा, रक्तदाता
पहली बार बहन के लिए किया रक्तदान

मैंने पहली बार बहन के लिए 1996 में रक्तदान किया था। प्रेरित होकर 18 साल पहले रक्तदान शिविर लगावाना शुरू कर दिया। अब तक 54 बार रक्तदान कर चुका हूं। साल 2000 में 18 प्रतिशत ही रक्तदान होता था। समय के साथ लोगों में जागरुकता बढ़ी अब 75 प्रतिशत लोग रक्तदान कर रहे हैं। जरूरतमंद को रक्त दिलवाने में खुशी मिलती है। शिवकुमार सोनी, रक्तदाता
यह है सरकारी अस्पतालों के ब्लड बैंकों की स्थिति

अस्पताल स्टॉक

मथुरादास माथुर अस्पताल स्टॉक उपलब्ध नहीं है।
महात्मा गांधी अस्पताल स्टॉक उपलब्ध नहीं है।

उम्मेद अस्पताल ए नेगेटिव एक यूनिट, बी पॉजिटिव छह यूनिट, ओ पॉजिटिव 8 यूनिट, ओ नेगेटिव दो और ए पॉजिटिव एक यूनिट ही उपलब्ध है।
(यह जानकारी वेबसाइट से ली गई है।)
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