यहां हैं तस्वीरें शानदार
दरबार हॉल और स्विमिंग पूल में पेंटिंग बनाने में पोलैण्ड के मशहूर चित्रकार एस. नोरवलिन को दो साल का समय लगा। दरबारे खास में एस. साख्ेालिन चित्रित रामायण प्रसंग के 6 भव्य चित्र का प्रदर्शन दैशी-विदेशी सैलानियों को बहुत लुभाता है। नृत्य शाला की स्थापत्य कला, छतों पर घूमर, मेहराबोंं पर बारीक नक्काशी और सुनहरी कलम का संग्रह किया गया है। इसके लकड़ी के फर्श दिल को लुभाते हैं और पर्यटक सुखद आश्चर्य से देखते ही रह जाते हैं।
दरबार हॉल और स्विमिंग पूल में पेंटिंग बनाने में पोलैण्ड के मशहूर चित्रकार एस. नोरवलिन को दो साल का समय लगा। दरबारे खास में एस. साख्ेालिन चित्रित रामायण प्रसंग के 6 भव्य चित्र का प्रदर्शन दैशी-विदेशी सैलानियों को बहुत लुभाता है। नृत्य शाला की स्थापत्य कला, छतों पर घूमर, मेहराबोंं पर बारीक नक्काशी और सुनहरी कलम का संग्रह किया गया है। इसके लकड़ी के फर्श दिल को लुभाते हैं और पर्यटक सुखद आश्चर्य से देखते ही रह जाते हैं।
विंटेज कारें और शाही शादियां
यह रियासतकाल की कई परंपराओं का साक्षी और एक ऐसी धरोहर है, जिस पर सभी को नाज है। आज उम्मेद भवन का अली अकबर हॉल कई यादगार आयोजनों के लिए जाना जाता है। पहले भवन के अंदर घुसते ही अंदरूनी हिस्से में झाडिय़ां थीं, जहां पार्किंग होती थी, बाद में विंटेज कारें रखी गईं। ये कारें रैली के समय निकलती हैं। आज इसका लॉन व बारादरी बरसों शानदार म्यूजिकल कार्यक्रमों के लिए जाने जाते हैं। आज यह भवन बहुचर्चित नीलामी, शाही शादियों, राजसी पार्टियों के लिए भी जाना जाता है। म्यूजिकल नाइट में यह रंगबिरंगी रोशनी से जगमगाता है। रंगबिरंगी रोशनी मेंं इसकी आभा बहुत शानदार नजर आती है। इसे देखने का टिकट लगता है। देसी व विदेशी पर्यटकों के लिए टिकट की दर अलग अलग है। पर्यटक अब इसका एक हिस्सा देखते हैं, इसके दूसरे हिस्से में होटल है।
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उम्मेद भवन पैलेस : फैक्टफाइल
लॉन सहित उम्मेद भवन का निर्माण :26 एकड़ क्षेत्रफल में
भवन का शिलान्यास : 18 नवम्बर सन 1929 को महाराजा उम्मेदसिंह ने किया
शिलान्यास के मुहूर्त पर खर्च : कुल 34,836 रुपए व 7 आने
महल की तामीर का स्थल : 195 मीटर लंबाई और 103 मीटर
चौड़ाई में महल निर्माण प्रारंभिक राशि : 52,12,000 रुपए
भवन के निर्माण पर खर्च : 94,51,565 रुपए
कन्स्ट्रक्शन-प्रोजेक्ट वर्क : 1,09,11,228 रुपयों की लागत से पूरा
बगीचे की जगह : 15 एकड भूमि
केंद्रीय गुम्बज : ऊंचाई 150 फीट, गोलाई के लिए 15 बड़े-बड़े स्तम्भ।
पैलेस में कक्ष : 365
महल में लकड़ी : 20,000 घन फुट बर्मा टीक
यह रियासतकाल की कई परंपराओं का साक्षी और एक ऐसी धरोहर है, जिस पर सभी को नाज है। आज उम्मेद भवन का अली अकबर हॉल कई यादगार आयोजनों के लिए जाना जाता है। पहले भवन के अंदर घुसते ही अंदरूनी हिस्से में झाडिय़ां थीं, जहां पार्किंग होती थी, बाद में विंटेज कारें रखी गईं। ये कारें रैली के समय निकलती हैं। आज इसका लॉन व बारादरी बरसों शानदार म्यूजिकल कार्यक्रमों के लिए जाने जाते हैं। आज यह भवन बहुचर्चित नीलामी, शाही शादियों, राजसी पार्टियों के लिए भी जाना जाता है। म्यूजिकल नाइट में यह रंगबिरंगी रोशनी से जगमगाता है। रंगबिरंगी रोशनी मेंं इसकी आभा बहुत शानदार नजर आती है। इसे देखने का टिकट लगता है। देसी व विदेशी पर्यटकों के लिए टिकट की दर अलग अलग है। पर्यटक अब इसका एक हिस्सा देखते हैं, इसके दूसरे हिस्से में होटल है।
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उम्मेद भवन पैलेस : फैक्टफाइल
लॉन सहित उम्मेद भवन का निर्माण :26 एकड़ क्षेत्रफल में
भवन का शिलान्यास : 18 नवम्बर सन 1929 को महाराजा उम्मेदसिंह ने किया
शिलान्यास के मुहूर्त पर खर्च : कुल 34,836 रुपए व 7 आने
महल की तामीर का स्थल : 195 मीटर लंबाई और 103 मीटर
चौड़ाई में महल निर्माण प्रारंभिक राशि : 52,12,000 रुपए
भवन के निर्माण पर खर्च : 94,51,565 रुपए
कन्स्ट्रक्शन-प्रोजेक्ट वर्क : 1,09,11,228 रुपयों की लागत से पूरा
बगीचे की जगह : 15 एकड भूमि
केंद्रीय गुम्बज : ऊंचाई 150 फीट, गोलाई के लिए 15 बड़े-बड़े स्तम्भ।
पैलेस में कक्ष : 365
महल में लकड़ी : 20,000 घन फुट बर्मा टीक
हमारी शानदार धरोहर
इंटैक के पूर्व महानिदेशक महेंद्रसिंह नगर के शब्दों में- यह हमारी शानदार धरोहर है। यहां कई यादगार सांस्कृतिक आयोजन हुए हैं। इसे बनाने के लिए जोधपुर के सूरसागर फिदूसर की खानों से पत्थर निकाले गए। इन खण्डों (पत्थरों के टुकड़ों) को लाने के लिए विशेष रूप से मीटर गेज की रेलवे लाइन बिछाई गई थी। आम तौर पर इन खंडों को जोडऩे के लिए चूने और सीमेंट के मसाले का इस्तेमाल किया जाता है, मगर यहां तो प्रत्येक खण्ड के लिए जटिल आंतरिक इण्टर लॉकिंग पद्धति काम में ली गई, ताकि यह मजबूत रहे।
इंटैक के पूर्व महानिदेशक महेंद्रसिंह नगर के शब्दों में- यह हमारी शानदार धरोहर है। यहां कई यादगार सांस्कृतिक आयोजन हुए हैं। इसे बनाने के लिए जोधपुर के सूरसागर फिदूसर की खानों से पत्थर निकाले गए। इन खण्डों (पत्थरों के टुकड़ों) को लाने के लिए विशेष रूप से मीटर गेज की रेलवे लाइन बिछाई गई थी। आम तौर पर इन खंडों को जोडऩे के लिए चूने और सीमेंट के मसाले का इस्तेमाल किया जाता है, मगर यहां तो प्रत्येक खण्ड के लिए जटिल आंतरिक इण्टर लॉकिंग पद्धति काम में ली गई, ताकि यह मजबूत रहे।