जोधपुर

वर्ल्ड हेरिटेज डे स्पेशल : ताजमहल और उम्मेद भवन पैलेस में है यह समानता

आगरा के ताजमहल और जोधपुर के उम्मेद भवन पैलेस में यह समानता है कि इन दोनों के निर्माण में मकराना के संग मरमर का इस्तेमाल किया गया है।
 

जोधपुरApr 18, 2018 / 09:42 pm

M I Zahir

umaid bhawan palace jodhpur

जोधपुर . तेरे चेहरे से नजर नहीं हटती, नजारे हम क्या देखें। यह है दुनिया की एक खूबसूरत विरासत जोधपुर का उम्मेद भवन पैलेस। यह इमारत ही इतनी शानदार है। इसे दुनिया भर में मशहूर एक सुनहरी इमारत कहें या छीतर के पत्थर से बना एक आलीशान महल। तभी तो इसे मारवाड़़ का ताजमहल कहते हैं। इसे लोग आम बोलचाल की भाषा में छीतर पैलेस कहते हैं। आगरा के ताजमहल और जोधपुर के उम्मेद भवन पैलेस में यह समानता है कि दोनों इमारतों की तामीर में इसके निर्माण के पीछे की कहानी रोचक है। यह महाराजा उम्मेदसिंह के ख्वाब की एक हसीन ताबीर है।

अकाल में रोजगार देने की अनूठी मिसाल
यह महल अकाल से त्रस्त जनता को रोजगार देने के मकसद से बनाया गया था। जब तत्कालीन मारवाड़ रियासत की जनता भूख से मर रही थी तो महाराजा उम्मेदसिंह ने इस महल की तामीर करने का निर्णय किया। इस भवन के निर्माण का आर.बी. शिवरतन मोहता को ठेका दिया गया था। पैलेस के वास्तुकार लंदन के मैसर्स लैकेंस्टर एण्ड लॉज इसके वास्तुकार थे, उनके प्रतिनिधि वास्तुविद व शिल्पविद जी.ए. गोल्ड स्ट्रा ने वास्तु में भूमिका निभाई। इसके लिए पत्थर लगाने, लाने, चुनाई और टांचने (तराशने) आदि तक के सारे काम मारवाड़ के मजदूरों व कारीगरों से ही करवाए गए, ताकि उन्हें रोजगार मिले।

इटली से आयातित काले पत्थर से बने पिलर
खास बात यह है कि महल के मुख्य प्रवेश कक्ष के स्तम्भ इटली से आयातित काले पत्थर से बने हुए हैंं और बाकी भवन की दीवारों व फर्श पर मकराना के सफेद पत्थर का प्रयोग किया गया। ब्लैक एंड व्हाइट का यह कंट्रास खूबसूरत लगता है। इसके आर्ट म्यूजियम को खूबसूरत बनाने के लिए चीन व बैल्जियम के कांच , चांदी व चीनी मिट्टी की नायाब कलाकृतियों- वस्तुओं का नायाब कलक्शन किया गया। साथ ही आकर्षक चित्रकला के बेजोड़़ नमूने बनवाए गए, जिलमें राजा रानी, राजस्थान के लोक नायक नायिका ढोला मारु व देव अवतार मुख्य हैं।
यहां हैं तस्वीरें शानदार
दरबार हॉल और स्विमिंग पूल में पेंटिंग बनाने में पोलैण्ड के मशहूर चित्रकार एस. नोरवलिन को दो साल का समय लगा। दरबारे खास में एस. साख्ेालिन चित्रित रामायण प्रसंग के 6 भव्य चित्र का प्रदर्शन दैशी-विदेशी सैलानियों को बहुत लुभाता है। नृत्य शाला की स्थापत्य कला, छतों पर घूमर, मेहराबोंं पर बारीक नक्काशी और सुनहरी कलम का संग्रह किया गया है। इसके लकड़ी के फर्श दिल को लुभाते हैं और पर्यटक सुखद आश्चर्य से देखते ही रह जाते हैं।
विंटेज कारें और शाही शादियां
यह रियासतकाल की कई परंपराओं का साक्षी और एक ऐसी धरोहर है, जिस पर सभी को नाज है। आज उम्मेद भवन का अली अकबर हॉल कई यादगार आयोजनों के लिए जाना जाता है। पहले भवन के अंदर घुसते ही अंदरूनी हिस्से में झाडिय़ां थीं, जहां पार्किंग होती थी, बाद में विंटेज कारें रखी गईं। ये कारें रैली के समय निकलती हैं। आज इसका लॉन व बारादरी बरसों शानदार म्यूजिकल कार्यक्रमों के लिए जाने जाते हैं। आज यह भवन बहुचर्चित नीलामी, शाही शादियों, राजसी पार्टियों के लिए भी जाना जाता है। म्यूजिकल नाइट में यह रंगबिरंगी रोशनी से जगमगाता है। रंगबिरंगी रोशनी मेंं इसकी आभा बहुत शानदार नजर आती है। इसे देखने का टिकट लगता है। देसी व विदेशी पर्यटकों के लिए टिकट की दर अलग अलग है। पर्यटक अब इसका एक हिस्सा देखते हैं, इसके दूसरे हिस्से में होटल है।

उम्मेद भवन पैलेस : फैक्टफाइल
लॉन सहित उम्मेद भवन का निर्माण :26 एकड़ क्षेत्रफल में
भवन का शिलान्यास : 18 नवम्बर सन 1929 को महाराजा उम्मेदसिंह ने किया
शिलान्यास के मुहूर्त पर खर्च : कुल 34,836 रुपए व 7 आने
महल की तामीर का स्थल : 195 मीटर लंबाई और 103 मीटर
चौड़ाई में महल निर्माण प्रारंभिक राशि : 52,12,000 रुपए
भवन के निर्माण पर खर्च : 94,51,565 रुपए
कन्स्ट्रक्शन-प्रोजेक्ट वर्क : 1,09,11,228 रुपयों की लागत से पूरा
बगीचे की जगह : 15 एकड भूमि
केंद्रीय गुम्बज : ऊंचाई 150 फीट, गोलाई के लिए 15 बड़े-बड़े स्तम्भ।
पैलेस में कक्ष : 365
महल में लकड़ी : 20,000 घन फुट बर्मा टीक
हमारी शानदार धरोहर
इंटैक के पूर्व महानिदेशक महेंद्रसिंह नगर के शब्दों में- यह हमारी शानदार धरोहर है। यहां कई यादगार सांस्कृतिक आयोजन हुए हैं। इसे बनाने के लिए जोधपुर के सूरसागर फिदूसर की खानों से पत्थर निकाले गए। इन खण्डों (पत्थरों के टुकड़ों) को लाने के लिए विशेष रूप से मीटर गेज की रेलवे लाइन बिछाई गई थी। आम तौर पर इन खंडों को जोडऩे के लिए चूने और सीमेंट के मसाले का इस्तेमाल किया जाता है, मगर यहां तो प्रत्येक खण्ड के लिए जटिल आंतरिक इण्टर लॉकिंग पद्धति काम में ली गई, ताकि यह मजबूत रहे।
 

 

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