बांसवाड़ा की वाग्धारा संस्थान की ओर से निकाली जा रही स्वराज विरासत यात्रा में मिट्टी, परम्परागत बीज, पानी, पेड़ और पशुधन से संबंधित प्राकृतिक खेती को प्रायोगिक तौर पर लागू कर गांव ढाणी तक पहुंच बढ़ाई्र जा रही है। इस क्रम में अब जीरो बजट प्राकृतिक खेती को भी शामिल किया है।
संस्थान की ओर से आदिवासी समुदाय के काश्तकारों के समूह बनाकर प्रायोगिक रूप से लागू किया गया है, जिसमें विशेषकर महिला काश्तकार भी शामिल हैं। आदिवासी महिलाएं अन्य समुदाय की महिलाओं को भी इसके लिए प्रेरित कर रही है।
इनका कहना है
गांधीजी के जन्म शताब्दी वर्ष में सेमीनार और बैठकों के इतर प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की मंशा से कार्य किया जा रहा है। गांव-गांव जा रही विरासत स्वराज यात्रा में इसकी जानकारी दी जाएगी। खेत में मिट्टी के काम को नरेगा में प्राथमिकता देने, मृदा स्वास्थ्य व पशुधन के लिए भी कार्यक्रम निर्माण की आवश्यकता है।
जयेश जोशी, सचिव, वाग्धारा संस्थान, बांसवाड़ा