scriptविलुप्त हो रही है बारिश के समय इस्तेमाल होने वाली आदिवासियों की यह अनोखी परंपरा | Chhattisgarh tribal's traditional Khumri getting extinct | Patrika News

विलुप्त हो रही है बारिश के समय इस्तेमाल होने वाली आदिवासियों की यह अनोखी परंपरा

locationकांकेरPublished: Jul 15, 2019 12:59:04 pm

Submitted by:

Akanksha Agrawal

– छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्रों में बारिश के समय इस्तेमाल होने वाली खुमरी विलुप्त होने की कगार पर है।- छत्तीसगढ़ के परिवार के सदस्य बारिश के मौसम में पानी और धूप से बचाव के लिए इसका उपयोग करते हैं।

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विलुप्त हो रही है बारिश के समय इस्तेमाल होने वाली आदिवासियों की यह अनोखी परंपरा

कांकेर/भैंसासुर. आधुनिकता के इस चकाचौंध में आदिवासी क्षेत्र की खुमरी विलुप्त होने की कगार पर है। किसान पहले बांस की बनी खुमरी का उपयोग करते थे। हर परिवार के सदस्य बारिश के मौसम में पानी और धूप से बचाव के लिए इसका उपयोग करते हैं। हर घरों में खुमरी होती थी। निदाई और गुड़ाई के समय भी किसान खुमरी को साथ रखते थे। अब धीरे-धीरे यह परम्परा विलुप्त होती जा रही है। अंचल के गांवों में एक दो लोगों को ही खुमरी का उपयोग करते देखा जाता है।

खेती-किसानी में काम करते समय इस खुमरी का सभी लोग उपयोग करते थे, जहां धूप से राहत मिलती थी, वहीं बारिश में काफी हद तक बचाव होता था। जब ग्रामीण इस खुमरी को लगाते थे उस समय पॉलीथिन का चलन बाजार में नहीं था। धीरे-धीरे लोगों को आधुनिक सुविधाएं मिलती गईं और लोग खुमरी छोड़ते गए।

काफी पुरानी इस खुमरी को गांव में कम ही किसान उपयोग करते हैं। खुमरी के बारे में बुजुर्ग किसानों से चर्चा करने पर लोगों ने कहा कि यह एक संसाधन हुआ करता था। अब हम लोगों के पास नहीं है। बारिश में इसका उपयोग सभी लोग करते थे। धूप में भी काफी बचाव मिलता था। गांव की पुरानी परम्परा खत्म होते जा रही है। अब तो सिर्फ बुजुर्ग लोग ही इसका उपयोग करते हैं।

 

एक समय था कि हर सदस्य बारिश और धूप में बचाव के लिए खुमरी साथ लेकर निकलता था। करीब डेढ़ दशक पहले हर घर में खुमरी रहती थी, अब तो धीरे-धीरे खुमरी का कल्चर विलुप्त होते जा रहा है। इस संबंध में राजेन्द्र पोटाई ने कहा बिक डेढ दशक पहले खेतों की जोताई करते समय खुमरी लोग लगाते थे। बैलों के पीछे-पीछे हल की मुठिया पकड़े खुमरी सर पर दिखती थी। खुमरी से जहां पानी से राहत मिलती थी, वहीं धूप से बचाव भी था।

नरेश धनियाल ने बताया कि हमारे दादा खुमरी बनाते थे। कभी-कभी खुमरी को लेकर विवाद होता था। अब तो गांव की कला धीरे-धीरे विलुप्त हो रही है। आदिवासी समाज की खुमरी बंद हो रही है। इस युग में सिर्फ बुजुर्ग ही उपयोग कर रहे हैं।

मंगल साय मंडावी ने कहा कि जब हमारे पिता थे तो घर में खुद खुमरी बनाते थे, उस खुमरी का सभी लोग उपयोग करते थे। अब तो कोई खुमरी बनाने वाला नहीं है। पुरानी बांस की खुमरी का चलन क्षेत्र से धीरे-धीरे गायब हो रहा है।

करण सिंह पद्दा ने कहा कि हम तो अब भी खुमरी लगाकर खेतों में काम करते हैं। खुमरी से लोगों को पानी-धूप से बचाव में मदद मिलती है। खुमरी बनाने वाले अब नहीं हैं। आधुनिकता के इस युग में बांस की खुमरी गायब हो रही है।

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