सरकारी स्कूलों की दीवारों से प्लास्टर गिर रहा है। छतों में लगी लोहे की सरिया जंग से क्षतिग्रस्त हो चुकी है । मरम्मत के अभाव में दिन पर दिन स्कूल भवनों की हालत खराब होती जा रही है। बारिश का पानी भी शाला भवन में टपक रहा है। कंडल स्कूलों की छत कब जमीन पकड़ लेंगी कुछ कहा नहीं जा सकता है। शिक्षा विभाग के आला अधिकारियों को भी भवन खराब होने की जानकारी दी जा चुकी है। पर निर्माण एजेंसी जनपद पंचायत होने के कारण निर्माण कार्य अधर में लटका है। बारिश के इस मौसम में स्कूल की दीवारों से सीलन आ रही है। ऐसे में संक्रामक रोग फैलने का खतरा बना है। केंद्र सरकार स्लोगन दे रही कि पढ़ेगा इंडिया तभी तो बढ़ेगा इंडिया। आखिर इन कंडम स्कूलों में जान जोखिम में डालकर छोटे-छोटे बच्चे अपना भविष्य कैसे गढ़ेंगे।
शिक्षा विभाग की व्यवस्था लचर बनी है। खराब स्कूल भवन ही शिक्षा विभाग को कटघरे में खड़ा कर दिया है। शिक्षा विभाग के उच्चधिकारी भले ही खराब स्कूलों को ठीक कराने के लिए जनपदों की तरफ फाइल बढ़ा दिए हों पर ग्राम पंचायतों तक पहुंचते-पहुंचते स्कूलों की फाइल आलमारियों में कैद हो गई हैं। आए दिन छत से प्लास्ट टूटकर गिरने से बच्चे जख्मी हो रहे हैं।
शिक्षा विभाग की लापरवाही के चलते सरकारी स्कूलों में दिन पर दिन बच्चों की संख्या कम होती जा रही है। वैसे भाजपा सरकार के समय शालाओं की खराब हालत को लेकर कांग्रेसी मुखर रहते थे। सत्ता बदली तो कांग्रेसी भी अब जनहित के मुद्दों पर चुप्पी साध लिए है । कोयलीबेड़ा बीईओ केके यादव ने कहा कि सभी जर्जर भवन की सूची उच्चाधिकारियों को दे दी गई है।