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बुंदेलखंड पर किए गए सर्वेक्षण पर योगेंद्र यादव ने दी सफाई

Published: Nov 29, 2015 10:51:00 pm

Submitted by:

Ambuj Shukla

आम आदमी पार्टी के पूर्व नेता और स्वराज अभियान के
संयोजक योगेंद्र यादव द्वारा बुंदेलखंड के बुरे हालात को लेकर कराए गए
सर्वेक्षण पर सवाल उठने लगे हैं। सोशल मीडिया पर लगातार सवाल उठ रहे हैं।

आम आदमी पार्टी के पूर्व नेता और स्वराज अभियान के संयोजक योगेंद्र यादव द्वारा बुंदेलखंड के बुरे हालात को लेकर कराए गए सर्वेक्षण पर सवाल उठने लगे हैं। सोशल मीडिया पर लगातार सवाल उठ रहे हैं।

फर्जी सर्वे के जरिए हालात को ज्यादा भयावह दिखाने के आरोप के बीच यादव ने सर्वे को लेकर सफाई दी है।

योगेंद्र यादव ने कहा है कि सवालों पर लोगों का स्वस्थ बहस के लिए स्वागत है। सर्वे का उद्देश्य ही यही था कि राज्य में सूखे से पैदा हुई गंभीर स्थिति के बारे में चर्चा शुरू हो। उन्होंने आगे स्पष्ट कर कहा कि यह सर्वेक्षण वैज्ञानिक पद्धति से किया गया था। जो तथ्य सामने आए हैं, वह बहुत दुखद हैं और गहरे संकट की ओर इशारा करते हैं।
yogendra yadav
उन्होंने कहा कि यह काम मीडिया का है कि वह उत्तरदाताओं की स्वतंत्र पुष्टि करे। यादव ने कहा, ”हमारी उम्मीद है कि इन आंकड़ों के आधार पर आगे छानबीन होगी और हमें मिले इन उत्तरों की स्वतंत्र जांच की जा सकेगी।

उन्होंने आधे बुंदेलखंड में ही सर्वे कराने के आरोप का सोशल मीडिया पर जवाब देते हुए कहा कि पूरे बुंदलेखंड में सर्वे कराया गया है। कोई भी हिस्सा छोड़ा नहीं गया है।

वहीं, इस मामले में बुंदेलखंड के सामाजिक कार्यकर्ता आशीष सागर का कहना है कि सर्वे के लिए टीम गांवों में गई ही नहीं हैं। वैसे भी रिपोर्ट में ‘घास की रोटी का जिक्र आया है, मगर वह घास नहीं है।

उन्होंने कहा कि रिपोर्ट में जिसे घास कहा गया है, बुंदेलखंड में उसे मोटा अनाज कहते हैं। इससे पेट साफ हो जाता है। योगेंद्र यादव को भी इसे खाना चाहिए।

आशीष ने आरोप लगाया कि बुंदेलखंड के चित्रकूट-बांदा मंडल में सर्वे हुआ ही नहीं है। ये रिपोर्ट फर्जी है। उन्होंने इस मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को इस संबंध में पत्र लिखा है।

योगेंद्र यादव ने हाल ही में सूखे के बाद से बिगड़े हालात पर एक सर्वे किया था। सर्वे में बताया गया कि पिछले एक महीने में एक औसत परिवार ने सिर्फ 13 दिन ही सब्जी खाई। दाल तो थाली से गायब ही हो गई। सामान्य परिवार भी महीने में सिर्फ चार दिन ही दाल खा रहे हैं, जबकि बिल्कुल गरीब परिवार के लोगों ने पूरे महीने में एक बार भी दाल नहीं खाई।
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