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तहसीलदार से ज्यादा किराया लेना बस संचालक को पड़ा महंगा, परिवहन विभाग ने वसूला 31 सौ रुपए जुर्माना

locationकांकेरPublished: May 15, 2019 04:35:26 pm

Submitted by:

Bhawna Chaudhary

कांकेर जिले की लाइफ लाइन यहां के निजी बस संचालक हैं। ऐसे में इनकी मनमानी भी किसी से छिपी नहीं है, पर सोमवार को नरेश कंपनी की एक बस को मनमानी उस समय महंगी पड़ गई जब उसने तहसीलदार कांकेर मनोज मरकाम से निधारित दर से अधिक किराया वसूल लिया।

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तहसीलदार से ज्यादा किराया लेना बस संचालक को पड़ा महंगा, परिवहन विभाग ने वसूला 31 सौ जुर्माना

कांकेर. कांकेर जिले की लाइफ लाइन यहां के निजी बस संचालक हैं। ऐसे में इनकी मनमानी भी किसी से छिपी नहीं है, पर सोमवार को नरेश कंपनी की एक बस को मनमानी उस समय महंगी पड़ गई जब उसने तहसीलदार कांकेर मनोज मरकाम से निधारित दर से अधिक किराया वसूल लिया। फिर क्या था बस संचालक पर कहर बरप गया। कांकेर बस स्टैंड में पहुंची तो वहां परिवहन व यातायात विभाग के अधिकारी मौजूद थे। बस के चालक और उनके प्रपत्रों की जांच हुई और उससे ३१०० रुपए का जुर्माना वसूला गया।
बता दें कांकेर तहसीलदार मनोज मरकाम केशकाल से नरेश कंपनी की एक बस में सवार हुए। बस के कंडक्टर ने उनसे निर्धारित दर से अधिक किराया ले लिया। तहसीलदार ने जब टिकट मांगा तो परिचालक ने टिकट देने से मना कर दिया। तभी कुछ आगे से और यात्री बस में सवार हुए। परिचालक ने उनसे भी उतना ही किराया वसूला जितना उसने तहसीलदार से लिया था। फिर क्या था।
तहसीलदार ने बस वाले को सबक सिखाने के उद्देश्य से मामले की जानकारी जिला परिवहन अधिकारी ऋषभ नायडू को दी। अपने मित्र अधिकारी से दुव्र्यवहार की बात सुनते ही जिला परिवहन अधिकारी के अंदर की ताकत जागृत हुई और उन्होंने प्रभारी यातायात केआर रावत को बस स्टैंड पहुंचने का निर्देश दिया।
जैसे ही कांकेर नया बस स्टैंड में नरेश कंपनी की यह बस पहुंची। प्रभारी यातायात ने उसकी जांच पड़ताल प्रारंभ कर दी। जांच के दौरान बस के अंदर किराया सूची नहीं पाई गई। चालक का न तो यूनिफार्म था न ही उसने लाइसेंस रखा था। बस में यात्रियों को टिकट न देना मलतब परमिट की शर्तों का उल्लंघन सब मिलाकर परिवहन विभाग ने बस का कुल 3100 जुर्माना बनाया तथा उसका चालान किया। नरेश बस पर हुई कार्रवाई की पूरे दिन बस स्टैंड परिसर में चर्चा होती रही।
ऐसे में सवाल यह है कि यह नियम कानून सिर्फ इसलिए लागू किए गए कि परिचालक ने तहसीलदार से पैसे लिए थे। निजी बस संचालकों पर यदि इसी तरह प्रशासनिक कार्यवाही समय-समय पर होती तो आम यात्रियों को भी राहत मिलती। फिर ऐसी कार्रवाई की प्रशंसा होती। लेकिन यहां परिवहन विभाग की निष्क्रियता से बस संचालकों की मनमानी पर रोक नहीं लग रही है।
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