तालाब तट पर झरिया का पानी ले रहीं महिलाओं ने कहा कि गर्मी का मौसम आने से पहले हमें पेयजल की चिंता सताने लगी है। ग्रामीणों को प्यास बुझाने के लिए बरसात और ठंड के मौसम में भी भटकना पड़ रहा है। पानी के लिए बार-बार अफसरों से फरियाद कर हम थक चुके हैं। इस मौसम में भी छोटे छोटे कुआंनुमा गड्डे खोदकर झरिया का पानी पी रहे हैं। गांव के तालाब तट पर जगह-जगह गड्ढा खोदने के बाद पानी एकत्र होता है। उसी पानी को उबालकर पी रहे हैं।
लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग को इसकी जानकारी देने के बाद भी किसी प्रकार की पहल नहीं की जा रही है। आयरनयुक्त पानी उगल रहे हैंडपंप के जल को शुद्ध करने के लिए किसी प्रकार की पहल भी नहीं हो रही है। भाजपा सरकार से आवेदन निवेदन कर थक चुके हैं। कांग्रेस की सरकार आने पर कुछ आस जगी है। एक माह सरकार गठन होने के बाद भी किसी प्रकार की पहल नहीं की जा रही है। शुद्ध पेयजल के लिए सलिहापारा बड़ेपराली गांव में दो अलग अलग हैंडपंप उपयोग के लायक नहीं हंै। एक हैंडपंप के कल पूर्जे गायब तो दूसरे से आयरनयुक्त पानी आने से परेशानी हो रही है। लाल पानी का उपयोग करने से ग्रामीणों की सेहत भी खराब हो रही है। इस खराब पानी को किसी बरतन में रखने पर काला हो जाता है।
तालाब का जलस्रोत ही पेयजल का सहारा
ग्रामीणों ने बताया कि पेयजल के रूप में झरिया का पानी पीने मजबूर हैं। बरसात के दिनों में भी इसी तालाब का पानी उपयोग करते है। शासन प्रशासन द्वारा शुद्ध पेयजल ग्रामीणों को उपलब्ध कराने मे नाकाम है। ग्रामीणों के शिकायत के बाद हंैडपंप खनन नहीं किया गया।