रैली निकालकर देश के महामहिम राष्ट्रपति और प्रदेश के महामहिम राज्यपाल के नाम ज्ञापन सौंपा।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में आदिवासी समाज ने निकली रैली, बोले-हमारे सांसद गूंगे
दुर्गूकोंदल. देशभर में निवासरत 10 लाख आदिवासियों को उनके जमीन से बेदखल करने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को वापस लिए जाने और वन अधिकार अधिनियम 2005-06 को पुन: लागू करने की मांग को लेकर विकासखंड के आदिवासी समुदाय ने दुर्गूकोंदल ब्लाक मुख्यालय के बाजार मंडी में सभा का आयोजन किया। दुर्गूकोंदल के मुख्य चौक से थानापारा और तहसील दफ्तर तक रैली निकालकर देश के महामहिम राष्ट्रपति और प्रदेश के महामहिम राज्यपाल के नाम ज्ञापन सौंपा।
बाजार मंडी दुर्गूकोंदल में आयोजित सभा में सर्व आदिवासी समाज अध्यक्ष श्रीराम बघेल ने कहा कि सरकार किसी भी पार्टी की हो फैसला जनभावना को देखकर करना चाहिए। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला आदिवासियों के खिलाफ दिया है गतल है। 10 लाख देश के आदिवासियों के उनके काबिज जमीन से बेदखल किया जाए, ये कहीं भी न्याय संगत नहीं है। कहीं न कहीं यह सरकार के इशारे पर फैसला हुआ है। सरकार आम जनता की चुनी सरकार है, इसलिए आदिवासियों के ओर से दलील देकर फैसले को रोक सकते थे, लेकिन फैसला बिना किसी दलील देने से जाहिर हो रहा कि इस साजिश में केन्द्र सरकार भी शामिल है। वहीं संविधान में उल्लेखित पेशा कानून के जानकार जगत मरकाम ने कहा कि 13 फरवरी को आदिवासियों को जमीन से बेदखल का फैसला आया है, विरोध से रोक लगी है।
अगली सुनवाई 10 जुलाई को है, आज ही सभी गांठ बांध लें, यदि अब भी सो गए तो सोच लो अगली सुनवाई पूर्ण रूप से बेदखली की होगी। क्योंकि यह जान लें आदिवासी सांसद, विधायक चाहते तो हमें सडक़ में आने की जरूरत नहीं होती, पर जो भी प्रतिनिधि चुने हैं, वह गूंगे बहरे के समान हैं। इसलिए पेशा कानून के तहत गांव के जमीन की सीमाएं बनाकर पत्थर गाड़ दें और सूचना कलक्टर और अन्य अधिकारी को दें, सुप्रीम कोर्ट फैसला तो क्या बालबांका नहीं करेगी।
वहीं, पूर्व सांसद सोहन पोटाई ने कहा कि हमारे सांसद, विधायक कहते हैं, पर आज जो सांसद विधायक, सरपंच, जिला पंचायत चुने हैं, वह हमारे नहीं हैं, वह सिर्फ भाजपा और कांग्रेस के हैं। यदि हम अपने सांसद विधायक कहते हैं तो समाज से सांसद विधायक चुने, जो हमारे अनुसार कार्य करेंगे। सर्व आदिवासी समाज प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष बीएसए रावटे, कोमल हुपेंडी, सुकलाल सलाम, देवलाल नरेटी, नागसाय तुलावी शकुंतला नरेटी, सामसाय दुग्गा, नोहरसिंह तुलावी, सविता उयके, अमिता उयके ने कहा कि बाबा साहेब ने हमें संवैधानिक अधिकार दिया है, लेकिन संवैधानिक अधिकार को खत्म कर सरकार आदिवासियों को मिटाना चाहती है। इसीलिए एक-एक कर प्रयोग कर रही है।
पहले भूमि अधिग्रहण कानून लाई, एससी एसटी एक्ट कानून खत्म करने का फैसला सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया, विरोध हुआ तो वापस लेना पड़ा। केंद्र सरकार की मंशा से साफ जाहिर हो रहा कि वह संवैधानिक अधिकार के साथ समूल आदिवासी और मूल निवासियों को नष्ट करना चाहती है। जमीन से बेदखल करने का फैसला षडयंत्र है। इस फैसले में सिर्फ सुप्रीम कोर्ट ही नहीं बल्कि केंद्र सरकार भी शामिल है। केन्द्र सरकार के इशारे पर यह फैसला लिया गया है, पर हम तब तक लड़ेंगे, जब तक सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले को पूर्ण रूप से निरस्त नहीं करेगी।
ये है प्रमुख मांगें आदिवासियों को जंगल से बेदखल करने के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को वापस लेकर वन अधिकार अधिनियम 2005-06 को पूर्णत: लागू किया जाए। संविधान के अनुच्छेद 244 (1) (क) के अन्तर्गत पांचवी अनुसूची अधिसूचित क्षेत्र में पारम्परिक ग्राम सभा अनुच्छेद 13 (3) (क) के प्रस्ताव के बिना किए जा रहे खनिज वन संपदा का दोहन तत्काल बंद किया जाए। संविधान के अनुच्छेद 342 के अन्तर्गत आने वाले जनजाति समुदाय को वनवासी एवं वनबंधु कहना बंद किया जाए। अनुसूचित क्षेत्र में किसी भी प्रकार के मादक पदार्थों के व्यापार पर तत्काल रोक लगाई जाए। पांचवी अनुसूचित क्षेत्र में खनिज संपदा और वन संसाधनों के दोहन, उत्खनन एवं परिवहन का अधिकार पारंपरिक ग्राम सभा के माध्यम से आदिवासी समुदाय को दिया जाए।
अनुसूचित क्षेत्र में गौण खनिज व गौण लघुवनोपज के क्रय विक्रय का संपूर्ण अधिकार पारंपरिक ग्राम सभा को दिया जाए। विकासखंड मुख्यालय दुर्गूकोंदल में जिला सहकारी केंद्रीय बैंक की शाखा खोला जाए। सार्वजनिक उपक्रम व उत्खनन क्षेत्र में लगे श्रमिकों को श्रम अधिनियम का पालन करते हुए वास्तविक मजदूरी दिया जाए। इस दौरान ललित नरेटी, शोपसिंह आचला, देवेन्द्र टेकाम, ओमप्रकाश नरेटी, मुकेश बघेल, जगतराम दुग्गा, अनुराम मरकाम, हेमलता नरेटी, बैजनाथ नरेटी, अघन नरेटी, रमशीला कोमरा, उमेश्वरी मंडावी, सूरज दर्रो, रामधीन दर्रो, आनंद माहवे, सोमल जैन सहित हजारों की संख्या में दुर्गूकोंदल विकासखंड के आदिवासी, मूलनिवासी उपस्थित थे।