आज तक न तो एकल शिक्षक के भरोसे संचालित हो रहा है। शासन-प्रशासन द्वारा दावा किया जा रहा कि शिक्षा के स्तर में सुधार हो रहा है। पर हकीकत माओवादी क्षेत्र में कुछ और ही बयां कर रही है। इसी तरह से अधिकांश स्कूल एकल शिक्षकों के भरोसे चल रहा है। कुछ स्कूलों में गुरुजी नहीं आते हैं। रसोइया और चपरासी ही बच्चों का भविष्य गढ़ रहे हैं। मरदा खास के छात्रों ने कहा कि शिक्षा विभाग गुरुजी नहीं दे पा रहा तो स्कूल में बंद करा दें और पालकों ने कहा आज शिक्षक दिवस पर विरोध में स्कूल में ताला बंद करेंगे।
यहां पढ़ रहे 48 बच्चों की जिम्मेदारी एक मात्र शिक्षक मोहनलाल वर्मा को सौंप उन्हें सुपरमेन बना देना चाहती है। एक ही दिन में तीनों कक्षाओं के कुल 18 कालखंड होते है । आप इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि शिक्षक मोहनलाल कोई सुपरमेन ही होंगे जो इतने कालखण्डों को एक साथ वहन करते हैं। इस पर भी कभी डाक तो कभी शालेय रिपोर्ट की जिम्मेदारी अलग से पूरा करनी होती है। अगर कभी कोई ट्रेनिंग या अन्य कार्य से बाहर जाना पड़े तो स्कूली बच्चे ही शिक्षक के भूमिका में आ जाते हैं। आपसी सामंजस्य से दिनभर पढ़ाई कर भविष्य के सपना को गढ़ते हैं। ऐसा नहीं कि यहां के लोगों ने शिक्षकों की मांग के लिए आवेदन निवेदन नहीं किया है।
पालकों ने बताया कि बार-बार और हजार बार मांगों किया गया। शिक्षकों की कमी दूर करने के लिए सभी जगह गुहार पहुंचाया पर किसी को गरीबों के बच्चों के भविष्य से कोई सरोकार नहीं लग रहा है। तभी तो एक मात्र शिक्षक के भरोसे 48 बच्चों का भविष्य थोप दिया गया है। शिक्षक मोहनलाल को कोई मलाल नहीं की अकेले हंै। पर उन्हें भी बच्चों के भविष्य की चिंता रहती है। समय पर कोर्स पूरा करना, परीक्षाएं लेना रिजल्ट बनाना और आगे की कक्षाओं के लिए बच्चों को तैयार करना काफी चुनौती पूर्ण कार्य है। जिसे वह निभा रहे हैं। पर कोई सहयोगी मिल जाता तो और भी बेहतर परिणाम की अपेक्षा की जा सकती है, लेकिन अबतक विभाग द्वारा इस पर कोई भी पहल न करना समझ से परे है।