पूरा जोर, फिर भी 125 शाला शौचालयविहीन
शासन-प्रशासन का पूरा जोर शौचालय बनाने के लिए है। इसके लिए कलक्टर ने एक
बार पूरा शिक्षा विभाग को दुर्गूकोंदल इलाके में शौचालय बनवाने के लिए
कांकेर। शासन-प्रशासन का पूरा जोर शौचालय बनाने के लिए है। इसके लिए कलक्टर ने एक बार पूरा शिक्षा विभाग को दुर्गूकोंदल इलाके में शौचालय बनवाने के लिए भेज दिया था। दिन-रात काम हुआ फिर भी अभी तक जिले में 125 प्राथमिक एवं जूनियर स्कूलों में शौचालय नहीं बन पाए हैं। यही नहीं जिले में 299 शौचालयों का मरम्मत कार्य करवाया जाना था लेकिन अभी तक 271 का ही मरम्मत कार्य हो पाया है। सबसे खराब स्थिति दुर्गूकोंदल क्षेत्र की है, जहां पर आज भी 59 शालाओं में शौचालय नहीं है और नौनिहालों को शौच के लिए बाहर ही जाना पड़ता है।
बहुत जगह तो शौचालय बनने के बावजूद वह उपयोग के लायक नहीं है। जिले में इस वर्ष 453 माध्यमिक व प्राथमिक शालाओं में शौचालय बनने थे। इसके लिए शासन से बजट स्वीकृत हो गया था। इसके बावजूद एक अक्टूबर को आई रिपोर्ट के अनुसार अबतक 328 शालाओं में ही शौचालय का कार्य पूरा हो पाया है। अब भी 125 विद्यालयों में शौचालय का कार्य अधूरा है। विदित हो कि केंद्र सरकार ने सभी शालाओं में केंद्र सरकार ने दो अक्टूबर तक शौचालय बन जाने का आदेश दिया था।
पत्रिका में खबर छपने के बाद दुर्गूकोंदल क्षेत्र में कलक्टर ने सभी शिक्षा विभाग के अधिकारियों को भेजा था और तत्काल मजदूरों की व्यवस्था कर वहां जल्द शौचालय निर्माण के आदेश दिए थे। इसके बावजूद दुर्गूकोंदल क्षेत्र में आज भी 75 जूनियर व प्राथमिक शालाओं में शौचालय का ही काम पूरा हो पाया है। स्थिति यह है कि बच्चे शौच के लिए खेतों या जंगलों में आज भी जाते हैं।
अब 63 टायलेट ही बना पाए
शौचालयों के बनने की स्थिति के बारे में ब्लाक वार डाटा पर नजर डालें तो सबसे ज्यादा शौचालय दुर्गूकोंदल ब्लाक में बनाए जाने थे। वहां पर कुल 134 शौचालय बनाने की स्वीकृति मिली थी लेकिन अभी तक 59शालाओं में शौचालय नहीं बन पाए हैं। इसके बाद कोयलीबेड़ा क्षेत्र का नम्बर आता है। यह दोनों क्षेत्र माओवाद से प्रभावित इलाका है। यहां पर 115 शौचालय बनाए जाने थे लेकिन अभी तक 63 शौचालय ही बन पाए हैं। 52 विद्यालय अब भी शौचालय विहीन हैं। चारामा और कांकेर की स्थिति सबसे ठीक है। चारामा में कुल 52 शौचालय बनाए जाने थे और सभी कार्य पूर्ण हो गए हैं।
बीईओ व बीआरसी से जानकारी करूंगा। आखिर अभी तक शौचालय क्यों नहीं बन पाए।
चंदन कुमार, सीईओ, जिपं कांकेर