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आखिरकार कन्नौज क्यों गए थे प्रभु श्रीराम

locationकन्नौजPublished: Aug 05, 2020 06:06:18 pm

Submitted by:

Mahendra Pratap

रावण वध कर लंका विजय के बाद ब्रहम हत्या दोष के प्रायश्चित को कन्नौज आए थे प्रभु श्री राम

आखिरकार कन्नौज क्यों गए थे प्रभु श्रीराम

आखिरकार कन्नौज क्यों गए थे प्रभु श्रीराम

कन्नौज. कन्नौज की पौराणिक मान्यताओं की अपनी अलग महत्ता है। लंका विजय के बाद प्रकांड पंडित रावण की हत्या का प्रायश्चित करने प्रभु श्रीराम कन्नौज आए थे। गंगा तट पर बना चिंतामणि घाट इसकी गवाही देता है प्रभु श्रीराम के चरण रज पर माथा लगाने को हजारों भक्तों यहां पर बने मंदिर में पहुंचते हैं।
मोक्षदायिनी गंगा और काली के तट पर बना चिंतामणि मंदिर भगवान राम के यहां आने की गवाही देता है। कालांतर में राम भक्तों ने इसे मंदिर का रूप दे दिया। मान्यताओं के अनुसार लंका विजय के बाद ब्रह्महत्या दोष के निवारण के लिए प्रभु राम गुरु विश्वामित्र के पास गए। उन्होंने कुशा नगरी यानी कि कन्नौज के उत्तर में जंगल में तपस्या कर रहे मुनि चिंतामणि के पास जाने को कहा श्री राम पुष्पक विमान से सीता लक्ष्मण गुरु विश्वामित्र और हनुमान के साथ कन्नौज आए। माता पिता ने अपने हाथों से चिंतामणि घाट पर ब्राह्मणों के लिए भोजन बनाया था। इस स्थान को सीता रसोई के नाम से जाना जाता है वर्तमान में भी वही यज्ञशाला मौजूद है जहां श्रीराम ने यज्ञ किया था। मुनि चिंतामणि विश्वामित्र के पिता राजा गाधी जोकि कन्नौज के राजा हुआ करते थे उनके कुल गुरु थे लोगों का दावा है कि इसका उल्लेख श्रीमद्भागवत में मिलता है।
भगवान श्रीराम के यहां आने का एक और चमत्कार मंदिर परिसर में देखने को मिलता है वह एक पेड़ में है घाट पर हजारों साल पुराना कदम का पेड़ है। ग्रामीण बताते हैं कि पेड़ की छाल निकालने पर तने पर राम नाम की आकृति उभर कर आती है। मान्यता है कि यहां हर मनोकामना पूरी होती है 50 वर्षीय नंदराम बताते हैं यह घाट पहले रामघाट के नाम से जाना जाता था। कदंब के पेड़ को ग्रामीण राम नाम से पुकारते हैं। इनके अतिरिक्त गांव की स्थानीय निवासी पृथ्वीराज बताते हैं कि पुरखों से हमने यहां प्रभु के आने की बात सुन रखी है जब से होश संभाला है पेड़ को उसी अवस्था में देख रहे हैं। वही मंदिर के प्रधान पुजारी रामसेवक दास बताते हैं कि भगवान श्री राम ने ब्राह्मणों के कल्याण के लिए अपनी चरण पादुका ने चिंतामणि घाट पर छोड़ी थी जो यहां के मंदिर में स्थापित हैं जिसको भक्तगण पूरी आस्था के साथ पूछते हैं।

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