रावण वध और रावण दहन के इस कार्यक्रम को देखने के लिए हजारो लोगों की भीड़ उमड़ती है। इस रावण दहन की इस परम्परा को भारत वर्ष में एक कन्नौज ही ऐसा जिला है जहां रावण दशहरा को नहीं बल्कि पूर्णिमा को ही जलाया जाता है। जिसके पीछे एक तर्क है।
दशहरा को नहीं निकले थे रावण के प्राण
इत्र नगरी कन्नौज में पूर्णिमा के दिन रावण दहन को लेकर साहित्यकार पंडित रमेश तिवारी उर्फ़ विराम जी का मानना है कि इस नगरी में शरद पूर्णिमा के दिन रावण बध होकर का अन्तिम संस्कार के रूप में रावण दहन किया जाता है। इसके पीछे का कारण यह है कि भगवान श्रीराम ने जो रावण की नाभि में वाण मारा था। उससे रावण ने दशहरा को प्राण नही त्यागे थे। वल्कि रावण के प्राण शरद पूर्णिमा वाले दिन निकले थे।
पूर्णिमा के दिन रावण दहन का यह है राज
इस बीच भगवान राम ने अपने भाई लक्ष्मण को रावण के पास उसके विद्वान होने की कला सीखने के लिए भेजा था। क्योंकि रावण प्रकाण्ड पण्डित वेद और कलाओं में सर्वश्रेष्ठ था। वहीँ रावण ने शरण पूर्णिमा को जब चन्द्रमा से अमृत की वर्षा होती है, उस दिन प्राण त्याग दिये थे। इसी बजह से कन्नौज वासी सही दिन रावण का दहन कर उसकी आत्मा को शांति प्रदान करते हैं। जिसकी बजह से ये परम्परा निरंतर आज तक चल रही है और यहां पर रावण दशहरा के दिन न दहन होकर पूर्णिमा के दिन होता है।