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मुस्लिम बिरादरी में भी पैदा होंगे अभिमन्यु, गर्भावस्था में पढ़ रही हैं सूरह-ए-फातिहा

locationकानपुरPublished: Jul 24, 2019 01:26:40 pm

२५ गर्भवती मुस्लिम महिलाएं इस प्रोजेक्ट में हुईं शामिलपहली डिलीवरी सितम्बर-अक्टूबर के बीच होने की उम्मीद

Pregnant Muslim women

मुस्लिम बिरादरी में भी पैदा होंगे अभिमन्यु, गर्भावस्था में पढ़ रही हैं सूरह-ए-फातिहा

कानपुर। अब मुस्लिम परिवारों में भी अभिमन्यु पैदा होंगे। गर्भ में पल रहे शिशु को संस्कार देने के लिए मुस्लिम महिलाएं भी इस प्रोजेक्ट में शामिल हुई हैं। मेडिकल कॉलेज के जच्चा-बच्चा अस्पताल में २५ गर्भवती मुस्लिम महिलाएं सूरह-ए-फातिहा बढ़ रही हैं। मुस्लिम महिलाओं की भी चाहत है कि उनके गर्भ में पल रहा बच्चा संस्कारवान बने। गर्भवती महिलाओं के जरिए उनके गर्भ में पल रहा बच्चा भी कुरान की आयत सुन रहा है।
चार महीने की गर्भवती महिलाएं शामिल
मेडिकल कॉलेज के जच्चा-बच्चा अस्पताल में गर्भ संस्कारशाला में चार महीने तक की गर्भवती महिलाओं को ही शामिल किया जाता है। गायत्री परिवार के आओ गढ़ें संस्कारवान पीढ़ी प्रोजेक्ट की प्रांतीय समन्वयक और जच्चा-बच्चा अस्पताल प्रोजेक्ट की मार्गदर्शक डॉ. संगीत सारस्वत ने बताया कि चार से पांच महीने से अधिक गर्भधारण करने वाली महिलाओं में संस्कार का उतना फायदा नहीं मिलता। इस कारण तीन से चार महीने के गर्भ से ही महिलाओं को इसमें शामिल कर लिया जाता है।
यौगिक क्रियाओं के साथ सादा भोजन
भोजन का शरीर पर सीधा असर पड़ता है। सात्विक भोजन व्यक्ति को शांतचित्त रखता है और तामसी भोजन उसे गुस्सैल और हिंसक बनाता है, ऐसा व्यक्ति चारित्रिक रूप से भी भटका हुआ होता है। इसलिए गर्भस्थ शिशु शांत चित्त वाला हो इसलिए उसकी मां को सात्विक और सादा भोजन खाना फायदेमंद रहता है। गर्भसंस्कारशाला में गर्भवती महिलाओं को सादा भोजन खिलाने के साथ-साथ यौगिक क्रियाओं में भी शामिल किया जाता है, ताकि शरीर स्वस्थ रहे और गर्भ में पहल रहे शिशु की भी सेहत बनी रहे।
सितम्बर-अक्टूबर में होगी पहली डिलीवरी
प्रोजेक्ट में शामिल मुस्लिम महिलाओं में पहली डिलीवरी सितम्बर-अक्टूबर में होने की उम्मीद जताई जा रही है। इन महिलाओं को धर्मानुसान जाप कराने, पौष्टिक भोजन के साथ-साथ गर्भ संवाद भी कराया जा रहा है। डॉक्टरों के मुताबिक मां अपने बच्चे से बात करती है और हर तीन महीने में यह प्रक्रिया तेज हो जाती है।
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