१० साल पहले कर दिया सेवानिवृत्त
बताया जाता है कि सिविल लाइंस इलाके का करम इलाही १९२९ से बीआईसी की कूपर एलन ब्रांच में अप्रेंटिस के रूप में भर्ती हुआ था। जिसके बाद प्रमोशन पाकर वह जूनियर स्टाफ में शामिल हो गया था। जन्मतिथि के मुताबिक उसे १९७६ में सेवानिवृत्त होना था, पर उसे १३ जून १९६९ को ही सेवानिवृत्त कर दिया गया। करम ने इसका विरोध जताया और बताया कि उसे दस साल बाद सेवानिवृत्त होना है, इस बावत उसने अपनी जन्मतिथि के कई प्रमाण पत्र दिए पर उसकी सुनवाई नहीं की गई।
बताया जाता है कि सिविल लाइंस इलाके का करम इलाही १९२९ से बीआईसी की कूपर एलन ब्रांच में अप्रेंटिस के रूप में भर्ती हुआ था। जिसके बाद प्रमोशन पाकर वह जूनियर स्टाफ में शामिल हो गया था। जन्मतिथि के मुताबिक उसे १९७६ में सेवानिवृत्त होना था, पर उसे १३ जून १९६९ को ही सेवानिवृत्त कर दिया गया। करम ने इसका विरोध जताया और बताया कि उसे दस साल बाद सेवानिवृत्त होना है, इस बावत उसने अपनी जन्मतिथि के कई प्रमाण पत्र दिए पर उसकी सुनवाई नहीं की गई।
१९७२ में दर्ज कराया मुकदमा
सुनवाई न होने पर करम ने १९७२ में कोर्ट से नौकरी वापस दिलाने की गुहार लगाई। जिसमें उसने यूनियन ऑफ इंडिया, टेनरी एंड फुटवियर कारपोरेशन इंडिया लिमिटेड और ब्रिटिश इंडिया कारपोरेशन लि. के फैसले का विरोध किया था। करम का कहना था कि बीआईसी के अधिकारी उसकी जन्मतिथि १९०९ साबित करने पर आमादा हैं और इसी को आधार बनाकर उसे समय से पहले ही सेवानिवृत्त कर दिया गया है।
सुनवाई न होने पर करम ने १९७२ में कोर्ट से नौकरी वापस दिलाने की गुहार लगाई। जिसमें उसने यूनियन ऑफ इंडिया, टेनरी एंड फुटवियर कारपोरेशन इंडिया लिमिटेड और ब्रिटिश इंडिया कारपोरेशन लि. के फैसले का विरोध किया था। करम का कहना था कि बीआईसी के अधिकारी उसकी जन्मतिथि १९०९ साबित करने पर आमादा हैं और इसी को आधार बनाकर उसे समय से पहले ही सेवानिवृत्त कर दिया गया है।
तीन जानें चली गईं
मुकदमा दर्ज कराने के बाद १९७८ में करम की मौत हो गई थी। जिसके बाद उसके परिवार ने मुकदमे की पैरवी जारी रखी। जिसमें वेतन व डीए के हिसाब से सेवनिवृत्ति तक के वेतन और भत्ते का १८ प्रतिशत ब्याज के साथ भुगतान कराने की गुहार लगाई गई। पहला फैसला १९९३ में करम के पक्ष में आया। बीआईसी ने इसके खिलाफ अपील की पर आखिकार २१ जनवरी २०१९ को बीआईसी की सारी अपील खारिज हो गईं और निचली अदालत के आदेश को जारी रखा गया है, जिसमें करम इलाही को सही ठहराया गया। मगर इसी बीच उसकी पत्नी और बड़े बेटे की भी मौत हो चुकी है।
मुकदमा दर्ज कराने के बाद १९७८ में करम की मौत हो गई थी। जिसके बाद उसके परिवार ने मुकदमे की पैरवी जारी रखी। जिसमें वेतन व डीए के हिसाब से सेवनिवृत्ति तक के वेतन और भत्ते का १८ प्रतिशत ब्याज के साथ भुगतान कराने की गुहार लगाई गई। पहला फैसला १९९३ में करम के पक्ष में आया। बीआईसी ने इसके खिलाफ अपील की पर आखिकार २१ जनवरी २०१९ को बीआईसी की सारी अपील खारिज हो गईं और निचली अदालत के आदेश को जारी रखा गया है, जिसमें करम इलाही को सही ठहराया गया। मगर इसी बीच उसकी पत्नी और बड़े बेटे की भी मौत हो चुकी है।