आपको बता दें कि सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार सूर्यास्त के पहले तक अंतिम संस्कार बेहतर रहता है, लेकिन हालातों को देख यहां रात के आठ-नौ बजे तक लकड़ियां जल रही हैं। मंगलवार को शहर के सबसे बड़े श्मसान भैरो घाट का मंजर देख सैकड़ों आंखें रो पड़ीं। यहां तड़के ही दस लाशें पहुंच चुकी थीं ताकि बाद में कतार में लगने का दंश न झेलना पड़े। पुरोहित पुत्तन मिश्रा कहते हैं कि यहां आने वाले लोग शवों का अंतिम संस्कार जल्द करा यहां आने वाली भीड़ से बचना चाहते हैं। उनका कहना था कि पिछले दस दिनों में जितनी लाशें यहां एक साथ देखीं हैं उतनी 40-45 दिन मिलाकर नहीं देखी। सोमवार को 70 शवों का संस्कार यहां हुआ था। ऐसा ही हाल मंगलवार को रहा।
भगवतदास घाट की सह संचालिका प्रियंका द्विवेदी कहती हैं कि पहली बार लाशों का ऐसा तांता लगा है, दिल झकझोर देने वाला दृश्य है। यहां हर आधे घंटे पर दो-तीन शव पहुंच रहे हैं। सोमवार को यहां 41 शवों की अंत्येष्टि हुई। इसी तरह बिठूर घाट के ठेकेदार अमिताभ बाजपेई कहते हैं कि भैरो घाट में जब टोकन सिस्टम चालू हुआ तो लोग बिठूर की तरफ रुख करने लगे। सोमवार से शवों की संख्या में और इजाफा हो गया है। हमें अलग से लकड़ियों का इंतजाम करना पड़ा है। सोमवार को 45 अंतिम संस्कार हुए थे। हालात बहुत बदतर हैं लोग सावधानी बरतते रहें।