इस कंपनी से किया करार
प्रोफेसर घोष ने बताया कि संस्थान ने कार के निर्माण के लिए विटॉल एविएशन कंपनी से 15 करोड़ का करार किया है। एयरोस्पेस इंजीनियरिंग विभाग अगले पांच साल के अंदर 800 से 1000 किलोग्राम का प्रोटोटाइप मॉडल तैयार करेगा। सफल परीक्षण के बाद कार को मुंबई में तैयार किया जाएगा, जहां इसकी फैक्ट्री लगाने की योजना है। मॉडल को मेक इन इंडिया कार्यक्रम के अंतर्गत तैयार किया जाएगा। प्रोफेसर ने बताया कि एयर टैक्सी को सेना के रेस्क्यू ऑपरेशन में काम लाया जा सकता है। अमूमन एयरक्राफ्ट, हेलीकॉप्टर के इंजन से काफी आवाज आती है, जिसकी वजह से दुश्मनों को उसके आने की जानकारी मिल जाती है। पहाड़ी और बर्फ वाले क्षेत्रों में भी इसे उड़ाना आसान होगा और दुश्मन कहां छिपा बैठा है इसमें लगे हाईक्वालिटी के कैमरों के जरिए खोजा जा सकता है।
10 मई को किया गया परीक्षण
प्रोफेसर घोष ने बताया कि संस्थान में 10 मई को 20 किलोग्राम भार के अनमैंड एरियल व्हीकल (यूएवी) को 20 मिनट तक हवा में उड़ाकर सफल परीक्षण किया था। बिन पायलट यूएवी को तकनीकी सहायता लार्सन एंड टूब्रो (एलएंडटी) कंपनी से भी मिली है। प्रोफेसर ने कहा, आइआइटी के विशेषज्ञ पांच साल में हवा में उड़ने वाली कार का मॉडल तैयार करेंगे। इसे आसानी से उड़ाया और उतारा जा सकेगा। प्रफोसर के मुताबिक, हवा में उड़ने वाली कार में सुरक्षा की खास व्यवस्था होगी। कई तरह के सेंसर लगे रहेंगे। किसी तरह की आपदा होने पर किस तरह से पैराशूट का इस्तेमाल किया जाए, उस पर मंथन चल रहा है। इंजन में कम से कम आवाज हो, एयर ट्रैफिक को नुकसान न पहुंचे, इस पर भी काम चल रहा है।
रनवे की जरूरत नहीं
प्रोफेसर ने बताया कि यह कार सीधे ’टेक ऑफ’ और ’लैंडिंग’ कर सकेगी। इसके लिए रनवे की जरूरत नहीं पड़ेगी। बर्फ में फंसे सेना के जवानों को निकालने के लिए यह कार बर्फीले पहाड़ पर उतर जाएगी और रेस्क्यू ऑपरेशन को अंजाम देकर फिर से वहीं से उड़ान भर लेगी। घने जंगलों में जगह मिलने पर इसे वहां भी लैंड किया जा सकता है। प्रोफेसर ने बताया कि यह कार नक्सलियों के खिलाफ सुरक्षाबलों के लिए कवच का काम कर सकती है। नक्सली जंगलों में डेरा जमाए रहते हैं। कार के जरिए उनकी सही लोकेशन की जानकारी मिलने पर सुरक्षाबल के जवान वहां पहुंच कर उन्हें मार सकते हैं। प्रोफेसर ने बताया कि यह कार पूरी तरह स्वदेशी कलपुर्जो से तैयार की गई है।