सांस की नली से जुड़ी बीमारियां
फेफड़ों के बाद सबसे ज्यादा सांस की नली से जुड़ी बीमारियां सामने आई हैं। कई बीमारियां ऐसी हैं जिन्हें पहचान पाना मुश्किल हो रहा है। बीते एक दशक में तीन-चार नई बीमारियां गम्भीर रूप में सामने आई हैं इन बीमारियों का सीधा सम्बंध वायु प्रदूषण से है। देश में 32 फीसदी लोगों को फेफड़े से जुड़ी बीमारियां हैं वहीं कानपुर में 40 फीसदी लोगों को बीमारी किसी न किसी तरह हो रही है। यह जानकारी मुरारी लाल चेस्ट अस्पताल के विशेषज्ञ डॉ. आनंद कुमार ने दी। वह मेडिकल कॉलेज में आयोजित आईएमए सीजीपी के समापन सत्र पर विशेषज्ञों से मुखातिब थे।
फेफड़ों के बाद सबसे ज्यादा सांस की नली से जुड़ी बीमारियां सामने आई हैं। कई बीमारियां ऐसी हैं जिन्हें पहचान पाना मुश्किल हो रहा है। बीते एक दशक में तीन-चार नई बीमारियां गम्भीर रूप में सामने आई हैं इन बीमारियों का सीधा सम्बंध वायु प्रदूषण से है। देश में 32 फीसदी लोगों को फेफड़े से जुड़ी बीमारियां हैं वहीं कानपुर में 40 फीसदी लोगों को बीमारी किसी न किसी तरह हो रही है। यह जानकारी मुरारी लाल चेस्ट अस्पताल के विशेषज्ञ डॉ. आनंद कुमार ने दी। वह मेडिकल कॉलेज में आयोजित आईएमए सीजीपी के समापन सत्र पर विशेषज्ञों से मुखातिब थे।
हवा में शामिल है घातक केमिकल
डॉ. आनंद कुमार ने बताया कि हवा में मौजूद घातक केमिकल किस तरह की बीमारी दे सकता है इसका अंदाजा लगा पाना मुश्किल होता है। कुछ बीमारियां तो ज्ञात हैं उनके इलाज की गाइडलाइन भी है मगर कुछ बीमारियों की पहचान कठिन होती है। ऐसे में रेडियोडायग्नोसिस के क्षेत्र में आया क्रांतिकारी बदलाव काफी मददगार साबित हो रहा है। सीटी स्कैन इसमें बड़ा राहत दे रहा है। किसी जमाने में फेफड़े में पड़ा हर दाग टीबी मान लिया जाता था। मगर अब सीटी स्कैन से दाग को ठीक से समझा जा सकता है।
डॉ. आनंद कुमार ने बताया कि हवा में मौजूद घातक केमिकल किस तरह की बीमारी दे सकता है इसका अंदाजा लगा पाना मुश्किल होता है। कुछ बीमारियां तो ज्ञात हैं उनके इलाज की गाइडलाइन भी है मगर कुछ बीमारियों की पहचान कठिन होती है। ऐसे में रेडियोडायग्नोसिस के क्षेत्र में आया क्रांतिकारी बदलाव काफी मददगार साबित हो रहा है। सीटी स्कैन इसमें बड़ा राहत दे रहा है। किसी जमाने में फेफड़े में पड़ा हर दाग टीबी मान लिया जाता था। मगर अब सीटी स्कैन से दाग को ठीक से समझा जा सकता है।
कंप्यूटर-मोबाइल से बढ़ रहे आईरोग
पद्मश्री डॉ. आरके ग्रोवर ने कहा कि प्रदूषण और इलेक्ट्रानिक गैजेट्स से ड्राई आई रोग बढ़ रहा है। लोगों के आंखों का आंसू सूख रहा है। तेजी से बीमारी बढ़ रही है। अधिक समय तक कम्प्यूटर स्क्रीन के सामने रहना, मोबाइल और टीवी के अधिक इस्तेमाल से युवाओं और बच्चों में यह बीमारी अधिक बढ़ी है। माइक्रोसर्जरी आंखों की कई बीमारियों के लिए जादू की तरह काम कर रही है। माइक्रोसर्जरी से चश्मा भी हटाया जा सकता है।
पद्मश्री डॉ. आरके ग्रोवर ने कहा कि प्रदूषण और इलेक्ट्रानिक गैजेट्स से ड्राई आई रोग बढ़ रहा है। लोगों के आंखों का आंसू सूख रहा है। तेजी से बीमारी बढ़ रही है। अधिक समय तक कम्प्यूटर स्क्रीन के सामने रहना, मोबाइल और टीवी के अधिक इस्तेमाल से युवाओं और बच्चों में यह बीमारी अधिक बढ़ी है। माइक्रोसर्जरी आंखों की कई बीमारियों के लिए जादू की तरह काम कर रही है। माइक्रोसर्जरी से चश्मा भी हटाया जा सकता है।