कानपुर

9वीं सदी के लाखौरी ईट से निर्मित इस मंदिर में छिपे हैं कई चमत्कारी रहस्य

घाटमपुर तहसील के भीतरगांव स्थित ऐतिहासिक मंदिरों की है पूरी श्रृंखला, चंदेल वंशीस राजाओं ने रखी भी नींव, देश ही नहीं विदेश से आते हैं पर्यटक।

कानपुरFeb 23, 2020 / 12:27 am

Vinod Nigam

9वीं सदी के लाखौरी ईट से निर्मित इस मंदिर में छिपे हैं कई चमत्कारी रहस्य

कानपुर। शहर के करीब 45 किमी की दूरी पर स्थित भीतरगांव ब्लाॅक के प्राचीन सभ्यताओं और अजब-गजब मंदिरों के लिए जाना जाता है। यहां के कई गांवों में एतिहासिक धरोहरें हैं, जिन्हें देखने के लिए देश ही नहीं विदेश से भी पर्यटक आते हैं। हम आपको ऐसे ही लाखौरी ईटों से निर्मित शिवमंदिर से रूबरू कराने जा रहे हैं, जिसकी नींव चंदेल वंशीय राजाओें ने रखी थी। यह मंदिर नवीं सदी का है और पुरातत्प विभाग के अधीन है। मंदिर में भगवान शिव विरोजमान है और महाशिवरात्रि और हठपूजा के दिन यहां पर मेला लगता है।

मंदिर का इतिहास
घाटमपुर मुगल रोड के किनारे स्थित निबियाखेड़ा गांव में 9 वीं सदी में चंदेल राजाओं का बनवाया भद्रेश्वर महादेव का विशाल मंदिर है। यह मंदिर ईंटों से निर्मित है और पुरातत्व विभाग के अधीन है। मंदिर के केयर टेकर रामनरेश ने बताया कि मंदिर का निर्माण लाखौरी ईंटों से कराया गया है। मंदिर में भगवान भद्रेश्वर महादेव विराजमान हैं। मंदिर की कलाकारी देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। पूरा मंदिर ईंटों से बना हुआ है, पिरामिड आकार के इस मंदिर की ऊंचाई 20 मीटर और चैड़ाई 70 मीटर है। मंदिर पर तराशी कई मूर्तियां प्राचीन कलाकृति को दर्शाती है।

साल में दो बार मेला लगता है
मंदिर के केयरटेकर के मुताबिक भद्रश्वर महादेव मंदिर में साल में दो बार मेला लगता है। कहते हैं कि महाशिवरात्रि और हठपूजा के दिन भद्रेश्वर महादेव मंदिर में रहते हैं और आने वाले भक्तों की मन्नत पूरी करते हैं। केयरटेकर कहते हैं कि लाइलाज बीमारियों से पीड़ित सोमवार को सुबह पहर भद्रेश्वर के दर्शन कर ले, वह महज एक माह के अंदर पूर्णरूप से स्वस्थ्य हो जाता है। बताते हैं, मंदिर के दर्शन के लिए कई फिल्म एक्टर, नेता व अन्य नामचीन हस्थियां आकर माथा टेक चुकी हैं।

धरोहरों का खजाना
भीतरगांव निवासी अजय पाल सिंह कहते हैं कि यहां आदिकालीन धरोहरों का ऐसा खजाना मौजूद है, जो किसी भी पर्यटन स्थल से कम नहीं है। इनमें से ज्यादातर धरोहर पुरातत्व विभाग की देखरेख में हैं, लेकिन इन स्थलों पर पानी, बिजली जैसी बुनियादी सुविधाएं मुहैया नहीं होने की वजह से थोड़ी दिक्कत है। वैसे दिन के समय यहां आकर धरोहरों की नक्काशी देखने का अलग ही मजा है। घाटमपुर से यमुना के किनारे और भीतरगांव ब्लाॅक के आधा दर्जन गांवों में अजब-गजब के मंदिर हैं, जो चमत्कार और रहस्यों से भरे हैं।

बरिश की करता भविष्यवाणी
पाल बताते हैं ईटों के मंदिर के अलावा बेंहटा-बुजुर्ग गांव में जगन्नाथ जी का भव्य और प्राचीन मंदिर है। पुरी (उड़ीसा) की तर्ज पर निर्मित मंदिर के मुख्य गुबंद की छत पर लगे मानसूनी पत्थर की विशेषता है कि बारिश के दिनों में मानसून सक्रिय होने से एक सप्ताह पहले ही पत्थर से पानी की बूंदें टपकनी शुरू हो जाती हैं। पत्थर से पानी की बूंदें गिरने का रहस्य वैज्ञानिक भी नहीं सुलझा पाए हैं। बताते हैं बारिश कम और ज्यादा होने की पूरी जानकारी किसानों को इसी मंदिर के जरिए मिलती है।

6वीं सदी का मंदिर
पाल बाते हैं कि भीतरगांव में ईंटों से निर्मित गुप्तकालीन मंदिर है। उत्तर प्रदेश के इतिहास में इसका उल्लेख है। मंदिर के गर्भगृह में किसी देवी-देवता की मूर्ति नहीं है। मंदिर की खोज 6वीं सदी के आसपास अंग्रेज पर्यटक एलेक्जेंडर कनिंघम ने की थी। वर्ष 1908-09 में इसको संरक्षित करने के प्रयास शुरू किए गए। बताया, मंदिर के पट शाम होने से पहले बंद कर दिए जाते हैं। इसके बाद यहां इंसान तो क्या परिंदा भी नहीं भटकता। कहते हैं कि मंदिर के नीचे खजाना छिपा है और जिसका हिफाजत कोई शक्ति करती है।

ककइया ईंटों का मंदिर
पाल के मुताबिक घाटमपुर में हमीपुर रोड के ठीक किनारे ककइया ईंटों से निर्मित प्राचीन मंदिर का निर्माण तकरीबन 5 सौ वर्ष पूर्व दो बहनों ने करवाया था। जो लोगों के घरों में हाथ चक्की से आटा पीसती थीं। लोग मंदिर को पिसनहरी बुढ़िया के मंदिर (मठ) के नाम से जानते हैं। कहते हैं मंदिर में आज भी दोनों बहनों की आहट साफ तौर पर देखी जा सकती है। मंदिर में दूर-दूर से भक्त हैं और मन्नत मांगते हैं। यहां पर आज भी प्रसाद के तौर आटे से बनें प्रसाद चढ़ते हैं।

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