scriptयमुना बीहड पट्टी में बने किन्नर के इस किले से रणबांकुरों ने अंग्रेजों के छुड़ाए थे छक्के | angrej run away from this trans fort make in yamuna bihad kanpur dehat | Patrika News

यमुना बीहड पट्टी में बने किन्नर के इस किले से रणबांकुरों ने अंग्रेजों के छुड़ाए थे छक्के

locationकानपुरPublished: Aug 14, 2018 03:05:29 pm

Submitted by:

Arvind Kumar Verma

ख्वाजा सराएत्माद खान किन्नर ने डकैतों से यात्रियों की सुरक्षा के लिये यह किला बनवाया था, जिससे क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के छक्के छुडा दिये थे।

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यमुना बीहड पट्टी में बने किन्नर के इस किले से रणबांकुरों ने अंग्रेजों के छुड़ाए थे छक्के

कानपुर देहात-उस समय यमुना की बीहड़ पट्टी सन्नाटे से गुजरा करती थी। कोसों दूर तक इंसानों की परछाई भी नहीं दिखती थी। फिर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आज़ादी की जंग छिड़ गई। दरअसल 1857 का दौर था और देश के कोने कोने से आज़ादी की चिंगारी फूट रही थी। घर घर में क्रांतिकारी जन्म ले रहे थे, क्योंकि सभी गुलामी की जंजीरों सर मुक्त होना चाह रहे थे। उस दौरान ख़्वाजाफूल से लेकर रसधान तक रियासतों के किलों को रणबांकुरों ने अपनी रणनीतियों का केंद्र बना रखा था। वहां से योजना तैयार करके अंग्रेजों के खिलाफ षणयंत्र रचा गया और फिर गोरिल्ला युद्ध करके अंग्रेजों को लोहे के चने चबाने को मजबूर कर दिया। बस फिर बीहड़ पट्टी के सन्नाटों को चीरकर वीर सपूतों ने अंग्रेजी सेना को खदेड़ दिया और ख़्वाजाफूल से रसधान तक कब्जा जमा लिया था। आज वही ख़्वाजाफूल कस्बा को लोग खोजाफूल के नाम से जानते हैं।
डकैतों से यात्रियों की सुरक्षा के लिए बना था किला

बता दें कि अकबर का शासनकाल था लेकिन बीहड़ के डकैतों का कहर बुरी तरह बरस रहा था। उस दौरान ख्वाजा सराएत्माद खां नाम के एक किन्नर ने यमुना की बीहड़ पट्टी के सुनसान में डकैतों के आतंक से यात्रियों को बचाने के लिए मुगल रोड के किनारे ऊंची ऊंची दीवारों के एक सुरक्षित किला बनवाया था। इधर जब क्रांति की ज्वाला फूटी तो क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के खिलाफ गोरिल्ला युद्ध करने के लिए इसी किले को केंद्र बना लिया था। फिर एकजुट हुए सपूतों की फौज ने दो हिस्सों में टीमें बनाकर 16 एवं 17 अगस्त की तिथि को जीटी रोड व कालपी रोड पर मोर्चा खोल दिया। फिर एकाएक मौका पाकर अंग्रेजों को खदेड़कर यमुना के किनारे समूचे क्षेत्र पर पूरी तरह कब्जा कर लिया था। 5 नवंबर को तात्या टोपे ने अंग्रेजी अफसर कॉलिन कैम्पवेल की फौज से इस क्षेत्र को मुक्त करा दिया और फिर आक्रोशित क्रांतिकारियों ने 24 नवंबर यहां कब्जा जमाए रखा था।
रसधान किले के ध्वस्त अवशेष बता रहे बर्बरता की दास्तां

इधर झांसी जिले के मोठ के राजा अनूप गिरि के पुत्र ने 22 हजार की सेना के साथ बिलासपुर सिकंदरा की जागीर संभाल ली थी। इसके बाद रसधान को अपना गढ़ बना लिया था। जब 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ वीर सपूत सड़कों पर आ गए तो रसधान की रानी राजरानी ने भी अपने पुत्रों को लेकर अपनी फौज के साथ अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। रानी ने अंग्रेजों से लड़ने की रणनीति बनाई। जिसके तहत किले में घात लगाए छिपे बैठे रणबांकुरे अंग्रेजों पर हमला करने के बाद फिर से यहां छिप जाते थे। फिर दगाबाजों की मदद करने के कारण 20 जून 1860 को अंग्रेजों ने हमला कर फौज को मार रसधान की जागीर जब्त कर ली। अंग्रेजों ने यहां अपना विस्तार किया और 1861 में यहां रियासती राज खत्म कर सिकंदरा को तहसील बना दिया था। वर्तमान में रसधान के धराशाई किले के टूटे फूटे पत्थर व दीवारें उस क्रांति की गवाही दे रहें है।
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