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वतन वापसी बन गई थी मजबूरी, इसलिए परिवार समेत पचास हजार रूपए खर्च कर पहुंचे घर, पढ़िए पूरी स्टोरी

locationकानपुरPublished: Jun 02, 2020 04:33:56 pm

Submitted by:

Arvind Kumar Verma

प्रत्येक दिन घर की दहलीज की यादों ने इतना बेसब्र कर दिया कि घर आने के बाद उनके खुशी का ठिकाना नहीं रहा।

वतन वापसी बन गई थी मजबूरी, इसलिए परिवार समेत पचास हजार रूपए खर्च कर पहुंचे घर, पढ़िए पूरी स्टोरी

वतन वापसी बन गई थी मजबूरी, इसलिए परिवार समेत पचास हजार रूपए खर्च कर पहुंचे घर, पढ़िए पूरी स्टोरी

कानपुर देहात-पंजाब प्रांत में फल बेचकर जीविका चला रहे रसूलाबाद के कुछ लोग लॉकडाउन के हालातों में घर पहुंचकर जब दास्तां सुनाई तो लोगों के होश उड़ गए। लॉकडाउन में वतन वापसी की छूट मिलने पर दो माह से पंजाब के बुग्गीपुरा में फंसे सोलह लोग अपने परिवार सहित पचास हजार रुपए खर्च करके दो वाहन किराए पर लेकर रसूलाबाद पहुंचे। प्रत्येक दिन घर की दहलीज की यादों ने इतना बेसब्र कर दिया कि घर आने के बाद उनके खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने बताया कि वो वहां रेहड़ी पर फल लगाकर अपनी पत्नी व बच्चों के साथ जीविका चला रहे थे। यहां आकर सभी की थर्मल स्क्रीनिग करने के बाद उन्हें क्वारंटाइन सेंटर में रखा गया है।
कानपुर देहात के रसूलाबाद क्षेत्र के खेड़ा कुर्सी के रहने वाले गोरेलाल ने बताया कि लगभग 15 साल से पंजाब में मोगा जिले के बुग्गीपुरवा में रह रहे थे। वहां रेहड़ी पर लगाकर बेचने का काम कर रहे थे। परिवार के लोगों की परेशानियों को देखते हुए धीरे धीरे उन लोगों को भी बुलाकर शामिल कर लिया था। बहुत अच्छे से काम चल रहा था। फिर अचानक वायरस महामारी से सबकुछ चौपट हो गया। फिर कोरोना महामारी के भय से काम बंद हो गया। कुछ दिन तो गुजारा किया, लेकिन बाद में मकान का किराया, खाने-पीने के खर्च की समस्या आ गई। इसके बाद वहां से निकल आने में ही भलाई समझी।
इस पर बुग्गीपुरा पंजाब से 45 हजार में दो छोटी ट्रैवल मिनी बस किराए पर कीं और जैसे तैसे रसूलाबाद वापस पहुंचे। बताया कि रुपया एकत्र करने के लिए थोक फल विक्रेता ने उनको फलों के बकाए रकम में लगभग बीस हजार रुपये की आर्थिक रियायत दी थी। शेष 25 हजार रुपये उन लोगों ने आपस में एकत्रित कर लिया। फिर दो ट्रैवलर में आठ बच्चे, चार महिलाएं व चार पुरुष बैठ करके घर आए। घर गृहस्थी का सारा सामान अभी बुग्गीपुरा में उसी किराए के मकान में ही है। मकान मालिक ने लाकडाउन खुलने तक दो माह का किराया नही लेने की बात कही है। निजी खेत नहीं है, फिलहाल अभी यह लोग गांव में भी खेती मजदूरी करके जीवन यापन करेंगे।
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