मनोज सेंगर ने बताया कि हर रोज मैं भैरवघाट तट पर आकर गंगा स्नान के लिए आया करता था। इसी दौरान मेरी नजर कुत्तों पर पड़ी तो लावारिश शवों के दाह संस्कार के बाद अस्थियों पर अपना मुंह मार रहे थे। साथ ही अधजले शव लोग गंगा में प्रवाह करते हैं, जिसके चलते वह मैली होती। यह बात मेरे दिल को लग गई और मैंने इन्हें सहेज कर रखने की ठानी। हमने यहीं पर कलश अस्थि बैंक की अधारशिला रख दी।’ उन्होंने बताया कि शुरुआत में तो सिर्फ उन्हीं अस्थियों को रखा जाता, जिनका कोई नहीं होता, पर धीरे-धीरे अन्य लोग भी अपने पूर्वजों की अस्थियां यहां जमा करवाने लगे। यहां अस्थि रखने वालों को बाकायदा एक कार्ड दिया जाता है, जिस पर नाम पता व लाकर नबर लिखा होता है। अपने पुरखों की अस्थियां रखने वाले लोग तय समय पर आकर बैंक से अस्थियां निकलवाते हैं और उन्हें पवित्र नदियों में विसर्जित करते हैं। अगर दिए गए समय पर लोग अस्थियां लेने नहीं आते तो कर्मचारी उनका भूमि विसर्जन कर देते हैं।
30 दिन का दिया जाता है वक्त
जब लोग शवदाह करते हैं तो राख अधजली लकड़ियां के साथ ही अधजले शवों को गंगा में प्रवाहित कर देते हैं, जिससे गंगा मैली होती है। कई लोग ऐसे होते हैं जो अस्थियों को चुन तो जरूर लेते हैं लेकिन उनका तुरंत विसर्जन नहीं करते। ऐसे में वो अस्थियों को घर में नहीं रख पाते हैं और घर के बाहर संभाल के रखना संभव नहीं होत। मोक्षधाम घाट पर आने वाले लोगों को हमने विद्युत शवदाह गृह के लिए प्रेरित किया। तमाम लोग अब विद्युत शवदाह करने के बाद अस्थियों को बैंक में जमा कर रहे हैं। इसके बदले में संस्था द्वारा कोई शुल्क नहीं लिया जाता है। मनोज सेंगर का कहना है कि हर माह करीब सौ से ज्यादा अस्थि कलश बैंक में जमा होते हैं।
जब लोग शवदाह करते हैं तो राख अधजली लकड़ियां के साथ ही अधजले शवों को गंगा में प्रवाहित कर देते हैं, जिससे गंगा मैली होती है। कई लोग ऐसे होते हैं जो अस्थियों को चुन तो जरूर लेते हैं लेकिन उनका तुरंत विसर्जन नहीं करते। ऐसे में वो अस्थियों को घर में नहीं रख पाते हैं और घर के बाहर संभाल के रखना संभव नहीं होत। मोक्षधाम घाट पर आने वाले लोगों को हमने विद्युत शवदाह गृह के लिए प्रेरित किया। तमाम लोग अब विद्युत शवदाह करने के बाद अस्थियों को बैंक में जमा कर रहे हैं। इसके बदले में संस्था द्वारा कोई शुल्क नहीं लिया जाता है। मनोज सेंगर का कहना है कि हर माह करीब सौ से ज्यादा अस्थि कलश बैंक में जमा होते हैं।
गंगा को प्रदूषण मुक्त करने की पहल
मनोज ने बताया कि मृतक का नाम पता लिखकर एक कार्ड बनाकर उनके परिजनों को दिया जाता है। अगर 30 दिनों तक अस्थियों को बैंक से नहीं निकाला जाता है तो संस्था खुद ही अस्थियों का भू विसर्जन करती है। मनोज सेंगर का कहना है कि जल्दी ही शहर के अन्य घाटों पर इस तरह के अस्थि बैंक बनाये जायेंगे। दधीचि संस्था से जुड़े मदन लाल भाटिया का कहना है कि यह एक सराहनीय प्रयासा है। क्योंकि समाज में जो कुरीतियां फैली हैं उसको तोड़ने के लिये किसी न किसी को तो आगे आना ही पड़ेगा। बैंक में अस्थि रखने वाले लोगों को प्रेरित किया जाता है कि अस्थियों को गंगा में प्रवाहित ना करके उनका भू विसर्जन करें जिससे गंगा साफ़ और निर्मल रहे।
मनोज ने बताया कि मृतक का नाम पता लिखकर एक कार्ड बनाकर उनके परिजनों को दिया जाता है। अगर 30 दिनों तक अस्थियों को बैंक से नहीं निकाला जाता है तो संस्था खुद ही अस्थियों का भू विसर्जन करती है। मनोज सेंगर का कहना है कि जल्दी ही शहर के अन्य घाटों पर इस तरह के अस्थि बैंक बनाये जायेंगे। दधीचि संस्था से जुड़े मदन लाल भाटिया का कहना है कि यह एक सराहनीय प्रयासा है। क्योंकि समाज में जो कुरीतियां फैली हैं उसको तोड़ने के लिये किसी न किसी को तो आगे आना ही पड़ेगा। बैंक में अस्थि रखने वाले लोगों को प्रेरित किया जाता है कि अस्थियों को गंगा में प्रवाहित ना करके उनका भू विसर्जन करें जिससे गंगा साफ़ और निर्मल रहे।