देवगुरु बृहस्पति धनु राशि में और शनि मकर राशि में रहेंगे। पंडित विनोद त्रिपाठी बताते हैं कि इससे पहले ग्रहों का यह संयोग 3 मार्च 1521 में बना था। ज्योतिषविद भारत ज्ञान भूषण कहते हैं कि एक ओर गुरु बृहस्पति जहां जहां ज्ञान, संतान, गुरु, धन-संपत्ती के प्रतिनिधि हैं तो वहीं शनि न्याय के देवता हैं। पद्मेेश इंस्टीट्यूट ऑफ वैदिक साइंस के अध्यक्ष केए दुबे पद्मेश के अनुसार, शनि का फल व्यक्ति के उसके कर्मों के अनुसार मिलता है। यदि व्यक्ति अच्छे कर्म करता है तो उसे शनि अच्छे फल और बुरे कार्य करता है तो शनि उसे विभिन्न रूप में दंडित करता है। होली पर इन दोनों ग्रह की शुभ स्थिति किसी शुभ योग से कम नहीं है।
होली दहन के दौरान इस बार भद्रा नहीं रहेगी। होली वाले दिन दोपहर 1 बजकर 10 मिनट तक भद्रा उपस्थित रहेगी। दोपहर 1:10 पर भद्रा समाप्त होने के बाद होली पूजन श्रेष्ठ होगा। सूर्यास्त के ४८ मिनट बाद से रात ११:२७ बजे तक होलिका दहन का मुहूर्त रहेगा। बताया जाता है कि भद्रा भगवान सूर्यदेव की पुत्री और शनिदेव की बहन हैं। शनिदेव की तरह उसका स्वभाव भी उग्र है। ब्रह्मा जी ने कालखंड की गणना और पंचांग में भद्रा को विष्टिकरण में रखा है। क्रूर स्वभाव के कारण ही भद्राकाल में शुभकार्य निषेध हैं। केवल तांत्रिक, न्यायिक और राजनीतिक कर्म ही हो सकते हैं। होली पांच बड़े पर्व में एक है। यह पर्व भी असुरता पर विजय का पर्व है। इस कारण भद्रा का विशेष ध्यान रखा जाता है।