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6 दिसंबर को दंगे से दहल उठा था कानपुर, 25 साल बीत जाने के बाद आज भी जख्म मौजूद

locationकानपुरPublished: Dec 06, 2017 06:52:30 pm

Submitted by:

Dhirendra Singh

विवादित ढांचे के गिरने पर अयोध्या ही नहीं कानपुर में भी चीखें उठी थी। लोगों को आज भी याद आता है वो दिन।

Babri Masjid demolition

Babri Masjid demolition

विनोद निगम
कानपुर. गंगा-जमुना के बीच बसा कानपुर शहर एक जमाने में अपनी गंगा जमुनी तहजीब के लिए जाना जाता था। लेकिन 6 दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा ढहाए की खबर जैसे ही शहर के लोगों को हुई तो दंगा भड़क गया। सैकड़ों लोगों की अपनी जान गवानी पड़ी, सड़कें, गलियां, मोहल्ले और लोगों के दिल बट गए। 25 साल गुजर जाने के बाद आज भी तकियापार्क में दोनों समुदाय के लोगों के बीच दुरियां बरकरार है और यहां की रखवाली के लिए पीएसी 24 घंटे तैनात रहती है। शिवसहांय गली मोहल्ले में दंगे के बाद 400 हिन्दू परिवार यहां घर, जमीन और दुकान कम कीमत पर बेचकर चले गए। हालात यह हैं कि शिवसहांय मोहल्ले में मात्र एक हिन्दू परिवार ही बचा है, और इनके रखवाली के लिए सरकार ने इन्हीं के घर में पुलिस चौकी की व्यवस्था की है। शंकर निगम बताते हैं कि आज भी हमें याद है कि हजारों की संख्या में दंगाई हिन्दुओं को घेर लिया और हमला कर कईयों को मौत के घाट उतार हिया। पीएसी के आने के बाद यहां से हमसब को निकाला गया।

विवादित ढांचा ढहाए जाने के चलते दंगा
25 साल पहले आज के ही दिन अयोध्या में कारसेवकों ने विवादित ढांचा को ढहा दिया था। इसके बाद पूरे देश में संप्रदायिक दंगे शुरू हो गए और इसकी आंच कानपुर में भड़क गई। बजरिया थानाक्षेत्र के तकियापार्क में हजारों की संख्या में दगांई शिवसहांय गली में धावा बोल दिया। धार्मिक स्थलों को तोड़ने के साथ लोगों के घरों में आग लगा दी। महिलाओं और युवतियों के साथ रेप के बाद हत्या कर दी। दंगे को काबू करने के लिए पीएसी और सेना को आना पड़ा और किसी तरह से चार सौ से ज्यादा हिन्दू परिवारों को यहां से बाहर निकला। यहीं के रहने वाले शंकर निगम बताते हैं कि शिवसहांय मोहल्ले में 1992 के पहले करीब चार सौ परिवार रहा करते थे। छह दिसंबर को विवादिज ढांचा ढहाए जाने के बाद यहां पर दंगा हो गया। दंगे के दौरान कई दर्जन हिन्दू समुदाय के लोग मारे गए थे। डर के चलते यहां से हिन्दू परिवार पलायन कर गए और पूरी गली में सिर्फ हम ही हैं, जो बिना खौफ के रहते हैं।

5 साल में पूरा मुहल्ला खाली
शिवसहांय मोहल्ले में दंगे के बाद एक समुदाय विशेष के लोगों ने हिन्दुओं के धर्म स्थल को छतिग्रस्त कर उसमें रखीं भगवान की मूर्तियों को ले गए थे। इसके विरोध में हिंदू संगठन खुलकर सड़क पर उतरे और दोनों तरफ से जमकर पत्थरबाजी हुई थी। इसी दौरान एक समुदाय के लोगों ने 20 साल की युवती के साथ रेप के बाद हत्या कर दी। जानकारी होने पर उस समाज के लोग दूसरे समुदाय के घरों में घुसकर रेप और हत्या कर शवों को जला दिया था। कुछ दिनों के बाद दंगा तो शांत हो गए, लेकिन दोनों समुदायों के बीच दिलों में दूरियां बन गई और 1995 आते-आते हिन्दू परिवार डर के चलते अपने-अपने घरों को मुस्लिम समुदाय को बेचकर चले गए। ताकिया पार्क सड़क के उस पार रहने वाले राजू यादव कहते हैं कि उस तरफ मुस्लिम समुदाय के लोग रहते हैं और इधर हिन्दु। दोनों समुदाय के लोगों के बीच बातचीत बहुत कम होती है। 24 घंटे हमसब की रखवाली पीएसी के जवान करते हैं।

88/41 में रहता है हिन्दू परिवार
शिवसहांय गली के मकान नंबर 88/41 में सिर्फ 2016 में एक हिन्दू परिवार रह रहा है। शिवसहांय के रहने वाले शंकर निगम ने बताया कि पूरे मोहल्ले से हिन्दू परिवार पलायन कर गए हैं। लेकिन वह अपनी जन्मभूमि में आज भी डटे हुए हैं। बेटी और दो बेटे इलाहाबाद में रहते हैं, यहां पर हम, पत्नी और माता व पिता जी ही रहते हैं। बताया, शाम ढलते ही हम घर के अंदर दुबक जाते हैं। अराजकतत्व शाम होते ही घर के बाहर हुड़दंग व धार्मिक गालियां देते हैं। नाते रिश्तेदारों के आने पर छतों से गोस्त के टुकड़े फेंकते हैं। शंकर निगम ने बताया कि बसपा सरकार के दौरान हमने तत्कालीन आईजी से मिलकर चौकी खोलने की मांग की थी, लेकिन मुस्लिम समुदाय के चलते पुलिस चौकी नहीं खुल सकी। फिर हम हाईकोर्ट में की शरण में गए। कोर्ट के आदेश के बाद आईजी ने मोहल्ले में पुलिस चौकी के लिए स्थानीय विधायक से जमीन की व्यवस्था करने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने अपने हाथ खड़े कर लिए। इसके बाद हम आईजी से मिलकर अपने घर में पुलिस चौकी खोलने की जगह दी, तब कहीं जाकर पुलिस चौकी खुल सकी।

तकिया पार्क में 25 साल से पीएसी तैनात
6 दिसंबर 1992 के बाद से तकिया पार्क में सरकार ने पीएसी की एक प्लाटून तैनात कर दी। बावजूद शहर का यह इलाका कभी शांत नहीं रहा। 1990 से लेकर 2001 तक करीब छोटे बड़े मिलकार दो दर्जन से ज्यादा दंगे हो चुके हैं। तकिया पार्क निवासी आशीष सिंह ने बताया कि सड़क के दाएं हिन्दू तो बाएं मुस्लिम रहते हैं। दोनों समुदाय के लोग 1990 से लेकर 2017 तक कभी भी एक दूसरे के इलाके में नहीं आते। वहीं 1920 के दंगे में अपने बैटे को खोने वाले रज्जक ने बताया कि दंगाईयों ने ताकिया पार्क तिराहे के पास बेटे को जिन्दा पेट्रोल छिड़कर आग लगा दी थी। बाद में उसके शव को काटकर गटर में बहा दिया था। ऐसे कई परिवार मिले, जिन्होंने दंगे के दौरान अपनों को खो दिया।

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