उस खेड़े में आज भी मौजूद हैं 41 कुएं जानकारों की माने तो अपनी बेटी के साथ लगभग 11 किलोमीटर लंबी सुरंग के रास्ते से पैदल चलकर जनपद के बाणेश्वर शिव मंदिर जिनई बानीपारा में जलाभिषेक किया करता था। कहीं कहीं आज भी बारिश के समय पर वह सुरंग खेतों पर दिख जाती है। जहां से बाणासुर जिनई जाया करते थे। महल व महल के आसपास उस समय लगभग एक सैकड़ा से अधिक पानी के कुए थे, जिसमें 41 कुएं आज भी मौजूद है। ग्रामीणों ने बताया कि गांव में बने कुएं में चरते समय दूसरे गांव के जानवर चलते-चलते गिर जाते हैं, लेकिन नारायणपुर गांव के जानवर कभी भी उन कुओं में नही गिरे। बारिश के मौसम के बाद खेरे पर कुछ न कुछ अजीब अवश्य देखने को मिलता है। जैसे बारिश के बाद मानव कंकाल, बहूमूल्य मूर्तियां, मिट्टी के बर्तन इत्यादि देखने को मिलते हैं।
इस सुरंग से अपनी बेटी के साथ जलाभिषेक को जाता था बाणासुर खेरे पर आज भी किले की आधारशिला है और दीवारें भी देखने को मिलती है। वहीं बारिश के चलते भी गड्ढे के रूप में कुएं दिखाई पड़ते हैं। यहां के लोग बताते हैं इस समय लगभग 52 बीघा का खेड़ा है। जिसमें कभी बाणासुर का किला हुआ करता था। पास में ही एक विशाल तालाब था। जहां पर बाणासुर की बेटी ऊषा स्नान करने के बाद जलाभिषेक करने के लिए बाणेश्वर शिव मंदिर जिनई बानीपारा जाया करती थी। स्थानीय लोगों ने बताया कि खेरे से निकली बहुत ही पुरानी व हजारों साल पुरानी मूर्ति आज भी मंदिर में मौजूद हैं। जो खेड़े की खुदाई और जमीन से निकली है। उन्होंने बताया कि स्वपन देकर खुदाई करने पर विभिन्न प्रकार की मूर्तियां इस खेड़े से निकली है।
यह पौराणिक किला आज भी लद रहा अस्तित्व की लड़ाई नारायणपुर में स्थित यह मंदिर आज भी आस्था विश्वास का प्रतीक बना हुआ। गौरतलब हो कि द्वापर युग के समय काफी दिनों तक भगवान श्री कृष्ण बाणासुर का युद्ध चला और अंत मे भगवान श्री कृष्ण ने बाणासुर का वध कर दिया। इतिहास के पन्नों में दर्ज सोणितपुर को अब नारायणपुर के नाम से जाना जाता है। लेकिन प्रशासनिक अनदेखी व जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा के चलते यह प्राचीन पौराणिक किला आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है।