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अद्भुत हैं कानपुर के ये 6 देवी मंदिर, यहां भक्तों की हर मुराद होती है पूरी

locationकानपुरPublished: Sep 21, 2017 12:35:54 pm

Submitted by:

Hariom Dwivedi

बारा देवी, मां बुद्धा देवी, वैभव लक्ष्मी, मां तपेश्वरी, जंगली देवी व मां कुष्मांडा कानपुर के फेसम माता मंदिर हैं, हर मंदिर का अलग महत्व व इतिहास है

Kanpur devi temple
कानपुर. शहर को मैनचेस्टर ऑफ एशिया, क्रांतिकारियों की जननी के साथ ही धर्मिक नगरी के नाम से भी जाना जाता है। यहां पर कई ऐतिहासिक मंदिर हैं, जिनमें 500 से लेकर 2000 साल प्रतिष्ठित नौदेवी माता के 6 मंदिर हैं। हर मंदिर का अपना अलग महत्व है। नवरात्र पर्व पर इन सभी मंदिरों में हजारों की तादाद में भक्त आते हैं और मन्नतें मांगते हैं। मान्यता है कि अपने दर पर आने वाले भक्तों को मां कभी खाली हाथ नहीं लौटाती, उनकी हर मुराद पूरी होती है। इन 6 मंदिरों में स्थापित मां की मूर्ति पर उनके यहां पर विराजने की कहानी कुछ खास है। यहां के प्राचीन मंदिरों में मां बारादेवी, मां बुद्धादेवी, मां वैभव लक्ष्मी, मां तपेश्वरी देवी, मां जंगली देवी और मां कुष्मांडा हैं।
इसलिए पड़ा बारादेवी नाम
मां बारा देवी यह मंदिर पौराणिक और प्राचीनतम मंदिरों में शुमार है। शहर के जिस इलाके (दक्षिणी इलाके) यह मंदिर बना है, उस इलाके का नाम भी बारा देवी है। एएसआई के सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, इस मंदिर में स्थापित मां दुर्गा के स्वरूप की मूर्ति करीब 17 सौ साल पुरानी है। मंदिर के पुजारी दीपक कुमार बताते हैं कि एक बार पिता से हुई अनबन पर उनके कोप से बचने के लिए घर से एक साथ 12 बहनें भाग गईं और किदवई नगर में मूर्ति बनकर स्थापित हो गईं। पत्थर बनी यही 12 बहनें कई सालों बाद बारा देवी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हो गईं। नवरात्रि के मौके पर इस प्राचीन मंदिर में एक विशाल मेले का आयोजन किया जाता है।

तपेश्वरी देवी मंदिर में मां सीता ने किया था तप
बिरहना रोड स्थित मां तपेश्वरी देवी मंदिर का नजारा अलग ही दिखता है। मंदिर के पुरोहित राधेश्याम के अनुसार, इस मंदिर को लेकर ये कहा जाता है कि माता सीता लवकुश के जन्म के बाद इसी मंदिर में उनका मुंडन संस्कार भी करवाया था। इसके बाद सीता ने लव-कुश को महर्षि वाल्मीकि को सौंपकर इस मंदिर में तप करने के लिए रुक गई थीं। उनके साथ तीन और बहने थीं। सीता को तप करता देख उन तीनों बहनों ने भी सीता के साथ तप करना शुरू कर दिया था। आज भी यहां चार देवियों की मूर्ति स्थापित है। हालांकि, ये कोई नहीं जानता कि कौन सी मूर्ति किसकी है। तप करने की ही वजह से इस मंदिर का नाम तपेश्वरी देवी मंदिर पड़ा है।
एकलौता मंदिर, जिसमें चढ़ाए जाते हैं ताले
मां काली देवी शहर के बीच में स्थित बंगाली मोहाल मोहल्ले में एक ऐसा मंदिर है, जहां भक्त अपनी मनोकामना के लिए मां के दरबार में ताला चढ़ाते हैं। मनोकामना पूरी होने पर वहां से ताला खोलकर ले जाते हैं। कानपुर के मध्य में बसे बिरहना रोड इलाके में बंगाली मोहाल, जहां 3 सौ साल पुरानी मां काली देवी की मंदिर स्थित है। इस प्राचीन मंदिर की एक मान्यता है, जो आज भी बदस्तूर जारी है। इस मंदिर में आने वाला हर भक्त अपने मनोकामना को पूरी करने के लिए इस मंदिर में एक ताला लगाता है। भक्तों को ताला लगाने के पहले उस ताले की पूरे विधि-विधान से पूजा करते हैं।

मां के दरबार में बटता है खजाना
मां वैभव लक्ष्मी मंदिर प्राचीन मां वैभव लक्ष्मी मंदिर बिरहाना रोड में स्थित है। इस मंदिर का अलग ही महत्व है। नवरात्र के दौरान आने वाले को इस मंदिर में श्रद्धालुओं को खजाना दिया जाता है। मां के प्रसाद रूपी खजाने को लेने के लिए मंदिर के बाहर करीब एक किमी तक भक्तों की लंबी कतार लगी रहती है। मंदिर के प्रबंधक अनूप कपूर के अनुसार, 100 साल पहले साल 1889 में इस मंदिर का निर्माण कराया गया था। तब इस मंदिर में भगवान शंकर और राधा कृष्ण की मूर्ति को स्थापित किया गया था। साल 2000 में इस मंदिर के अंदर मां लक्ष्मी की मूर्ति को स्थापित किया गया।
मां के चरणों में भक्त चढ़ाते हैं सब्जियां
मां बुद्धा देवी मंदिर कानपुर के सबसे प्राचीन हटिया बाजार इलाका अपने आप में पूरा इतिहास समेटे हुए हैं। इसी इलाके में मौजूद हैं मां बुद्धा देवी। इन्हें प्रसाद के रूप में लड्डू, बताशे या फल नहीं, बल्कि सीजनल ताजी सब्जियां चढ़ाई जाती है। नवरात्रि के समय मां की दर्शन करने के लिए कानपुर के आसपास के जिलों से भक्तों की भीड़ लगती है। यहां सब्जियों में लौकी के टुकड़े, बैगन, पालक, टमाटर, गाजर, मूली और आलू तक मौजूद रहता है। इस मंदिर के पुजारी भी कोई पुरोहित या पंडित नहीं है, बल्कि यहां के पुजारी को राजू माली के नाम से पुकारा जाता है।
मां के चरणों का जल ग्रहण करने से दूर होते हैं दुख
शहर से 40 किमी दूर कानपुर सागर हाईवे स्थित घाटमपुर में मां कुष्मांडा देवी का मंदिर है। इस मंदिर का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है। मंदिर के पुजारी ने बताया कि आज से करीब 2000 साल पहले खुदाई के दौरान मां की मूर्ति निकली थी। जिसे एक पेड़ के नीचे रखवा दिया गया था। घाटमपुर के जमीदार ने 1858 में मां के मंदिर का निर्माण करवाया था। पुजारी के मुताबिक, नवरात्र पर हर साल हजारों की संख्या में भक्त आते हैं। कुष्मांडा देवी के पैरों से जल निकलता है और प्रसाद के रूप में वही दिया जाता है। मां के चरणों में जल कहां से आता है यह किसी को नहीं पता। कई साइंटिस्ट आए, लेकिन इस रहस्य को खोज नहीं पाए।
रिपोर्ट- विनोद निगम

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