27 साल की उम्र में चुने गए सांसद
इटावा के छोटे से गांव सैफई से मुलायम सिंह ने अपनी राजनीति की शुरूआत की। प्रदेश और देश की सियासत में अपना लोहा मनवाया। बेटे अखिलेश को राजनीति में लेकर आए और 27 साल की उम्र में सांसद बने। 38 साल में देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बनने का इतिहास रच दिया। सियासी माहौल में पले-बढ़े अखिलेश ने साल 2000 में कन्नौज लोकसभा उप चुनाव को जीतकर राजनीतिक पारी का आगाज किया था। इसके बाद अखिलेश 2004 और 2009 में लगातार इस सीट पर विजयी हुए, लेकिन 2009 में कन्नौज के अलावा फिरोजाबाद संसदीय सीट से भी जीत दर्ज की थी। 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा को प्रचंड बहुमत मिला तो मुलायम ने अखिलेश को यहां की सत्ता सौंप दी।
2011 में दौड़ाई थी साइकिल
मुलायम सिंह के करीबी रिटायर्ड टीचर बंशलाल उमराव बताते हैं, अक्टबूर 2011 में अखिलेश यादव ने पूरे प्रदेश में साइकिल यात्रा निकाली। उस दौरान उनके प्रचार की मशहूर टैग लाइन ’उम्मीद की साइकिल’ ने व्यावहारिक तौर पर सरल माने वाले अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाया। कहते हैं, अखिलेश यादव मेहनती राजनेता हैं, पर घर के अंदर चल रही रार के कारण वो निर्णय नहीं ले पा रहे। लेकिन हमें उम्मीद है कि पिता की तरह अखिलेश फिर से राजनीति में दोगुनी ताकत के साथ वापसी करेंगे।
शिवपाल हुए अलग
मुलायम सिंह ने भी 2012 में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद मुख्यमंत्री पद का सपना देख रहे अपने भाई शिवपाल यादव की जगह बेटे को तरजीह दी और अखिलेश यादव सीएम बने। 2017 तक आते-आते परिवार में दरार का दायरा काफी बढ़ चुका था और इसमें मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव भी अखिलेश के खिलाफ खड़े मिले। 2019 से पहले शिवपाल ने प्रसपा का गठन कर लिया और फिरोजबाद से खुद भजीते के खिलाफ चुनाव के मैदान में उतरे। चाचा और भाजपा से निपटने के लिए अखिलेश ने मायावती के साथ गठबंधन किया।
मायावती ने तोड़ा गठबंधन
अखिलेश यादव ने मायावती की पार्टी के साथ लोकसभा चुनाव 2019 के लिए गठबंधन में चुनाव लड़ने का फैसला किया। लेकिन इसमें अखिलेश की पार्टी पिछले लोकसभा चुनाव का अपना रिकॉर्ड भी दोहरा नहीं पाई। जबकि बसपा को 10 सीटों पर जीत मिली। 144 दिन के बाद मायावती ने हार का ठीकरा सपा पर फोड़ते हुए गठबंधन तोड़ने का ऐलान कर अखिलेश को तगड़ा झटका दिया। राजनीति के जानकार कहते हैं कि अखिलेश यादव जिस तरीके से लोकसभा चुनाव में माहौल को समझ नहीं पाए उसी तरह वह राजनीतिक रिश्तों को समझने में पीछे रह गए। इसीलिए कहा जा रहा है कि उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद से उन्हें सिर्फ बेवफाइयों का सामना करना पड़ रहा है ।
फिर से करेंगे कमबैक
मुलायम के करीबी मित्र बंशलाल उमराव बताते हैं कि अखिलेश यादव ने जनेश्वर मिश्र के सियासी स्कूल से शिक्षा ली है। वो हार कर जीतनें वाले नेता हैं और हमें उम्मीद है कि अखिलेश दोगुनी ताकत के साथ फिर से यूपी की राजनीति में अपने को खड़ा करेंगे। बंशलाल एक किस्से का जिक्र करते हुए बताते हैं, जब अखिलेश पार्टी के अध्यक्ष बन गए, तो जनेश्वर मिश्र ने उनसे कहा कि दो साल खूब मेहनत करो. और मैं तुम्हारी रैली में खुद आ कर ’अखिलेश ज़िंदाबाद’ का नारा लगाउंगा और पार्टी के बाकी लोग भी तुम्हें अपना नेता मानेंगे। जनेश्वर मिश्र ने ही अखिलेश यादव को उनके राजनीतिक जीवन की पहली सीख दी थी। अखिलेश यादव 35 साल की उम्र हो जाने के बावजूद पार्टी के सीनियर नेताओं के पैर छूते थे। साथ ही अपने से बड़ो का आज भी वो सम्मान करते हैं।