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बीजेपी को हिला देने वाली खबर, 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले मायावती को बड़ी राहत, सपा भी गदगद

locationकानपुरPublished: Jun 05, 2018 08:46:27 am

Submitted by:

Vinod Nigam

सीटों के बंटवारे के दौरान बसपा प्रमुख मायावती कर सकती हैं मोलभाव…

BSP Mayawati Strategy for vote bank in bundelkhand Kanpur UP news

बीजेपी को हिला देने वाली खबर, 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले मायावती को बड़ी राहत, सपा भी गदगद

कानपुर. यूपी के विधानसभा चुनाव 2012 से बसपा का गैर जाटव वोटर्स सपा के साथ ही भाजपा के साथ चला गया और मायावती को करारी हार मिली। इसके बाद 2014 लोकसभा और 2017 विधानसभा चुनाव में हाथी बुरी तरह से पराजित हुआ। लेकिन निकाय चुनाव में दलित वोट कुछ हद तक पार्टी की तरफ मुड़ा और पहली बार बसपा का मेयर चुना गया। ग्रामीण इलाके में हाथी ने कमल को पीछे ढकेल दिया। पीएम मोदी को हराने के लिए समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बसपा सुप्रीमो मायावती की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया तो उन्होंने बबुआ को गले लगाकर फूलपुर, गोरखपुर, कैरान लोकसभा के साथ ही नूरपुर विधानसभा उपचुनाव में जीत का आर्शीवाद दे दिया। इसी के चलते भगवा बिग्रेड काफी चिंतित है और इसका तोड़ निकालने के लिए भाजपाईयों ने दलितों के घर दाल रोटी खाई, पर इससे पार्टी को ज्यादा फाएदा होता नहीं दिख रहा। वोट खिसकने के डर से भाजपा अब दलितों को लुभाने के लिए दुधारू गाय निशुल्क में देने जा रही है।
10 में भाजपा का कब्जा

कानपुर-बुंदलेखंड की 52 विधानसभा में से 47 तो 11 लोकसभा में से 10 सीटों पर इस समय भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है। लोकसभा चुनाव 2014 और विधानसभा चुनाव 2017 में भारतीय जनता पार्टी को एकतरफा चुनावी नतीजों में सारी सीटें मिली और विपक्षी दलों का पत्ता पूरी तरह साफ़ हो गया था। दोनों चुनाव में सपा व कांग्रेस के मुकाबले बसपा को जबरदस्त नुकसान उठाना पड़ा। बुंदेलखंड किला बसपा के हाथ से निकल गया। साथ ही यादवलैंड की 4 लोकसभा सीटों में से महज एक कन्नौज से डिंपल यादव को जीत मिली। जबकि कांग्रेस का यहां से पूरी तरह से सूफड़ा साफ हो गया। लेकिन उपचुनाव में मिली जीत से सपा, बसपा और कांग्रेस काफी खुश हैं। जानकारों की मानें तो निकाय चुनाव के दौरान गैर जाटव वोटर्स फिर से बसपा की तरफ आ गया है और इसी का नतीजा रहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा के मुकाबले बसपा आगे रही। जबकि पहली बार यूपी में बसपा का एक मेयर चुना गया। इन्हीं सब समीकरणों को देखते हुए सीटों के बटवारे के दौरान बसपा प्रमुख मायावती मोलभाव कर सकती हैं।
बुंदेलखंड बसपा का था मजबूत किला

बुंदेलखंड की सभी 19 विधानसभा और 7 लोकसभा सीटों पर इस समय भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है। लोकसभा चुनाव 2014 और विधानसभा चुनाव 2017 में भारतीय जनता पार्टी को एकतरफा चुनावी नतीजों में सारी सीटें मिली और विपक्षी दलों का पत्ता पूरी तरह साफ़ हो गया था। देश की राजनीति के अखाड़े का प्रमुख केंद्र रहा बुंदेलखंड अब एक बार फिर सियासी दलों की गतिविधियों का केंद्र बनता नजर आ रहा है। बुंदेलखंड के कुल मतदाताओं में दलितों की भागीदारी लगभग 30 प्रतिशत (18लाख) है। ऐसे में एक ओर जहां भाजपा के सामने अपनी मौजूदा सीटों को बचाये रखना चुनौती है तो दूसरी ओर बुंदेलखंड में कभी दमदार उपस्थिति दर्ज कराने वाली बसपा अपने बिखरे वोटबैंक को समेटकर फिर से अपने सियासी मिशन को सफलता की ओर ले जाने की कवायद में है। कुछ हद तक बसपा इसमें सफल भी हुई है। निकाय चुनाव में बुंदेलखंड की कई नगर पालिका, नगर पंचायतों में हाथी के उम्मीवार जीते।
वोटर्स को गाय के जरिए लुभाएगी बीजेपी

बीजेपी आने वाले दिनों में बुंदेलखंड के ग्रामीण और दलित मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने की कवायद नए तरीके से शुरू करने जा रही है। सीएम योगी गरीब, पिछड़े और दलित समाज के घर में दुधारू गाय निशुल्क देने जा रहे हैं। जानकारों का मानना है कि सीएम की यह रणनीति कारगर हथियार साबित हो सकती है। इसके जरिए सीएम एक तीर से कई निशाने लगा सकते हैं। गाय हिंदू समाज की अराध्य पशु है और सीएम दलितों के अंदर हिन्दुवादी विचारधारा को इसी के जरिए जागृत करना चाहते हैं। कानपुर नगर अध्यक्ष सुरेंद्र मैथानी ने कहते हैं भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने दलितों के लिए लगातार हितैषी कदम उठाये हैं। पहली बार ऐसा हुआ है कि सभी बैंकों को निर्देश दिए गए हैं कि हर बैंक से कम से कम दो दलितों को उद्यमिता के लिए लोन जरूर दिया जाये। सीएम यदि गरीबों के घर गाय पहुंचाएंगे तो इससे उनका विकास होगा।
बसपा भी लगाए है जोर

दूसरी ओर बहुजन समाज पार्टी बुंदेलखंड में अपनी वापसी के लिए अपने परंपरागत वोट बैंक को जोड़ने के साथ ही नए वोटरों को भी आकर्षित करने की तैयारी में है। बुंदेलखंड कभी बसपा का सियासी गढ़ रहा है। बादशाह सिंह, नसीमुद्दीन सिद्दीकी, दद्दू प्रसाद जैसे कद्दावर नेता बसपा सरकार में मंत्री रहे और बुंदेलखंड की सियासी हैसियत के प्रतीक बने रहे। इसके अलावा बुंदेलखंड के कई और चेहरे भी मायावती कैबिनेट का हिस्सा रहे। बसपा को इस बात का अंदाजा है कि बुंदेलखंड में वापसी के लिए अपने कैडर वोट को समेट कर और स्थानीय समीकरणों को साधकर वह वापसी कर सकती है। बसपा के कानपुर जोनलकोआर्डिनेटर नौशाद अली कहते हैं कि हमारी पार्टी युवाओं को जोड़ने के लिए उनके बीच जा रही है। लोग अभी भी बहुजन समाज पार्टी के शासन काल में चलाये गए जन कल्याणकारी योजनाओं को याद करते हैं और बहन जी के मुख्यमंत्री रहने के दौरान प्रदेश की कानून-व्यवस्था की बेहतर स्थिति को याद करते हैं।
पीएम मोदी के मिशन पर लग सकता है ब्रेक

बांदा निवासी दिनेश श्रीवास्तव कहते हैं बुंदेलखंड की 19 में से 7 सीटें ऐसी हैं जहां दलित और आदिवासी वोटर निर्णायक संख्या में हैं। सियासी दल जिस तरह दलितों की समस्याओं को अपना चुनावी एजेंडा बनाते हैं उससे उनकी स्थिति बदलते हुए कम ही देखा गया है लेकिन बसपा सरकार के कार्यकाल में दलितों पर होने वाले उत्पीड़न में कमी जरूर देखी जाती है जिसके कारण दलित वोटर आमतौर पर बसपा की ओर आकर्षित दिखाई देता है। वहीं वकील गप्पू सिंह कहते हैं कि दलित वोटर्स 2014 से लेकर 2017 विधानसभा के चुनाव के वक्त भाजपा के साथ मजबूती के साथ खड़ा रहा, लेकिन निकाय चुनाव के वक्त अब बसपा की तरफ बड़ता हुआ दिख रहा है। चित्रकूट की एक सीट के लिए हुए उपचुनाव में दलित वोटर्स भाजपा के बजाए कांग्रेस को वोट दिया। इससे कहा जा सकता है कि पीएम मोदी के मिशन 2019 में हाथी जरूर रूकावट खड़ी कर सकता है।

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