scriptअधिकारों की लड़ाई में आगे आयीं मुस्लिम बेटियों ने पिता की संपत्ति में मांगा हक | Cases reaching Shari court for share in father's property | Patrika News

अधिकारों की लड़ाई में आगे आयीं मुस्लिम बेटियों ने पिता की संपत्ति में मांगा हक

locationकानपुरPublished: Dec 18, 2019 02:44:45 pm

हर माह शरई कोर्ट में पहुंच रहे ऐसे दर्जन भर मामले

अधिकारों की लड़ाई में आगे आयीं मुस्लिम बेटियों ने पिता की संपत्ति में मांगा हक

अधिकारों की लड़ाई में आगे आयीं मुस्लिम बेटियों ने पिता की संपत्ति में मांगा हक

कानपुर। इस्लाम में जिस तरह निकाह और तलाक में शरीयत का पालन होता है उसी तरह संपत्ति के बंटवारे में भी शरीयत का ध्यान रखा जाना चाहिए। शरीयत के मुताबिक बेटियों को संपत्ति आदि के मामले में बेटों से आधा हिस्सा मिलना चाहिए। मगर आज भी कई मां-बाप बेटों के नाम पूरी जायदाद कर देते हैं लेकिन बेटियों को हिस्सा नहीं देते। इसी कारण शरई कोर्ट में अब बेटियां पैतृक संपत्ति (विरासत) में हिस्सेदारी के लिए दावा कर रही हैं। जबकि कई परिवार बेटियों को भी बराबर का हिस्सा देते हैं।
तरका नियम के अनुसार बेटियों को मिलता हिस्सा
इस्लामी कानून में तरका नियम के अनुसार बेटियों की संपत्ति में हिस्सेदारी मानी जाती है। इनका हिस्सा शरीयत में तय है लेकिन अक्सर बेटियां इससे वंचित रह जाती हैं। हाल ही में महिला शरई कोर्ट में ऐसे कई प्रकरण आए हैं, जिसमें बेटियों ने अपने मां-बाप से उनकी संपत्ति में हिस्सा मांगा है। ऐसी स्थितियां भी हैं कि मां-बाप के न रहने पर भाइयों या अन्य रिश्तेदारों ने उस पर कब्जा कर लिया लेकिन बेटियों को नहीं दिया। ऐसा भी हो रहा है कि बेटियों की ससुराल वाले दबाव डाल कर हिस्से की मांग कर रहे हैं। अब हर माह तीन-चार मामले ऐसे आ रहे हैं।
बढऩे लगे विवादित मामले
मोहकम-ए-शरीया में केवल बेटियों की मांग वाले मामले ही नहीं आ रहे हैं। हर माह यहां की ऐसी छह कोर्ट में 10-12 मामले आते हैं जिसमें मां-बाप अपने बेटे-बेटियों के बीच संपत्ति का शरई नियमों के हिसाब से बंटवारा कराने आते हैं। इन शरई पंचायतों में बेटियों की मांग के मामले पिछले छह माह में 20 से अधिक हैं। पहले यह इक्का-दुक्का ही आते थे।
शादी के बाद उठ रही मांग
एक मामले में बेटी की शादी एक साल पहले हुई थी। जब पिता ने पूरी प्रॉपर्टी बेटे के नाम कर दी। तो बेटी ने अपने हक के लिए शरई कोर्ट में गुहार लगाई। इसमें ऐसा माना जा रहा है कि ऐसा बेटी की ससुराल से आ रही डिमांड पूरी न करने पर उससे यह काम कराया जा रहा है। वहीं एक अन्य मामले में मां-बाप ने अपनी संपत्ति का बंटवारा दो बेटों में कर दिया। उनकी एक बेटी भी थी। दहेज देने के नाम पर उसे जायदाद से अलग कर दिया गया। ऐसे में बेटी ने विवाह के तीन साल बाद शरई कोर्ट में अपना हिस्सा लेने के लिए आवेदन किया है।
ज्यादातर को जानकारी नहीं
महिला शरई कोर्ट में आने वाले कई मामलों में सुनवाई के दौरान यह बात भी सामने आयी है कि मां-बाप को यह मालूम ही नहीं है कि उनकी संपत्ति में बेटी का शरई हक है। जब उन्हें जानकारी दी जाती है तो ये मामले आसानी से हल होते हैं। इक्का-दुक्का मामलों में प्रॉब्लम आती है। मोहकम-ए-शरीया के शहर काजी मौलाना कुद्दूस हादी का कहना है कि हमारा काम फैसला सुनाना नहीं बल्कि दोनों पक्षों को शरीयत के नियमों की जानकारी देना है। इसके बाद काउंसिलिंग करना है ताकि वे मान जाएं। बेटियों को तरका के मामले पिछले कुछ महीनों से बढ़े हैं। ज्यादातर में मां-बाप बेटियों को हिस्सा देने पर राजी हो जा रहे हैं।
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