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Chandrayaan-2 india moon mission -2 प्रज्ञान ऐसे करेगा काम : तीस कदम चलेगा, फिर ठिठकेगा, हुक्म मिलने पर आगे बढ़ेगा

locationकानपुरPublished: Jul 15, 2019 01:19:59 pm

Chandrayaan-2 iit kanpur developed map generation and path planning software
Chandrayaan-2 indian moon mission path planning and map generation technique
चंद्रयान-2 के रोवर के सुरक्षित सफर में आईआईटी का योगदान
– सेंसर, लेजर लाइट और कैमरे की मदद से रास्ता सुझाएंगे वैज्ञानिक
 

chandrayaan -2

Chandrayaan-2 india moon mission -2 प्रज्ञान ऐसे करेगा काम : तीस कदम चलेगा, फिर ठिठकेगा, हुक्म मिलने पर आगे बढ़ेगा

आलोक पाण्डेय

कानपुर. तकनीकी अड़चनों ने फौरी तौर पर चंद्रयान-2 (Chandrayaan-2) की राह में अड़ंगा लगा दिया है, लेकिन चांद पर लैंडिंग के बाद प्रज्ञान (रोवर) Moon rover के सफर को सुरक्षित बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई है। आईआईटी-कानपुर (IIT kanpur) ने सेंसर, लेजर लाइट और कैमरों के जरिए प्रज्ञान के लिए मैप जेनरेशन और पाथ प्लानिंग ( map generation and path planning ) पर जबरदस्त काम किया है। सुरक्षा के लिहाज से प्रज्ञान (pragyan) एक दिन में अधिकतम 500 मीटर दूरी तय करेगा, लेकिन दस-दस मीटर पर ठिठकरकर आगे बढ़ेगा। खास बात यह है कि प्रज्ञान का प्राथमिक मॉडल भी आईआईटी-कानपुर ने वर्ष 2009 में बनाया था, जिसे इसरो यानी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (ISRO – Indian Space Research Organisation) ने विकसित किया है।

चांद के दक्षिण ध्रुव पर सतह ज्यादा खराब और खतरनाक

कुछ बाद ही सही, लेकिन प्रज्ञान की सॉफ्ट लैंडिंग के साथ ही भारत भी अमेरिका, रूस और चीन की कतार में पहुंच जाएगा। अलबत्ता चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडिंग का यह पहला मामला होगा। चूंकि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की जमीन काफी उबड़-खाबड़ और रेतीली है। दक्षिणी ध्रुव में किसी भी रोवर के पहिए धंस सकते हैं, बड़े पत्थरों के कारण उलटने-पलटने का खौफ डर है। चूंकि इसरो का प्रज्ञान ट्रैक्शन फोर्स के कारण 35 डिग्री से ज्यादा के कोण पर चढ़-उतर नहीं सकता है। ऐसे में बगैर सुरक्षित राह बताए आगे बढऩे पर प्रज्ञान के दुर्घटनाग्रस्त होने की आशंका थी। इसी आशंका के मद्देनजर इसरो ने आईआईटी-कानपुर के साथ एमओयू साइन किया था। आईआईटी-कानपुर में मैकेनिकल इंजीनियनिंग IIT Kanpur mechanical engineering के प्रोफेसर आशीष दत्ता और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग iit kanpur electrical engineering के प्रोफेसर के.एस. वेंकटेश ने मिलकर मोशन प्लानिंग एंड मैपिंग जेनरेशन सॉफ्टवेयर को तैयार किया है, जोकि प्रज्ञान का आगे बढऩे के लिए राह दिखाएगा।

एक दिन में अधिकतम 500 मीटर की दूरी तय करेगा प्रज्ञान

आईआईटी-कानपुर के इंजीनियर प्रोफेसर आशीष दत्ता ने बताया कि मोशन प्लानिंग एंड मैपिंग जेनरेशन सॉफ्टवेयर चांद पर लैंडिंग के बाद सेंसर, लेजर लाइट और कैमरों की मदद से प्रज्ञान का मूवमेंट तय करेगा और सुरक्षित रूट का निर्धारण भी करेगा। इसके साथ ही राह की बाधाओं को भी इंगित करेगा। दरअसल, छह पहियों वाले प्रज्ञान के कैमरे आसपास की तस्वीर खिंचेंगे, इसी दरम्यान लेजर लाइट और सेंसर से यह मालूम किया जाएगा कि लक्ष्य तक पहुंचने के लिए संभावित रास्तों की जमीन खोखली है अथवा ठोस। साथ ही यह परखा जाएगा कि समस्त संभावित रास्तों में कैसी और कितनी बड़ी बाधाएं हैं। उक्त जानकारियों को सहेजने के बाद प्रज्ञान इन्हें इसरो के पास भेजेगा, जहां वैज्ञानिकों की टीम चंद मिनट में वैकल्पिक रूटों में सुरक्षित पथ को इस कसौटी पर तय करेगी कि किस रूट से आगे बढऩे पर न्यूनतम ऊर्जा की खपत होगी और वक्त कम लगेगा।

दस मीटर की दूरी तय करेगा, फिर रूट निर्धारण की प्रक्रिया होगी

प्रोफेसर आशीष दत्ता के मुताबिक, यदि सतह समतल है तो लेजर लाइट एक सीधी रेखा बनाएगी। खोखली जमीन अथवा बड़े अवरोधों की स्थिति में जिक-जैग लाइन बनेगी। ऐसी तमाम लेजर लाइन के जरिए दस मीटर के क्षेत्रफल की तस्वीर बनाना संभव होगा। लेजर तस्वीर के आधार पर यह तय करना आसान होगा कि प्रज्ञान को किस रास्ते से मंजिल की ओर बढऩा चाहिए। दस मीटर बढऩे के बाद अगले दस मीटर के क्षेत्रफल की लेजर तस्वीर बनाई जाएगी, फिर इसरो की टीम कम ऊर्जा और कम समय के खपत वाले रास्ते पर आगे बढऩे के लिए प्रज्ञान को निर्देशित करेगी।

15 दिन में सहेजेगा 15 अंधेरे दिनों के लिए ऊर्जा

चूंकि चांद के दक्षिणी ध्रुव पर 15 दिन रोशनी और 15 दिन अंधेरा रहता है। सौर ऊर्जा के साथ-साथ 50 वॉट की बैटरी से संचालित होने वाला प्रज्ञान रोशनी वाले 15 दिनों में अगले 15 दिनों के लिए अंधेरे में काम करने के लिए ऊर्जा का भंडारण करेगा। कुल मिलाकर एक साल की अवधि में प्रज्ञान के जिम्मे ऊर्जा जरूरतों तथा हीलियम-3 जैसे खनिजों की खोज करना है। प्रज्ञान की राह में कोई अड़चन नहीं आए, इसके लिए आईआईटी-कानपुर की लैब में चंद्रमा की जमीन जैसी स्थितियों को बनाने के लिए प्रज्ञान के मॉडल पर शोध किए गए थे।
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