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फेफड़े के कैंसर से जूझ रहे मरीजों को कानपुर के डॉक्टरों ने दी बड़ी राहत

locationकानपुरPublished: Feb 21, 2020 05:10:50 pm

इंजेक्शन वाली कीमोथेरेपी की जगह टेबलेट वाली कीमोथेरेपी ज्यादा कारगरजेके कैंसर संस्थान और मुरारी लाल चेस्ट अस्पताल में रिसर्च कामयाब

फेफड़े के कैंसर से जूझ रहे मरीजों को कानपुर के डॉक्टरों ने दी बड़ी राहत

फेफड़े के कैंसर से जूझ रहे मरीजों को कानपुर के डॉक्टरों ने दी बड़ी राहत

कानपुर। शहर के डॉक्टरों ने फेफड़े के कैंसर रोगियों को बड़ी राहत दी है। इन रोगियों की कीमोथेरेपी को लेकर जेके कैंसर संस्थान और मुरारी लाल चेस्ट अस्पताल के डॉक्टरों का रिसर्च कामयाब हुआ है। जिसके तहत अब कैंसर रोगियों का इलाज इंजेक्शन वाली कीमोथेरेपी की जगह टेबलेट वाली कीमोथेरेपी से होगा। अच्छी बात यह है कि इस टेबलेट का कोई भी साइड इफेक्ट मरीजों पर नहीं दिखा और उसका असर भी इंजेक्शन के मुकाबले जल्दी देखने को मिला।
टेबलेट का हुआ तेज असर
कैंसर रोगियों का इलाज करने वाले जेके कैंसर संस्थान और फेफड़ों से जुड़ी बीमारी का इलाज करने वाले मुरारी लाल चेस्ट अस्पताल में फेफड़े के कैंसर रोगियों के दो समूह बनाए गए। एक समूह के रोगियों को इंजेक्शन वाली और दूसरे समूह को टेबलेट वाली कीमोथेरेपी दी गई। दोनों का इलाज एक साथ शुरू हुआ तो रिजल्ट उसी हिसाब से मिले। उत्साहित डॉक्टरों ने अधिक से अधिक मरीजों पर रिसर्च करने के लिए शोध आगे बढ़ाया है।
टेबलेट का साइड इफेक्ट नहीं
मरीजों पर शोध करने वाले डॉक्टरों का कहना है कि आमतौर पर इंजेक्शन वाली कीमोथेरेपी में मरीजों को साइड इफेक्ट से गुजरना पड़ता है। इससे इलाज छूटने का खतरा रहता है। मरीज टेबलेट आसानी से खा लेते हैं और इलाज चलता रहता है। फिलहाल 35 मरीजों पर यह रिसर्च किया गया है। फिलहाल फेफड़े के कैंसर के इलाज के लिए विश्व भर में सर्जरी और इंजेक्शन वाली कीमोथेरेपी प्रचलित है। कुछ मामलों में सर्जरी से ट्यूमर कोशिकाएं हटाई जाती हैं।
असर देख डॉक्टर उत्साहित
कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ. जीतेंद्र कुमार के मुताबिक कीमो टेबलेट का असर मरीजों पर बेहतर पड़ा है। इसलिए रिसर्च आगे बढ़ाया जा रहा है। कम से कम 200 केस शामिल करने की योजना है, ताकि रिसर्च को प्रकाशित करने का आधार मानकों पर हों। चेस्ट अस्पताल के विशेषज्ञ डॉ. अवधेश कुमार के मुताबिक फेफड़े के कैंसर का मात्र 15 प्रतिशत मामलों में ही इलाज संभव हो पाता है। हालांकि टारगेटेड थेरेपी और इम्यूनोथेरेपी जैसी रणनीतियों से उम्मीद की किरण दिखी है।
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