एकला चलो की राह पर कांग्रेस पीएम मोदी को हराने के लिए कर्नाटक में कुमारस्वामी के शपथ समारोह के दौरान अधिकतर सभी विरोधी दलों के नेता बेंगलुरू में मौजूद थे। लेकिन राहुल गांधी की रोजा इफ्तार पार्टी में दावत मिलने के बाद मायातवी और अखिलेश नहीं पहुंचे। इसी के चलते सियासी गलियारों में चर्चाओं का बाजार गर्म है। खुद कांग्रेसी नेता मान रहे हैं कि 2019 का चुनाव हमें अकेले ही लड़ना है और इसी के चलते वह तैयारी में जुट गए हैं। पर सपा व बसपा के लिए कानपुर सीट जीतना किसी सपने से कम नहीं होगा। 2007 से लेकर 2017 विधानसभा चुनाव में साइकिल व हाथी नहीं दौड़ा। यहां भजपा व पूर्व मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल के बीच पिछले चार चुनावों में सीधा मुकाबला हुआ। तीन बार श्रीप्रकाश जासवाल कानपुर से सांसद चुने गए, तो वहीं 2014 में डॉक्टर मुरली मनोहर यहां से जीतकर संसद पहुंचे। यहां के लोगों का मानना है कि भाजपा को अगर कोई टक्कर दे सकता है तो वह पूर्व मंत्री श्रीप्रकाश। क्योंकि वह महज 14 साल की उम्र से कांग्रेस से जुड़े हैं और शहर का पूरा नक्शा उनकी जुबां पर रटा है।
हार न मानने वालों में से हैं जायसवाल 74 साल के वरिष्ठ कोंग्रेसी नेता श्रीप्रकाश जायसवाल शहर से लगातार तीन बार सांसद रह चुके हैं। कोंग्रेसी नेता श्रीप्रकाश जायसवाल ने 2019 के लोकसभा चुनाव के बारे में कहा कि कानपुर में भाजपा की हार तय हैं। उन्होंने 2014 के लोकसभा में कांग्रेस को मिली हार को एक सुनामी बताया। कानपुर से हाईकमान जिसे चुनाव लड़ाएगी उसे जिताया जाएगा। पूर्व मंत्री ने कहा कि पार्टी हमें चुनाव लड़ने को हुक्म मिलता है तो हम भाजपा को इस बार पराजित कर कानपुर के बिखरे सपनों को पूरा करेंगे। श्रीप्राकश जायसवाल ने बताया कि 1977 में जब इंदिरा गांधी चुनाव हारी थी तब हम बहुत मायूस हुए थे। उस समय पार्टी में बिखराव की स्थिति उत्पन्न हो गई थी। कानपुर में पार्टी टूटने के कगार पर थी, तब इन्होने कानपुर में पार्टी को संभालने का काम किया, और वही से मेरी कांग्रेस पार्टी में सही मायने में इंट्री हुई थी।
1989 में चुने गए मेयर श्रीप्रकाश जासवाल ने 1989 में कानपुर शहर के मेयर का चुनाव लड़े और विजयी हुए। पहली बार कानपुर लोकसभा सीट पर 1998 में चुनाव लड़ने का मौक़ा किला, मगर ये चुनाव हार गए। 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में कानपुर लोकसभा की सीट पर विजयी घोषित हुए। 2004, साल 2009 में भी विजयी रहे, मगर साल 2014 में ये चुनाव हार गए। श्रीप्रकाश का मानना है कि राजनीति में एक सुनामी साल 1977 में आया था, जबकि दूसरा साल 2014 में आया, जिसमे कांग्रेस को हार मिली। मगर यूपी में वोटिंग प्रतिशत में कांग्रेस दूसरे स्थान पर रही।आगामी लोकसभा चुनाव के पहले राहुल गांधी को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाये जाने पर खुशी जाहिर की और कहा इसका पार्टी को बहुत फ़ायदा होगा।
इस ट्रेन से आते थे हफ्ते दो दिन कानपुर 2002 में कानपुर से सीधे नई दिल्ली के लिए एक नई ट्रेन चली थी, श्रमशक्ति एक्सप्रेस। यह ट्रेन देर रात कानपुर से चलती है और सुबह दिल्ली पहुंचती। दिल्ली से भी रात को रवाना होती है और भोर में कानपुर पहुंच जाती है। उस ट्रेन से एक व्यक्ति 2002 से ही करीब-करीब हर शनिवार की सुबह कानपुर आता है और दो दिन कानपुर में बिताने के बाद वह व्यक्ति श्रमशक्ति एक्सप्रेस से ही रविवार की रात दिल्ली के लिए रवाना हो जाता है। ऐसा कौन है जो हर हफ़्ते कानपुर आता है और दो दिन बिताने के बाद वापस दिल्ली चला जाता है? तो इसका जवाब है श्रीप्रकाश जायसवाल। इसके पीछे के राज का खुलासा करते हुए पूर्व मंत्री ने कहा कि मेरा शहर और यहां के लोग मेरे दिल में बसते हैं और न मैं इनके बिन रह पाता हूं और न ही यह मेरे बिना।
6 लाख ब्राम्हण, फिर जीतते रहे श्रीप्रकाश कानपुर में वोटरों की संख्य़ा 22 लाख से थोड़ी ज़्यादा है। ब्राह्मण वोटरों की संख्या छह लाख होने की वज़ह से कानपुर एक ब्राह्मण बाहुल्य क्षेत्र है। मुस्लिम वोटरों की संख्या क़रीब चार लाख और दलित और अन्य पिछड़े वर्ग के वोटरों की संख्या करीब दो लाख है। प्रोफेसर अनूप सिंह कहते हैं कानपुर हमेशा जातिगत राजनीति से ऊपर रहा है. एक समय कानपुर मिलों और मिल मज़दूरों की नगरी थी तो यहाँ से मज़दूर नेता जीतते थे। वे कहते हैं कि ट्रेड यूनियन नेता सत्येन्द्र मोहन बनर्जी यहाँ से चार बार सांसद चुने गए। कानपुर ब्राह्मण बाहुल्य है पर यहां के पिछले तीन चुनाव जायसवाल जीते जो बनिया हैं। कहते हैं कानपुर में सिर्फ़ उमीदवार की पृष्ठभूमि, उसकी काबिलियत देखी जाती है.“