कानपुर

कांग्रेस-बसपा गठबंधन का ऐलान, मायावती के हिस्से में सिर्फ 13 सीट

गठबंधन में कांग्रेस बड़े भाई की भूमिका में होगी, जबकि बसपा को सहयोगी का किरदार निभाना होगा।

कानपुरJun 14, 2018 / 03:59 pm

आलोक पाण्डेय

कांग्रेस-बसपा गठबंधन का ऐलान, मायावती के हिस्से में सिर्फ 13 सीट

कानपुर . सियासत करवट बदल रही है। यूपी में सरकारी बंगले में उलझी सपा को अकेला छोडक़र कांग्रेस-बसपा के गठबंधन चुनावी मैदान में उतरेगा। इस गठबंधन में खास बात यह है कि मिशन 2019 के लिए चुनावी अखाड़े में कांग्रेस बड़े भाई की भूमिका में होगी, जबकि बसपा को सहयोगी का किरदार निभाना होगा। गठबंधन का औपचारिक ऐलान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और बसपा कमांडर मायावती की बैठक के बाद होगा। अलबत्ता दोनों दलों के बीच न्यूनतम कॉमन प्रोग्राम पर सहमति बन चुकी है। बसपा के पैंतरे से नाराज अखिलेश यादव ने भी अकेले चुनाव लडऩे का ऐलान कर दिया है। उन्होंने प्रदेश के पदाधिकारियों से सभी सीटों पर जिताऊ उम्मीदवारों की तलाश करने को कहा है। यह चुनावी गठबंधन फिलहाल मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों के संदर्भ में है। नतीजे अनुकूल हुए तो यूपी की सियासत में कांग्रेस की ज्यादा दमखम के साथ महागठबंधन में इंट्री होगी।

ज्योतिरादित्य सिंधिया ने किया रणनीति का खुलासा, सपा को अकेले छोड़ा

मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव संचालन समिति के अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि मध्यप्रदेश में गठजोड़ के लिए उनकी पार्टी के ‘दरवाजे खुले’ हैं और पार्टियों के साथ गठबंधन में सीटों का बंटवारा ‘गतिरोध’ नहीं बनेगा। सिंधिया का यह बयान राज्य में विधानसभा चुनावों से पहले कांग्रेस-बीएसपी के बीच हो रही बातचीत के वक्त आया है। सिंधिया ने कहा कि वह दूसरी पार्टियों से ‘चर्चा’ के लिए तैयार हैं लेकिन जोर दिया कि यह साफ समझ होनी चाहिए कि अंतिम लक्ष्य क्या है। अंतिम लक्ष्य यानी भाजपा को सत्ता से हटाना है। गौरतलब है कि सिंधिया मध्यप्रदेश में इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए प्रचार प्रभारी हैं। मध्यप्रदेश में बीएसपी के साथ कांग्रेस के संभावित गठजोड़ के बारे में उन्होंने कहा कि बड़े और ज्यादा मजबूत साझेदार को यह तय करना चाहिए कि समूचे गठबंधन को साथ लेकर चलने के लिए बराबर का सम्मान भी मिलना चाहिए। इसी के साथ मध्यप्रदेश कांग्रेस ने बसपा को उम्मीद से ज्यादा 13 सीटों का ऑफर दिया है। यह सभी सीट ऐसी हैं, जहां पिछले विधानसभा चुनावों में बसपा ने बेहतर प्रदर्शन किया था।

गठबंधन टूटा, इसलिए अब अकेले चुनाव लड़ेंगे अखिलेश यादव

दूसरी ओर, समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बसपा की पैंतरेबाजी और बसपा सुप्रीमो मायावती की जिद के आगे और ज्यादा झुकने से इंकार कर दिया है। पार्टी की बैठक में सपा के सुल्तान ने अकेले चुनाव लडऩे का ऐलान करते हुए सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारने का फैसला किया है। इस फैसले पर अमल के लिए मध्यप्रदेश इकाई के पदाधिकारियों को तैयारियों को दुरुस्त करने के लिए आदेश दिया गया है। अखिलेश ने सपा और भाजपा को गैर जिम्मेदार बताते हुए सपा के नेतृत्व में सरकार को देशहित में बताया है। अखिलेश यादव के फैसले के बाद पार्टी ने सभी सीटों पर चुनाव लडऩे के लिए उम्मीदवारों से आवेदन मांगे हैं। यह फैसला फिलहाल मध्यप्रदेश राज्य के संदर्भ में किया गया है। सीटों के बंटवारे को लेकर ज्यादा खींचतान हुई तो लोकसभा चुनाव में यूपी के संदर्भ में भी नया निर्णय मुमकिन है। गौरतलब है कि बसपा और कांग्रेस के नए गठजोड़ से सपा के कमांडर खुश नहीं हैं।

कुर्बानी के बावजूद माया की जिद से परेशान होकर लिया फैसला

बीते दिवस लखनऊ में मध्यप्रदेश सपा इकाई के पदाधिकारियों की बैठक में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहाकि उतना ही झुकना मुमकिन है, जितना रीड़ की हड्डी इजाजत देती है। बैठक में मौजूद कानपुर क्षेत्र के सपा नेता ने बताया कि यह टिप्पणी बसपा प्रमुख मायावती की बढ़ती जिद के मद्देनजर थी। गौरतलब है कि पहले मायावती ने गठबंधन में शामिल होने के लिए सम्मानजनक सीटों की शर्त रखी थी, जिसके जवाब में अखिलेश ने कुर्बानी देते हुए लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की 80 में करीब 30 सीटों पर सपा के उम्मीदवार उतारने का फैसला किया था। अब मायावती गठबंधन में कांग्रेस को हिस्सेदार बनाने की नई जिद पर अड़ गई हैं। अखिलेश को यह शर्त भी कबूल है, लेकिन कांग्रेस के लिए गठबंधन में सिर्फ 10 सीट रहेंगी। कर्नाटक में कांग्रेस की कृपा से सत्ता में साझेदारी मिलने के बाद मायावती चाहती हैं कि यूपी में कांग्रेस को गठबंधन में 20 सीट मिलनी चाहिए। यह जिद सपा के सुल्तान को कबूल नहीं है।
मध्यप्रदेश के रास्ते बसपा और कांग्रेस के रिश्ते मजबूत होंगे

गौरतलब है कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस विधानसभा चुनाव जीतने के लिए बसपा का साथ चाहती है। पड़ोसी राज्य में कांग्रेस ने सपा को गठबंधन में शामिल होने के लिए पूछा भी नहीं। यूपी में सपा की साझेदार बसपा ने भी सपा के लिए पैरवी करना जरूरी नहीं समझा। ऐसी कई बातों से अखिलेश यादव नाराज हो गए हैं। इसी नाते उन्होंने मध्यप्रदेश में कांग्रेस को वॉक-ओवर देने के बजाय सभी सीटों पर चुनाव लडऩे का फैसला किया है। उधर, बसपा प्रमुख मायावती ने भी सपा के सुल्तान के बजाय कांग्रेस के युवराज से सियासी रिश्ते जोडऩे में फायदा देखा है। कांग्रेस-बसपा का गठबंधन ही इस साल के अंत में प्रस्तावित मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनाव में उतरेगा। सियासी प्रयोग कामयाब हुआ तो यूपी की सियासत में कांग्रेस का वजूद बढऩा तय है। कांग्रेस के साथ रिश्ते जोडक़र मायावती एक तीन से दो निशाने लगाना चाहती हैं।

कांग्रेस की जिद पर एन. महेश को बनाया गया है मंत्री

बीते दिवस कर्नाटक में कुमारस्वामी सरकार का विस्तार हुआ। इस विस्तार में यूपी की सत्ता से बेदखल होने के कई साल बाद बीएसपी को प्रत्यक्ष तौर पर किसी राज्य में सत्ता की साझेदारी मिली है। गौरतलब है कि कर्नाटक में जेएडीएस और कांग्रेस अपने दम पर ही सत्ता के सुविधाजनक आंकड़े का जुगाड़ कर चुकी है। ऐसे में सरकार में बीएसपी के रहने या न रहने से कोई फर्क नहीं पड़ता। मायावती भी इस बात को जानती हैं। बावजूद कर्नाटक में बीएसपी के इकलौते विधायक एन. महेश भी कुमारस्वामी सरकार में मंत्री बनाए गए हैं। ऐसा संभव हुआ है कांग्रेसी युवराज राहुल गांधी के कारण। दरअसल, सपा की नजरों में कमजोर कांग्रेस इस फैसले के जरिए मायावती से रिश्ते जोडक़र मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनावों में भाजपा को पटखनी देने की जुगत में है। तीनों राज्यों की कई सीटों पर बसपा का वोटबैंक पार्टी प्रत्याशी को जिताने की स्थिति में भले ही नहीं है, लेकिन कांग्रेस का साथ देकर भाजपा को हराने की क्षमता अवश्य रखता है।

पड़ोसी राज्यों के बाद यूपी में साथ होगा हाथी और हाथ

राजनीति के जानकारों के मुताबिक, कांग्रेस और बसपा का गठजोड़ ज्यादा प्रभावी होगा। बीते लोकसभा चुनावों में बसपा 34 स्थानों पर दूसरे नंबर पर थी, जबकि कांग्रेस 20 स्थानों पर। ऐसे में यदि दोनों दल साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे तो मुमकिन है कि बसपा-कांग्रेस गठबंधन यूपी में अस्सी में पचास सीट पर विजयी पताका को लहरा देगा। इस गठबंधन में सपा के साथ होने की स्थिति में 60-65 सीटों पर कामयाबी मिलने की उम्मीद है। बसपा के उच्च पदस्थ सूत्र ने बताया कि पार्टी सुप्रीमो का सपना दिल्ली सिंहासन पर काबिज होना है। ऐसे में सपा के बजाय कांग्रेस का साथ मुफीद रहेगा। कारण यह कि गठबंधन की स्थिति में भले ही अखिलेश यादव बड़ा दिल दिखाकर बसपा को 35 सीट देने के लिए तैयार हैं, लेकिन इस स्थिति में जीत का सेहरा अखिलेश के सिर सजेगा। तीन राज्यों में कांग्रेस के जरिए भाजपा को हराने के बाद बसपा की हैसियत बढऩा स्वाभाविक है। ऐसे में वह यूपी के गठबंधन में सपा पर दबाव की राजनीति बनाकर कांग्रेस को सम्मानजनक सीट दिलाने का प्रयास करेंगी।

इस जुगत से मायावती को प्रधानमंत्री बनना तय होगा

बसपा के पूर्व विधायक कहते हैं कि मिशन 2019 में भाजपा के पराजित होने की स्थिति में भी कांग्रेस को बहुमत नहीं मिलेगा। ऐसे में गठबंधन की सरकार बनेगी। प्रधानमंत्री पद के दावेदार तमाम होंगे। उदाहरण के तौर पर ममता बनर्जी, के.चंद्रशेखर राव, शरद पवार, नवीन पटनायक, अखिलेश यादव और मायावती। कांग्रेस के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन करने से बसपा का पलड़ा भारी रहेगा। भविष्य की राजनीति के लिए कांग्रेस पार्टी मायावती के नाम पर समर्थन देने को तुरंत तैयार होगी। ऐसा संयोग बनता है तो मायावती का प्रधानमंत्री बनना तय है। चूंकि केंद्र की सत्ता नहीं मिलने की स्थिति में कांग्रेस परोक्ष रूप से शासन करना चाहेगी, इसलिए उसे मायावती से अच्छा साथी भी नहीं मिलेगा। इसके अतिरिक्त बसपा के साथ गठजोड़ के जरिए कांग्रेस यूपी में अपनी जमीन को मजबूत करने में भी कामयाब होगी।

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