जैसा कि बताया जा चुका है कि शरीर पर कोरोना वायरस का असर व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर निर्भर करता है। बॉडी इम्युनिटी ही यह तय करती है कि कोरोना वायरस कब तक और कितना असर कर पाएगा। अगर रोग प्रतिरोधक क्षमता कम है तो मरीज जल्दी वायरस की चपेट में आकर मौत के मुंह में भी जा सकता है और अगर यही क्षमता प्रबल है तो कोरोना इसके आगे हार जाता है। कानपुर में संक्रमण के बाद ठीक होने वाले ७० वर्षीय बुजुर्ग की प्रतिरोधक क्षमता ने ही उसे कोरोना पर विजय दिलाई है। ऐसी ही क्षमता को एंटीबॉडी कहा जा सकता है जो तब विकसित होती है जब शरीर में वायरस का प्रवेश हो जाता है और इम्युनिटी उसे फैलने से रोकने की कोशिश करती है।
प्लाज्मा पर शोध के लिए जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज में तैयारी पूरी हो चुकी है। इसके लिए मेडिकल कॉलेज की एथिक्स कमेटी को प्रस्ताव भेजा गया है। यहां से मंजूरी के बाद इसे आईसीएमआर को भेजा जाएगा। मंजूरी मिलने पर स्वस्थ मरीजों के प्लाज्मा से संक्रमितों का इलाज किया जाएगा। ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग की हेड प्रोफेसर लुबना खान ने बताया कि कोरोना बीमारी का कारण कोविड-19 वायरस है। इसके संक्रमण से ठीक हो चुके मरीजों के शरीर में बनी एंटीबॉडी इलाज में कारगर हो सकती है। ऐसे लोगों के खून से प्लाज्मा निकालकर संक्रमित मरीजों को चढ़ाया जाएगा।
कोरोना से जंग जीत चुके मरीजों के शरीर में वायरस के प्रति बनी एंटीबॉडी कोरोना संक्रमितों के इलाज में कारगर साबित हो रही है। अमेरिका में ठीक हो चुके कोरोना मरीजों का प्लाज्मा चढ़ाने से कोरोना संक्रमितों को चढ़ाया जा रहा है। मेडिकल कॉलेज के जनरल मेडिसिन एवं ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग ने इसी तरीके पर शोध करने की तैयारी की है। विभाग ने यहां भी प्लाज्मा विधि से इलाज का ब्लूप्रिंट बनाया है। इ ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग ने मेडिकल कॉलेज के हैलट अस्पताल में बनाए गए कोविड-19 वार्ड में भर्ती 6 और सरसौल पीएचसी में भर्ती कोरोना पॉजिटिव मरीजों के ठीक होने के बाद प्लाज्मा निकालने का प्रस्ताव रखा है।