कुष्मांडा देवी मंदिर का इतिहास
मंदिर के पुजारी परशुराम दुबे ने बताया कि भगवान शंकर की पत्नी सती के मायके में उनके पिता राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया था। इसमें सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया गया था। लेकिन शंकर भगवान को निमंत्रण नहीं दिया गया था। माता सती भगवान शंकर की मर्जी के खिलाफ उस यज्ञ में शामिल हो गईं। माता सती के पिता ने भगवान शंकर को भला-बुरा कहा था, जिससे अक्रोसित होकर माता सती ने यज्ञ में कूद कर अपने प्राणों की आहुति दे दी। माता सती के अलग-अलग स्थानों में नौ अंश गिरे थे। माना जाता है कि चैथा अंश घाटमपुर में गिरा था। तब से ही यहां माता कुष्मांडा विराजमान हैं।
लगातार रिसता है पानी
दुर्गा के नौ रूपों में से एक रूप देवी कुष्मांडा इस प्राचीन मंदिर में लेटी हुई मुद्रा में हैं। पिंड स्वरूप में लेटी मां कुष्मांडा से लगातार पानी रिसता रहता है। कहते हैं इस जल को पीने से कई तरह की बीमारियां दूर हो जाती हैं। हालांकि, यह अब तक रहस्य बना हुआ है कि पिंडी से पानी कैसे निकलता है। मंदिर के पुजारी परशुराम दुबे के मुताबिक, मां कुष्मांडा की पिंडी कितनी पुरानी है, इसकी गणना करना मुश्किल है। पुजारी के मुताबिक मां की पिंडी जमीन से निकली थी। यहां के एक कोराबारी ने पिंडी को मंदिर में विराजमान कराया था।
हर मनोकामना पूरी करती मां
बिरहाना रोड पर स्थापित मां तपेश्वरी देवी मंदिर के बारे में मान्यता है कि जो भी भक्त यहां अखंड ज्योति जलाते हैं भगवती उनकी मनोकामना अवश्य पूरी करती हैं। यहां पर नवरात्र पर हरदिन आसपास के जिलों के सैकड़ों भक्त आते हैं और माता रानी के दर पर माथा टेकते हैं और मां के दरबार में अखंड ज्योति जलाते हैं। बच्चों का यहां मुंडन भी होता है। इसके अलावा मां के 108 नामों का जप भी होता है। मां के नामों का जप करने से पद, प्रतिष्ठा और ऐश्वर्य की कामना पूरी होती है। पर इस वर्ष आमभक्तों के लिए मंदिर के पट बंद कर दिए गए हैं।
मां तपेश्वरी मंदिर का इतिहास
मंदिर के पुजारी के मुताबिक जब लंका पर विजय के बाद भगवान राम अयोध्या पहुंचे तो धोबी के ताना मारने पर मां सीता को उन्होंने त्याग दिया था। लक्ष्मण जी जानकी जी को लेकर ब्रह्मावर्त स्थित वाल्मीकि आश्रम के पास छोड़ गए थे। आज जहां तपेश्वरी माता मंदिर स्थित है तब वहां घना जंगल था और मां गंगा वहीं से बहती थीं। सीता जी ने तब यहां पुत्र की कामना के लिए तप किया था। भगवती सीता के तप से ही तपेश्वरी माता का प्राकट्य हुआ था। लव कुश के जन्म के बाद सीता जी ने मां के समक्ष ही दोनों पुत्रों का मुंडन कराया था।