सरसों की मौजूदा प्रजातियों में इरोसिक एसिड की मात्रा ४५ से ५० फीसदी तक होती है। वैज्ञानिकों का लक्ष्य है कि नई प्रजाति में यह एसिड मात्र दो प्रतिशत तक ही रहे। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद पूसा नई दिल्ली ने इससे पूर्व एक प्रजाति करिश्मा विकसित की है जो विभिन्न केन्द्रों पर ट्रायल फेज में है।
वैज्ञानिकों का यह भी दावा है कि नए रिसर्च से सरसों की गुणवत्ता और उत्पादकता में सुधार होगा। साथ ही विश्व व्यापार संगठन के नियमों में आ रही अड़चन दूर होगी। सरसों को अंतरराष्ट्रीय बाजार मिल सकेगा। फ्रांस समेत यूरोप के कई देशों में मीठे तेल की डिमांड अधिक है।
सीएसए के वैज्ञानिकों का कहना है कि सरसों की नई प्रजाति से निकाले गए मीठे तेल में लाभकारी ओमेगा-3 फैटी एसिड की मात्रा पर कोई असर नहीं पड़ेगा। यह फैटी एसिड दिल के मरीजों, आंख व गुर्दे के मरीजों के लिए बेहद फायदेमंद होता है।
शोधकर्ता वैज्ञानिक प्रो. महक सिंह का कहना है पूरे विश्व में राई सरसो उत्पादन में भारत का नंबर दुनिया में चौथा है। फ्रांस, अमेरिका, कनाडा के बाद भारत का स्थान है। अचार बनाने में सरसों के तेल का इस्तेमाल होता है। इसलिए इसकी खपत अधिक है। उस लिहाज से विश्व की जरूरतों को पूरा करने में कामयाबी मिल सकती है।