बैठक में हुए फैसले पर अब कार्यपरिषद की मुहर लगने के बाद यह प्रस्ताव शासन को भेजा जाएगा। दरअसल नई शिक्षा नीति के तहत 30 फीसदी पाठ्यक्रम को विश्वविद्यालयों को अपने स्तर से निर्धारित करना है। बैठक में हुई चर्चा के बाद कन्नौज क्षेत्र की कन्नौजी, उन्नाव की बैसवारी, अवधी, ब्रज समेत अन्य बोलियों को शामिल करने का फैसला लिया गया। साथ ही इन्हीं परिक्षेत्रो से जुड़े राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त साहित्यकारों व उनकी रचनाओं को भी पाठ्यक्रम में स्थान दिया जाएगा।
इस बैठक में हिंदी भाषा और हिंदी साहित्य विषय को खत्म करके हिंदी को एकमात्र विषय के रूप में स्नातक में किया गया है। जबकि इस बदलाव को लेकर हिंदी शिक्षकों में नाराजगी व्याप्त है। उनके मुताबिक ऐसा करने से संपूर्ण साहित्य और भाषा छात्रों को समझाना कठिन होगा। डीजी कॉलेज अर्मापुर की प्राचार्य डॉ. गायत्री सिंह कहती हैं कि हिंदी भाषा और साहित्य का समावेश एक विषय में उचित नहीं है।