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कनपुरिया स्ट्राबेरी का मिलेगा स्वाद, पहाड़ी इलाकों की फसल मैदानों में उगाने की तैयारी

locationकानपुरPublished: Jan 28, 2020 01:05:55 pm

अक्टूबर में होगी बुआई, पांच महीने बाद फसल हो जाएगी तैयारसीएसए ने तैयार की तकनीक, क्वालिटी में भी कोई फर्क नहीं
 

कनपुरिया स्ट्राबेरी का मिलेगा स्वाद, पहाड़ी इलाकों की फसल मैदानों में उगाने की तैयारी

कनपुरिया स्ट्राबेरी का मिलेगा स्वाद, पहाड़ी इलाकों की फसल मैदानों में उगाने की तैयारी

कानपुर। पहाड़ी इलाकों में पैदा होने वाली स्ट्राबेरी को अब आप अपने किचन गार्डेन और खेतों में भी उगा सकेंगे। कानपुर के चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक खास तकनीक तैयार की है। जिससे इस जलवायु में भी अच्छी क्वालिटी की स्ट्राबेरी उगाई जा सकती है। जल्द ही पहाड़ों से स्ट्राबेरी मंगाने की जरूरत खत्म हो जाएगी और लोगों को कानपुर में पैदा होने वाली स्ट्राबेरी का स्वाद मिलेगा।
यह हैं स्ट्राबेरी के फायदे
स्ट्राबेरी में अधिक मात्रा में विटामिन-सी और खनिज तत्व मिल रहे हैं। एंटीआक्सीडेंट भी अधिक होता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक आंखों को मोतियाबिंद से बचाता है। आंखों के लेंस से जो प्रोटीन धूप के जरिए नष्ट होती है उसकी पूर्ति इस फल से संभव है। विटामिन-सी होने के नाते यह त्वचा में कोलाजेन अधिक पैदा करती है जो कि त्वचा में खिंचाव पैदा करता है। पोटेशियम अधिक मात्रा में मिलता है, जो हार्ट अटैक और ब्रेन स्ट्रोक के रिस्क को कम करता है।
यहां से कानपुर आती है स्ट्राबेरी
कानपुर के लोगों को जिस स्ट्राबेरी का स्वाद मिल रहा है वह हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के पहाड़ों पर पैदा होती है। जलवायु दशाओं के कारण इसे मैदानी इलाकों पर उगाना मुश्किल होता है, इस कारण इसकी खेती केवल पहाड़ी इलाकों में ही की जा सकती है। लेकिन चन्द्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि के वैज्ञानिकों तकनीक तैयार की है, पहाड़ों में फरवरी में बोई जाने वाली फसल मैदानी इलाकों में अक्तूबर में बोई जा सकेगी। इसके खुशबू, साइज और विटामिंस में कोई कमी नहीं होगी।
अप्रैल में मिलेगी पैदावार
विवि के उद्यान विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. वीके त्रिपाठी के मुताबिक वैज्ञानिकों की विकसित तकनीक से कुछ किसानों ने भी इसकी फसल लगाई है। अप्रैल में कानपुर में पैदा हुई स्ट्राबेरी बाजार में उपलब्ध होगी। डॉ. त्रिपाठी के मुताबिक महाराष्ट्र व हरियाणा में वहां की जलवायु दशाओं के अनुकूल खेती हो रही है उसी तर्ज पर यहां तकनीक विकसित की गई है। डॉ. त्रिपाठी के मुताबिक एक तरह से कंट्रोल तकनीक विकसित की गई है।
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