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Independence Day 2021: 16 साल की क्रांतिकारी नादिरा ने छुड़ा दिए छक्के, करंट के झटके दिए गए लेकिन नहीं बताए क्रांतिकारियों के नाम

locationकानपुरPublished: Aug 15, 2021 11:07:05 am

Submitted by:

Arvind Kumar Verma

75th Independence Day 2021: 16 वर्ष की अवस्था में क्रांतिकारी नादिरा ने लूटा कानपुर का पोस्ट ऑफिस, बिजली के झटके देकर पुलिस ने हैवानों की तरह यातनाएं दी

Independence Day 2021: 16 साल की क्रांतिकारी नादिरा ने छुड़ा दिए छक्के, बिजली के करंट के बावजूद नहीं बताए क्रांतिकारियों के नाम

Independence Day 2021: 16 साल की क्रांतिकारी नादिरा ने छुड़ा दिए छक्के, बिजली के करंट के बावजूद नहीं बताए क्रांतिकारियों के नाम

पत्रिका न्यूज नेटवर्क
कानपुर. Independence Day 2021- क्रांति की शताब्दी में नादिरा का नाम क्रांतिकारियों के जेहन में छा गया। 16 वर्ष की आयु में अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने वाली नादिरा का नाम सभी की सुर्खियों में आ गया। वर्ष 1940 की बात है जब नादिरा नाम पुलिस के लिए नासूर बन गया। दरअसल 16 साल की आयु नादिरा ने अपने एक साथी के साथ कानपुर के बिरहाना रोड स्थित पोस्ट आफिस को लूट लिया था। पुलिस ने उन्हें पकड़ा और उनके साथी क्रांतिकारियों का नाम जानने के लिए बहुत प्रताणित किया। यहां तक कि बिजली के करंट के झटके भी दिए, लेकिन नादिरा की जुबान चुप्पी साधे रही और उफ्फ भी नही की।
1940 को बिरहाना रोड पोस्ट ऑफिस लूटा

बात सन 1940 की है, जब नादिरा ने शिवशंकर के साथ जनरल पोस्ट आफिस पर धावा बोल दिया था। दोनों ने पिस्तौल लगा पोस्ट आफिस के स्टाफ संतरी को काबू किया। वहां से नादिरा ने 1.36 लाख रुपये लूटे। हालांकि इस दौरान फोन का तार नहीं काटा जा सका। इसका फायदा उठाकर पुलिस को खबर कर दी गई। पुलिस ने आनन-फानन में पोस्ट आफिस को पूरी तरह घेर लिया। नादिरा शिवशंकर को हिम्मत बंधा हवाई फायरिंग कर बाहर निकलीं तो भगदड़ मच गई। अचानक नादिरा ने रुपये हवा में उड़ा दिए तो जनता रुपए लूटने लगी।
पुलिस ने हैवान बनकर दी गईं यातनाएं

भीड़ देख पुलिस असहाय हो गई। हालांकि पुलिस की नजर नादिरा पर थी, लेकिन वह शिवशंकर को बचाना चाहती थी। मौका पाकर नादिरा पिस्तौल फेंक भीड़ में शामिल हो गईं। फिर भी पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया। पुलिस ने क्रांतिकारियों का नाम जानने के लिए कई यातनाएं देते हुए करंट लगाया, जिसे बयां करना बमुश्किल है। मगर नादिरा की चुप्पी नहीं टूटी। हालांकि सेशन कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई, लेकिन उच्च न्यायालय ने 10 वर्ष कैद के रूप में परिवर्तित कर दिया। उन्हें फतेहगढ़ सेंट्रल जेल भेजा गया, जहां राजबंदियों के साथ अमानवीय व्यवहार देख 1 जनवरी 1947 को भूख हड़ताल शुरू हो गई। जिसमें 20 जनवरी को नादिरा की हालत बिगड़ी।
फिर इस तरह नादिरा ने तोड़ दिया दम

26 जनवरी को उन्हें जेल से बाहर अस्पताल में भर्ती कराया। मगर दो फरवरी को नादिरा ने दम तोड़ दिया। देश की आजादी के बाद यूपी के तत्कालीन जेल मंत्री रफी अहमद किदवई और फर्रुखाबाद के सांसद कालीचरण टंडन जेल गए और मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दिए। फिर जेलर का स्थानांतरण कर दिया गया। इसी के साथ यह मामला इतिहास के पन्नों तक सिमटकर रह गया। मगर आज भी लोग स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस पर नादिरा को याद करते हैं।
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