1940 को बिरहाना रोड पोस्ट ऑफिस लूटा बात सन 1940 की है, जब नादिरा ने शिवशंकर के साथ जनरल पोस्ट आफिस पर धावा बोल दिया था। दोनों ने पिस्तौल लगा पोस्ट आफिस के स्टाफ संतरी को काबू किया। वहां से नादिरा ने 1.36 लाख रुपये लूटे। हालांकि इस दौरान फोन का तार नहीं काटा जा सका। इसका फायदा उठाकर पुलिस को खबर कर दी गई। पुलिस ने आनन-फानन में पोस्ट आफिस को पूरी तरह घेर लिया। नादिरा शिवशंकर को हिम्मत बंधा हवाई फायरिंग कर बाहर निकलीं तो भगदड़ मच गई। अचानक नादिरा ने रुपये हवा में उड़ा दिए तो जनता रुपए लूटने लगी।
पुलिस ने हैवान बनकर दी गईं यातनाएं भीड़ देख पुलिस असहाय हो गई। हालांकि पुलिस की नजर नादिरा पर थी, लेकिन वह शिवशंकर को बचाना चाहती थी। मौका पाकर नादिरा पिस्तौल फेंक भीड़ में शामिल हो गईं। फिर भी पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया। पुलिस ने क्रांतिकारियों का नाम जानने के लिए कई यातनाएं देते हुए करंट लगाया, जिसे बयां करना बमुश्किल है। मगर नादिरा की चुप्पी नहीं टूटी। हालांकि सेशन कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई, लेकिन उच्च न्यायालय ने 10 वर्ष कैद के रूप में परिवर्तित कर दिया। उन्हें फतेहगढ़ सेंट्रल जेल भेजा गया, जहां राजबंदियों के साथ अमानवीय व्यवहार देख 1 जनवरी 1947 को भूख हड़ताल शुरू हो गई। जिसमें 20 जनवरी को नादिरा की हालत बिगड़ी।
फिर इस तरह नादिरा ने तोड़ दिया दम 26 जनवरी को उन्हें जेल से बाहर अस्पताल में भर्ती कराया। मगर दो फरवरी को नादिरा ने दम तोड़ दिया। देश की आजादी के बाद यूपी के तत्कालीन जेल मंत्री रफी अहमद किदवई और फर्रुखाबाद के सांसद कालीचरण टंडन जेल गए और मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दिए। फिर जेलर का स्थानांतरण कर दिया गया। इसी के साथ यह मामला इतिहास के पन्नों तक सिमटकर रह गया। मगर आज भी लोग स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस पर नादिरा को याद करते हैं।