दरअसल मलेरिया फैलाने में पैल्सीफेरम और वाईवैक्स पैरासाइड सबसे अहम होते हैं. पैल्सीफेरम जिसे खूनी मलेरिया भी कहते हैं. इसका असर तीन चार साल पहले तक था. इससे पीड़ित पेशेंट्स ज्यादा आते थे, लेकिन अब वाईवैक्स पैरासाइड का असर काफी ज्यादा है. जिला महामारी वैज्ञानिक डॉ. देव सिंह की माने तो कई सालों बाद वाईवैक्स पैरासाइड का इतना असर दिख रहा है. इस पैरासाइड के ज्यादा असरदार होने की एक वजह एंटीबायोटिक दवाओं का अंधाधुंध प्रयोग भी है. जिसकी वजह से मरीजों को इलाज के दौरान दी जाने वाली कई दवाएं बेअसर साबित हो रही हैं.
वाईवैक्स पैरासाइड मच्छरों से ही फैलता है. बारिश रुकने के साथ ही जलभराव की वजह से मच्छरों का प्रकोप लगातार बढ़ा है. ऐसे में मादा एनोफिलिज मच्छर भी तेजी से बढ़ रहे हैं. इसके लार्वा पानी में 30 से 35 दिन तक जिंदा रहते हैं. ऐसे में इनमें ज्यादा प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो रही है. क्वायल इत्यादि का असर नहीं होने से मच्छरदानी का प्रयोग करना ज्यादा असरदार होगा. मालूम हो कि इस साल अभी तक 86 मरीजों को मलेरिया की पुष्टि हुई है. इनमें से ज्यादातर वाईवैक्स पैरासाइड से पीडि़त ही हैं.
मेडिकल कॉलेज में पैथोलॉजी डिपार्टमेंट के एचओडी प्रो. महेंद्र सिंह कहते हैं कि पैरासाइड और वायरस समय समय पर म्यूटेट होते रहते हैं. साथ ही इनमें प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती है. जांचों में यह साफ होता है. इसी के मुताबिक जनरल प्रैक्सिनर्स को लाइन ऑफ ट्रीटमेंट तय करनी होती है.