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गोबर से बनाई गणेश की प्रतिमा, पूरे साल भक्तों को दर्शन देंगे बप्पा

locationकानपुरPublished: Sep 14, 2018 11:21:45 am

Submitted by:

Vinod Nigam

मां गंगा के जल के अलावा जलाशयों के बचाने के लिए शुरू की मुहिम, गोबर के बने गणेश प्रदूषण से दिलाएंगे मुक्ति

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गोबर से बनाई गणेश की प्रतिमा, पूरे साल भक्तों को दर्शन देंगे बप्पा

कानपुर। गणपति बप्पा मोरया…जय गजानन, जय गणपति पधारों मेरों द्धारा… की गूंज से पूरा शहर सराबोर है। भक्त घरों और पंडालों में भगवान गणेश की मूर्तियों की विराजमान कर रहे हैं। पर जिस जिस गणेश प्रतिमा को भक्तगण श्रद्धा भाव से पूजते हैं उसको बनाने में प्लास्टर ऑफ पेरिस और केमिकल युक्त रंगो का इस्तेमाल किया जाता है। केमिकल युक्त गणेश प्रतिमा का विसर्जन करने से पर्यावरण प्रदूषित होता है। गणेश विसर्जन में पर्यावरण प्रदूषित ना हो इसके लिए कानपुर के एक ज्योतिषाचार्य गोबर युक्त गणेश प्रतिमा का निर्माण कर श्रृछालुओं को निशुल्क में दे रहे हैं। ज्योतिषाचार्य ने बताया कि इस मुर्ति को घर में विराजमान कराए जाने से दो फाएदे हैं। पहला गोबर की मूर्ति गंगा के जल के अलावा प्रदूषण से मुक्ति दिलाती है तो वहीं इसका विजर्सन घर में भक्त कर सकते हैं। मूर्ति के अंदर तुलसी के बील हैं और गमले में विसर्जन के बाद वो उग आते हैं। जिससे भक्तगण पूरे साल गणपति बप्पा के दर्शन कर सकते हैं।

इस लिए गोबर के बना रहे गणेश
गंगा बचाव अभियान की सदस्य व गोविन्द नगर निवासी ज्योतिषाचार्य विवेक तिवारी गणेश चतुर्थी के लिए गोबर युक्त गणेश प्रतिमा का निर्माण कर रहे हैं। ज्योतिषाचार्य विवेव कुमार ने तीन साल पहले गंगा के अलावा अन्य जलाशयों को प्रदूषण से बचाने के लिए गोबर के गणेश की मूर्ति बनाने का कार्य शुरू किया था। लोगों ने शुरू में इसका विरोध किया किंतु अब ये प्रकृति की सगुण उपासना और मंगलमूर्ति के प्रति आस्था प्रकट करने का सशक्त माध्यम बन गया है। विवक ने बताया कि गौ माता के गौमय (गोबर) से गौर गणेश बनाने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है । कुछ दशकों पहले गणपति उपासना- उत्सव की परंपरा जो आज समूचे भारत वर्ष में है यह महाराष्ट्र से प्रारंभ हुई । ये परंपरा विशुद्ध मिट्टी एवं प्राकृतिक रंगों से निर्मित श्री गणेश की मूर्तियों को सार्वजनिक स्थलों एवं घर-घर में स्थापित कर गणपति उत्सव मनाने की है। इसका उद्देश्य समाज को संगठित कर एक मजबूत गणतंत्र की स्थापना था।

ये फायदा है गोबर गणेश का
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि शास्त्रों के अनुसार गोबर में हमेशा लक्ष्मी का वास बताया गया है। इसमें रिद्धि-सिद्धि एवं तैतीस कोटि देवताओं का तेज समाया रहता है। जब हम अपने हांथो से गौर गणेश का निर्माण करते है, तब गौमय (गोबर) के रस में विद्यमान उर्जा हमारे शरीर में प्रवेश कर विभिन्न शारीरिक, मानसिक विकृतियों, रोगों को दूर करने में सहायक होती है। हमारे प्रतिरोधक एवं प्रतिरक्षात्मक तंत्र को गोबर की उर्जा सुद्रढ़ करती है। विवेक का मानना है की इनके द्धारा बनाई जा रही गणेश प्रतिमा पूरी तरह से इको फ्रेंडली है। इसका विसर्जन करने से पर्यावरण को किसी तरह का नुकसान नहीं होगा। विवेक ने बताया कि ज्यादा पैसे की लालच के चक्कर में कुछ मूर्तिकार प्लास्टर आफ पेरिस प्लास्टिक और केमिकल वाले रंगों का इस्तेमाल करते है जो की पर्यावरण के लिए हानिकारक है।

पूरे साल कर सकते हैं गणेश के दर्शन
गणेश चतुर्थी के बाद गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है लेकिन विवेक का मानना है कि हम इतने दिन गणेश का पूजन करते है जिससे उनसे काफी लगाव हो जाता है और विसर्जन के दौरान लोग रोने भी लगते हैं। ऐसे में गणेश प्रतिमा का विसर्जन घर में ही करें और उससे बनने वाली खाद से अपने घर में पुष्प वृक्ष लगाएं। जिससे गणेश जी आपके घर में वास करेंगे और सुबह आप उनके दर्शन कर सकते हैं। विवेक का कहना है की शास्त्रों में बताया गया है कि गोबर में लक्ष्मी का वास होता है इसलिए गोबर से निर्मित गणेश का पूजन करने से घर में धन धान्य का वास रहेगा। पर्यावरण बचाने की अलख जगा रहे ज्योतिषाचार्य का कहना है कि हमारा उद्देश्य है कि नयी पीढ़ी को हम ऐसा वातावरण बना कर दें जैसा हमको हमारे पूर्वजों से मिला था।

पत्नी भी करती हैं सहयोग
इको फ्रेंडली गणेश बनाने में ज्योतिषाचार्य विवेक की पत्नी उनका काफी सहयोग करती हैं। गणेश प्रतिमा को किस कलर से रंगा जाय उसका चुनाव कर गणेश की सुन्दर प्रतिमा बनाई जाती है, जोकि देखने में काफी मनमोहक लगती है । निशि का कहना है की हमारे देश में गाय को माता माना जाता है इसलिए उनके गोबर से शुद्ध कुछ हो नहीं सकता। जब हम कोई धार्मिक आयोजन करते हैं तो गाय के गोबर से जमीन को लीपते है। इसलिए गणेश चतुर्थी पर गणेश का और दीपावली के पर्व गणेश लक्ष्मी बनाते हैं जोकि पूरी तरफ से पर्यावरण के अनुकूल है।

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