बताया जाता है कि यहां जमीन से निकली इस शिवलिंग की स्थापना कराई गई थी। इसलिए पहले एक शिवलिंग चबूतरा हुआ करता था। बाद में 1943 में थानाध्यक्ष इसरार हुसैन ने स्वप्न के मुताबिक मंदिर का निर्माण शुरू कराया। इसके बाद नागेन्द्र सिंह ने मंदिर को पूर्ण कराया था। स्थानीय लोगों के मुताबिक शिवलिंग के आसपास चांदी के सिक्के लगे हुए थे। मान्यता है कि सिक्कों से जुड़े इस शिवलिंग की ही स्थापना कराई गई थी। इसलिए इस स्थल को धनगढ़ बाबा कहते थे।
कहते हैं शिवलिंग के अर्घ्य में 108 चांदी के सिक्के थे। समय गुजरता गया। लोग धीरे धीरे ये सिक्के उखाड़कर लेे गए। आज यह धार्मिक स्थल धर्मगढ़ बाबा के नाम से कई जिलों में विख्यात है। सावन माह में लोग आखिरी सोमवार को बड़ी तादात में उमड़ते हैं। वहीं भारी संख्या में कांवड़िए जलाभिषेक के लिए आते हैं। हालांकि इस वर्ष ऐसा संभव नहीं है। अन्तिम सोमवार के साथ शिवरात्रि व शारदीय नवरात्रि में भी यहां विशाल आयोजन होता है। आकर्षक मिले में लोग दर्शन करने के बाद लुत्फ उठाते हैं।