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ऐसा हुआ तो कार्डियोलॉजी में हृदयरोगियों के लिए होगी मुसीबत

locationकानपुरPublished: Jan 22, 2020 02:33:11 pm

अधिकारियों ने मुख्यसचिव के सामने रखा प्रस्ताव मेडिकल संस्थान में शामिल न कराने की अपील

ऐसा हुआ तो कार्डियोलॉजी में हृदयरोगियों के लिए होगी मुसीबत

ऐसा हुआ तो कार्डियोलॉजी में हृदयरोगियों के लिए होगी मुसीबत

कानपुर। मेडिकल कॉलेज के संस्थान बनने के बाद भले ही सुविधाओं में बढ़ोत्तरी होने के दावे किए जा रहे हों, लेकिन दूसरी तरफ हृदयरोग संस्थान के मरीजों के लिए परेशानी खड़ी हो जाएगी। इसी वजह से कार्डियोलॉजी के अधिकारी इसे स्वतंत्र संस्थान बनाए रखना चाहते हैं। इसे लेकर हाई पावर कमेटी की बैठक में मुख्य सचिव के सामने यह प्रस्ताव रखा गया है। अब देखना यह है कि शासन इस प्रस्ताव को मंजूर करता है या नहीं। अगर प्रस्ताव नामंजूर हुआ और कार्डियोलॉजी को स्वतंत्र संस्थान का दर्जा ना मिला तो मरीजों के लिए यहां इलाज कराना आसान नहीं होगा।
स्वतंत्र संस्थान के फायदे
कार्डियोलॉजी के स्वतंत्र संस्थान बने रहने से कार्डियोलॉजी का अपना अस्तित्व बरकार रहेगा और इलाज में किसी भी तरह की रुकावट नहीं आएगी। इस समय इलाज को लेकर फैसले भी तुरंत लिए जाते हैं और किसी की मंजूरी नहीं लेनी पड़ती। शासन की हितकारी नीतियों को आसानी से जल्द लागू किया जाता है। फैकल्टी पर किसी तरह का कोई दबाव नहीं होता है और हर काम स्वतंत्र तरीके से किया जाता है।
मरीजों को भी होता लाभ
स्वतंत्र संस्थान बने रहने से भर्ती रोगियों को १०० प्रतिशत दवाएं मुफ्त में मिलती हैं और ओटी व कैथलैब भी ज्यादा दिनों तक खुलता है। आयुष्मान योजना और असाध्य रोगी की योजना में गरीबों को सबसे ज्यादा फायदा यहां पर ही मिलता है। इसके अलावा बाईपास सर्जरी, एंजियोप्लॉस्टी, पेसमेकर, एंजियोग्राफी भी प्रदेश में सबसे ज्यादा यहीं पर होती है। यहां होने वाले ऑपरेशन के मुकाबले तो पीजीआई, केजएमयू और आएमएल लखनऊ में मिलाकर भी नहीं हो पाते।
मेडिकल इंस्टीट्यूट से जुडऩे का असर
अगर हृदयरोग संस्थान को मेडिकल संस्थान में शामिल किया जाता है तो गरीब और गंभीर हृदयरोगियों को त्वरित इलाज नहीं मिल सकेगा, इसकी प्रक्रिया की वजह से इसमें देरी होगी। यहां के डॉक्टरों और कर्मचारियों का तालमेल बेहतर नहीं रह पाएगा। दूसरी तरफ सरकारी योजनाएं यहां भी सही से लागू नहीं होंगी। अभी डॉक्टरों की हड़ताल से कार्डियोलॉजी दूर रहता है पर बाद में अगर हड़ताल हुई तो यहां पर भी परेशानी खड़ी हो जाएगी। संस्थान के डॉक्टरों पर दो स्तर की निगरानी के चलते डॉक्टर मरीज को पूरा समय नहीं दे पाएंगे।
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