भले ही तीन तलाक का कानून अभी न बन पाया हो, लेकिन प्रक्रिया जरूर चल रही है और इसी का खौफ है कि तीन तलाक के मामले सामने आना बंद हो गए। जबकि पहले तलाक आम बात हो चुकी थी। शादी के बाद जब मन होता था तो शौहर तलाक दे देता था और शरई अदालतों में मामला पहुंचता था, जिसके बाद तलाक की प्रक्रिया शुरू होती थी।
हिंदू परिवारों में विवाह के बाद तलाक बहुत मुश्किल होता है और इसकी प्रक्रिया भी काफी लंबी है, पर मुस्लिम परिवारों में तलाक आम हो चला था। हैरत की बात तो यह है कि इसके पीछे कोई ठोस कारण बताना भी जरूरी नहीं समझा जाता। तलाक के ८० फीसदी मामलों में शरई अदालतों के नोटिस का वर पक्ष जवाब तक नहीं देता था। शौहर को दूसरा कोई पसंद भर आ जाए तो पहली बीबी को तलाक दे देते थे। कई मामलों में तो शादी के साल भर में ही तलाक दे दिया जाता था।
महिला शहर काजी डॉ. हिना जहीर नकवी का कहना है कि जब से तीन तलाक के संबंध में कानून की प्रक्रिया शुरू हुई है, तब से तलाक के मसले आना बंद ही हो गए। अब लोग ऐसी स्थिति में आपस में बैठकर मामले सुलझा लेते हैं और तलाक तक नौबत ही नहीं आती। ऑल इंडिया सुन्नी उलेमा काउंसिल के जनरल सेक्रेटरी हाजी मो. सलीस का कहना है कि मुस्लिम अब जागरूक हो गए हैं।