कानपुर

हू-ब-हू बुंदेलखंड जैसे दोआब की पृष्टभूमि पर सरकार ने नहीं ली सुधि

फतेहपुर व कानपुर के घाटमपुर में यमुना किनारे का 17 किलोमीटर का क्षेत्र बदहाल, सरकारी योजनाओं का नहीं मिल रहा लाभ।

कानपुरAug 04, 2019 / 01:08 am

Vinod Nigam

हू-ब-हू बुंदेलखंड जैसे दोआब की पृष्टभूमि पर सरकार ने नहीं ली सुधि

कानपुर। वही हालात, वैसी ही हताशा, बवजूद इसके एक सीमा रेखा ने लाखों लोगों को उनके अधिकारों से वंचित कर रखा है। जी हां, हम बात कर रहे हैं बुंदेलखंड के किनारे से निकल यमुना के दूसरे तट की, जिसे दोआब के नाम से भी जाना जाता है। इससे फतेहपुर जनपद व कानपुर के घाटमपुर का 17 किलमीटर अंदर तक का क्षेत्र बिलकुल बुंदेलखंड जैसा ही है। सीलिंग एक्ट में कभी इसे बुंदेलखंड मे शामिल भी किया गया था। लेकिन उसके बाद से न तो इसे बुंदेलखंड से जोड़ा गया और न ही वैसी कोई राहत ही दी गई। पूरी तरह से खेती पर निर्भर ये क्षेत्र बदहाल है। किसान भी खेती-बाड़ी छोड़कर दूसरे शहरों में पलायन कर रहे हैं। गमदजा अन्नदाता मौजूदा केंद्र व राज्य सरकार के भेदभाव के रवैया से खासे नाराज हैं।

लगाए है टकटकी
कहते हैं सीमाएं प्रकृति को नहीं रोक सकती, लेकिन प्रशासन की व्यवस्थाओं के मापदंड जरूर तय कर सकती हैं। बुंदेलखंड से 17 किलोमीटर यमुना तटवर्ती इलाका अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है। यमुना का पानी जरूर लहरों के सहारे इस किनारे से उस किनारे अपनी उपस्थिति दर्ज कराता हो। लेकिन इन दो किनारों ने सरकारी मशीनरी से लेकर कानून बनाने वाले लोकसभा में बैठे सदस्यों की सोच को बदल दिया है। महज पांच सौ मीटर की नदी के एक किनारे का किसान सरकारी योजनाओं का भरपूर लाभ उठा रहा है। जबकि उसी प्रकृति और स्थितियों में जीने वाला दूसरा किसान सरकार की ओर आस भरी निगाह से टकटकी लगाए देख रहा है।

उपेक्षित है यह भू भाग
यह भू-भाग आज भी सरकारी निगाहों से उपेक्षित है। सिर्फ किसान ही नहीं वरन सरकार से मिलने वाले विकास कार्यों को भी यहां अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका है। यहां की सड़कें, बिजली, पानी, स्वास्थ्य, एवं शिक्षा जैसी सुविधाओं से लोग कोसों दूर हैं। किसान रघुबीर मल्लाह कहते हैं कि घाटमपुर विधानसभा क्षेत्र में आने वाला ये भाग आजादी के बाद से बदहाल है। ऐसे दर्जनों गांव हैं, जहां सरकारी योजनाएं नहीं पहुंची। जबकि हमीरपुर जिले के अधिकतर गांवों में विकास की बयार है। वहां गरीबों के इलाज के लिए आयुष्मान कार्ड, राशन कार्ड, टॉयलेट, कर्जमाफी सहित केंद्र व राज्य की तमाम योजनाएं मिल रही हैं।

बुंदेलखंड के विकास पर रहा ध्यान
किसान युनियन के नेता ब्रजभूषण सचान कहते हैं कि बुंदेलखंड के किसानों को पिछली सरकारों ने करोड़ों रुपए दिए। दर्जनों योजनाएं शुरू की गई। राजीव सरकार से लेकर मनमोहन और फिर मोदी सरकार ने भी यहां के विकास के लिए अरबों रुपए खर्च किए। मोदी पार्ट वन सरकार में ही चित्रकूट को पयर्टन स्थल बनाने और एक्सप्रेस वे जैसी महत्वाकांक्षी योजनाएं शुरू की। लेकिन गजब की बात है कि इन तीनों जिलों की यमुना तटवर्ती करीब 17 किलोमीटर की सरहद की पृष्टभूमि हू-ब-हू बुंदेलखंड की जैसी है। बारिश भी बुंदेलखंड की तरह होती है। यही नहीं पानी के अन्य साधान भी इस भू-भाग में नहीं है। बावजूद सरकार की नजर इस इलाके में नहीं पड़ी।

बुंदेलखंड जैसी सुविधाओं की मांग
ब्रजभूषण सचान कहते हैं फतेहपुर और घाटमपुर इलाके के हजारों किसान लंबे समय से बुंदेलखंड जैसी सुविधाओं की मांग करते आ रहे हैं। किसानों का मानना है कि जब एक जैसे हालात हैं, एक जैसी मिट्टी और एक जैसी ऊपज है तो सरकार यह सौतेला व्यवहार क्यों कर रही है। बुंदेलखंड की सरहद पर बसे फतेहपुर की ही करीब सवा सौ ग्राम पंचायतें इस क्षेत्र में आती हैं। किसान नेता ने केंद्र व राज्य सरकार से मांग करते हुए कहा इस 17 किलोमीटर की परिधि को भी बुंदेलखंड में शामिल किया जाना चाहिए, जिससे कि यहां के किसान भी खुशहाल जीवन जी सकें।

संसद-विधायक ने भी नहीं ली सुधि
अकबरपुर सीट से दूसरी बार जीते सांसद देवेंद्र सिंह भोले ने भी इस क्षेत्र पर कभी नजर नहीं दौड़ाई। आजादी के बाद पहली बार घाटमपुर विधानसभा सीट से वरूणरानी चुनाव जीती। इसी परिक्षेत्र के मतदाताओं ने कमल को वोट देकर उन्हें चुना, पर विधायिका ने यहां के किसानों का दर्द दूर नहीं किया। सांसद देवेन्द्र सिंह भोले ने 2014 मेंघाटमपुर विधानसभा क्षेत्र के टिकवापुर गांव को गोद लिया था। यहां के ग्रामीणों के मुताबिक अखिलेश यादव की सरकार के दौरान विकास कार्य कराया गया था। लेकिन जब से सांसद ने गांव गोद लिया, तब से गांव बदहाल हो गया।

 
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