कानपुर

सराहनीय : अपनी कमाई से डॉक्टरों ने NICU का करवाया निर्माण, 24 घंटे ऐसे कर रहे मासूमों की निगरानी

कानपुर के जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभाग में चिकित्सकों की सराहनीय पहल शहर में बनी चर्चा का विषय..

कानपुरDec 10, 2017 / 10:54 am

Hariom Dwivedi

विनोद निगम
कानपुर. शहर के जीएसवीएम (GSVM) मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभाग के एचओडी डॉक्टर यशवंत राव ने अपने और यहां के अन्य डॉक्टरों मी मदद से नवजात बच्चों के लिए एनआईसीयू (बाल सघन चिकित्सा कक्ष) का निर्माण करवाया, जो हर आधुनिक मशीनों से संचालित है। लेकिन गोरखपुर में बच्चों की मौत के बाद डॉक्टर राव ने इसकी 24 घंटे निगरानी के लिए सीसीटीवी कैमरों के जरिए मोबाइल से कर रहे हैं। डॉक्टर राव ने बताया कि गोरखपुर कांड के बाद हमने अपने साथी डॉक्टरों के साथ बैठक की और मोबाइन ट्रैकिंग सिस्टम लगवाने का निर्णय लिया। सबने दिल खोलकर चंदा दिया और अब हम एनआईसीयू में एडमिट हर बच्चे की निगरानी अपने मोबाइल के जरिए कर रहे हैं। राव बताते हैं कि मॉनिटिरिंग के साथ इलाज के जरूरी निर्देश भी ऑडियो-विजुअल तकनीक से दिए जा रहे हैं। जेआर हो या फिर नर्स इलाज में लापरवाही पर तुरंत उन्हें डांट लगाई जाती है। इससे इलाज की गुणवत्ता में व्यापक सुधार हो रहा है।

मोबाइल ट्रैकिंग सिस्टम के जरिए नवजात पर नजर
मेडिकल कॉलेज से सम्बद्ध बाल रोग चिकित्सालय अपनी स्थापना के बाद से सरकारी बजट पर निर्भर था। बजट आया तो दवा खरीदी गयी और बच्चों का इलाज हो गया। बजट में कमी हुई तो सैंकड़ों बीमार नवजात शिशुओं को उनके हाल पर छोड़ दिया गया। ऐसे में बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर यशवंत राव व इनके जूनियर डॉक्टरों के अलावा छह प्राईवेट प्रैक्टिस करने वाले डाक्टरों ने आपस में तय किया कि वे अपनी कमाई का एक हिस्सा जमा करके सरकारी बाल चिकित्सालय में अत्याधुनिक एनआईसीयू यानि नवजात शिशु सघन चिकित्सा कक्ष का निर्माण करायेंगे और उन्होंने कर दिखाया। हैलट में डॉक्टरों की मदद से एनआईसीयू चल रहा है। डॉक्टर राव ने बताया कि एनआईसीयू काफी संवेदनशील है। बच्चों की संख्या क्षमता से अधिक होती है। एक बेड पर तीन-चार बच्चों को भर्ती करना पड़ता है। ऐसे में कड़ी निगरानी की जरूरत महसूस की गई है। उन्होंने व्यक्तिगत तौर मोबाइल ट्रैकिंग सिस्टम लगवाने की पहल की। हमारे अन्य साथियों ने सहयोग दिया और ये सिस्टम शुरू हो गया। अब हम जब चाहते हैं मोबाइल पर पूरा एनआईसीयू देख लेते हैं। रात दो बजे भी सतर्कता बनी रहती है। विभाग के जूनियर डॉक्टरों और फैकल्टी ने इसमें सहयोग किया है।
चंदे के पैसे से लगा सिस्टम
बाल रोग विभाग के डॉक्टरों ने एनआईसीयू में यह हाईटेक सिस्मट खुद चंदा जुटाकर लगाया है। चार लाख रुपये डॉक्टरों ने जुटाया है। दिल्ली की आईटी कंपनी से सिस्टम लगाने में सहयोग लिया गया। एनआईसीयू के अंदर कई जगहों पर, कंगारू मदर रूम, सेंट्रल ऑक्सीजन सिस्टम पैनल, जूनियर डॉक्टरों के रेस्ट रूम, स्टाफ नर्स रूम,वह बाहर गैलरी आदि जगहों पर गोपनीय कैमरे लगाए गए हैं। इन कैमरों को सिर्फ विभागाध्यक्ष की मोबाइल से जोड़ा गया है। विभागाध्यक्ष जब चाहते हैं तब एनआईसीयू के अंदर और बाहर चल रही गतिविधियों को अपने मोबाइल की स्क्रीन पर देख सकते हैं। यहां तक कि वेंटीलेटर पर भर्ती बच्चे की हालत भी मोबाइल स्क्रीन से कुछ हद तक समझ लेते हैं। डॉक्टर राव ने बताया कि यह एनआईसीयू 37 बेडों का हैं और 70 से अधिक बच्चे यहां पर एडमिट रहते हैं। जूनियरों के साथ सीनियर डॉक्टरों की यहां पर 24 घंटे ड्यूटी रहती है। एक साल में 4500 से अधिक नवजात भर्ती होते हैं।
पल-पल की खबर के साथ नजर
डॉक्टर राव ने बताया कि वे अपने केबिन, घर या शहर से बाहर होने के बावजूद एनआईसीयू पर पल-पल की खबर और नवजात बच्चे, उसकी मां, तीमारदार, नर्स के साथ अन्य कर्मचारियों पर नजर रखते हैं। अगर किसी बच्चे की तबियत खराब होती है तो मोबाइल के जरिए स्टॉफ नर्स को कौन से मेडिसिन देनी है उसकी जानकारी इसी के जरिए देते हैं। डॉक्टर राव ने बताया कि ऑक्सीजन पैनल रूम में कर्मचारी कैसे सो रहा है, ऑक्सीजन रूम से आवाज क्यों आ रही है, आदि कमांड मोबाइल के जरिए एनआईसीयू में तैनात ड्यूटी नोडल अधिकारियों को हम तत्काल देते हैं। नोडल अधिकारी इसी के बाद हरकत में आते हैं और उसको फौरन सुधार करने के निर्देश देते हैं। डॉक्टर राव कहते हैं कि यूपी के अन्य मेडिकल कॉलेजों में ऐसे एनआईयूसीयू की बहुत आवश्यकता है। अगर गोरखपुर में ऐसी व्यवस्था होती तो कई बच्चों की जान बचाई जा सकती थी।
भविष्य को बचाने के लिए आगे आए डॉक्टर
हैलट में नवजात शिशुओं के इलाज के लिए 2011 तक कोई आधुनिक सुविधा नहीं थी, जिसके चलते उनकी मौत हो जाया करती थी। बाल रोग में बने एनआईसीयू के नाम पर दो पुरानी मशीने थीं। छह बच्चों को एडमिट कर उनके इलाज की व्यवस्था थी। फर्श टूटी थी, बरसात में छतों से पानी टपका करता था। एनआईसीयू एयरकंडीशन भी नहीं था। इन सब समस्याओं के चलते जूनियर डॉक्टर परेशान रहते थे, तो नवजात रोया करते। इन्हीं सब समस्याओं से निजाद दिलाने के लिए डॉक्टर यशंवत राव और उनके छह साथियों की टीम ने मेडिकल कॉलेज के साथ ही प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों व शहर के संस्थानों को जोड़ा। पंद्रह दिन के अंदर 10 लाख रूपए चंदे के रूप में एकत्र किए और 10 बेड का आधुनिक एनआईसीयू तैयार कर गरीबों परिवार में जन्में नवजात का इलाज शुरू कर दिया। डॉक्टर राव ने बताया कि एनआईसीयू में इलाज के लिए आने वाले नवजात से एक रूपया नहीं लिया जाता है। उनका पूरा इलाज निशुःल्क किया जाता है।
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