कानपुर में गंगाजल छूने के लायक भी नहीं गंगा की सेहत को लेकर लागू परियोजना के संचालक डॉ. एसए हुसैन और सह संचालक डॉ. रुचि बडोला ने बताया कि कानपुर के बाद फतेहपुर क्षेत्र और इलाहाबाद में कुछ डॉल्फिन जरूर दिखी हैं, जबकि यूपी की गंगा में सिर्फ 50 से 60 घडिय़ाल ही बचे हैं। 500 से 600 रुपए किलो बिकने वाली हिल्सा मछली तो यूपी और बिहार से गायब हो चुकी है। गैंजेज शार्क का भी नामोनिशान नहीं बचा है। समूची गंगा की बात करें तो बिजनौर से लेकर गंगासागर तक सिर्फ 800 डॉल्फिन ही बची हैं। रिपोर्ट यह भी बताती है कि 80 से 90 किलोमीटर के हस्तिनापुर वाइल्ड लाइफ को छोड़ यूपी से गंगा वनस्पति खत्म हो गई है। बताया गया है कि गंगा के किनारे गन्ना, गेहूं, खीरा समेत अन्य कृषि के चक्कर में गंगा की वनस्पति खत्म हो रही है।
सरकार ने डॉल्फिन को घोषित किया है राष्ट्रीय जल जीव
गौरतलब है कि गंगा डॉल्फिन की प्रजाति खतरे में है। इसी कारण सात साल पहले केंद्र सरकार ने गंगा डॉल्फिन को राष्ट्रीय जल जीव घोषित किया था। दरअसल, डॉल्फिन की चर्बी से तैयार होने वाला तेल बेहद कीमती होता है और इसी लालच में शिकारी गंगा डॉल्फिन का शिकार करते हैं। अवैध शिकार की वजह से भारत में गंगा डॉल्फिनों की संख्या सिर्फ 2000 रह गई है। भारत में 1972 के वन संरक्षण कानून में ही इन डॉल्फिनों को लुप्त होने के कगार पर बताया गया था। गंगा डॉल्फिन उन चार डॉल्फिनों की जाति में एक है, जो सिर्फ मीठे पानी यानी नदियों और तालाबों में मिलती है। गंगा डॉल्फिन गंगा, ब्रह्मपुत्र, मेघना, कर्णफुली और संगू नदियों में मिलती है। इसके अलावा चीन में यांग्त्से नदी में बायजी डॉल्फिन, पाकिस्तान में सिंधु नदी में भुलन डॉल्फिन और दक्षिण अमेरिका में अमेजन नदी में बोटो डॉल्फिन मिलती है, जोकि सभी खत्म होने के कगार पर हैं। समुद्र में डॉल्फिनों की दूसरी जातियां होती हैं।